
उदयपुर बांसवाड़ा मार्ग पर बाल बंधुआ को छुड़वाती पुलिस और NGO कार्यकर्ता (फोटो: पत्रिका)
Children Mortagaged: आपने मकान-दुकान तो गिरवी रखते देखा होगा लेकिन कभी बच्चों को गिरवी रखते कभी देखा है। यह भयावह काम उदयपुर आदिवासी अंचल में बेरोकटोक हो रहा है। गरीब, लाचार परिवार आज भी 8 से 12 साल के बच्चों को 20 से 25 हजार में गड़रियों के पास एक साल के लिए गिरवी रख रहे हैं। वहीं अधिकतम 40-45 हजार रुपए में बच्चे बेच रहे हैं।
यह सौदेबाजी मारवाड़ के सिरोही पाली से आने वाले गड़रिये कर रहे हैं। पैसा चुकानेे के बाद बच्चों को प्रतिदिन 30-35 किमी तक भेड़ों के रेवड़ के साथ पैदल चला रहे हैं। वे उन्हें बंधुआ बाल मजदूर बनाकर शोषण कर रहे हैं। बच्चों को न भरपूर खाना मिलता और न आराम। ऐसे हालत में बच्चा बीमार हो जाए तो वे उन्हें वहीं छोड़ जाते हैं। कोई संस्था या पुलिस रोक कर पूछताछ करे तो ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे उनका बच्चे से कोई लेना-देना ही नहीं।
बंधुआ बालश्रम केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है, बल्कि यह कानूनन भी गंभीर अपराध है। कुछ लोग लालच में इस कुप्रथा को जिंदा रखे हैं। आवश्यक है कि ऐसे तत्वों पर सख्त कार्रवाई हो।
डॉ. शैलेन्द्र पण्ड्या, बाल अधिकार विशेषज्ञ एवं पूर्व सदस्य, राजस्थान बाल आयोग
एक साल में मध्यप्रदेश की इंदौर पुलिस और इंदौर की संस्था ने गड़रियों से आठ बच्चे छुड़वाए। 8 से 12 साल के ये बच्चे उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर क्षेत्रों के थे। इंदौर पुलिस ने इन्हें सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया, इनके माता-पिता को पाबंद कर उन्हें सुपुर्द किया गया। इसी तरह दो बच्चों को गुजरात से और हाल ही में दो बच्चे प्रतापगढ़ और दो सलूम्बर क्षेत्र से छुड़वाए गए। यह बच्चे उदयपुर और सिरोही जिले के थे।
बंधुआ बाल श्रमिक की श्रेणी में आने पर पुलिस और संस्था संबंधित बच्चे को मुक्त करवाने के लिए एडीएम से मुक्ति प्रमाण पत्र लेती है। यह प्रमाण पत्र न केवल बच्चे को बंधुआ मजदूरी से मुक्त घोषित करता है, बल्कि सरकारी सहायता और पुनर्वास योजनाओं का आधार भी बनता है। बच्चे को सरकार की ओर से 30 हजार रुपए अंतरिम राहत मिलती है। जिले में पुनर्वास के बाद शेष 2.70 लाख रुपए तक की सहायता भी दी जाती है।
Updated on:
02 Oct 2025 10:58 am
Published on:
02 Oct 2025 10:57 am
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