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Shardiya Navratri 2022 : बाज की तरह मेवाड़ पर नजर रखती हैं राठासन माता, मेदपाद रक्षिणी की दी गई थी उपाधि

shardiya navratri जगदीश मंदिर के निर्माण काल में यह मंदिर भी बना, इसका जीर्णोद्धार महाराणा जगतसिंह ने कराया

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shardiya navratri जिले की गिर्वा तहसील के गांव मरूवास (झालों का गुढ़ा) में एकलिंगजी ट्रस्ट (मेवाड़) के अंतर्गत एक प्राचीन देवी मंदिर है, जिसे स्थानीय जन राठासेन (राठासण) माताजी के नाम से जाना जाता है। लगभग 3000 फीट ऊंची दुर्गम पहाड़ी पर स्थित देवी राठासण का यह मंदिर अनेक कारणों से विशिष्ट है। मेवाड़ के ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन नागदा क्षेत्र (कैलाशपुरी के पास) जो 10वीं शताब्दी तक मेवाड़ की राजधानी रहा, यह मंदिर उसी नागदा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक अवशेषों से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मंदिर में विराजमान राठासण देेवी को ‘मेदपाट की रक्षिणी’ होने की उपाधि भी दी गई थी।

मोहनलाल सुखाडि़या विवि की इतिहास विभाग की सीनियर रिसर्च फेलो डिंपल शेखावत ने देवी राठासण मंदिर पर ऐतिहासिक अध्ययन किया है। डिंपल ने बताया कि इस ऊंचे पहाड़ पर लोगों ने अग्नि देखी तो इसे शक्ति रूप मानकर देवी मंदिर स्थापित किया गया। इस देवी के आगे जनजातियों से लेकर अभिजनों तक कृपा के याचक बने रहते हैं। देवी के दरबार में सामंत शक्ति, बल व सेना मांगने के लिए पहुंचते थे। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा जगत सिंह ने करवाया था। जगदीश मंदिर के निर्माण काल में यह मंदिर भी बना।

इस मंदिर के लिए दी गई थी हाथी की बलि

इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, राठासन माता की मान्यता बहुत पुरानी लगभग 9वीं सदी की है। यह राष्ट्रसेना है और मेवाड़ पर बाज की तरह से नज़र रखती है। एकलिंगजी को शासक मानकर प्रजापालन करने वाले महारावल और महाराणाओं ने इस देवी को बहुत आदर दिया। एकलिंग पुराण में यह मान्यता है कि बाज को श्येन कहा जाता है, इसलिए यह राष्ट्रश्येना भी कहा जाता है। राठौड़ों से यह रूठ गई तब झालों पर कृपा करने वाली हुई। इन माताजी के मंदिर के लिए यह लोकमान्यता भी है कि इस मंदिर में अपनी मनौती पूरी होने के लिए देलवाड़ा के राजा ने हाथी की बलि दी थी। इसका वर्णन देलवाड़ा रो राज धन हस्ति रा चढ़ावे.. राठासन मंदिर के जो गीत गाए जाते हैं, उसमें हाथी निवेदित करने का जिक्र है।


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