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6 साल की उम्र में परिवार से बिछड़ा था भूरा, सालों बाद ऐसे पहुंचा घर

उसे पांच से छह बच्चों के बीच बिठाया गया और कहा कि सब बच्चे अपने-अपने गांव के अलावा पास के गांव का नाम भी बताएंगे, जो सही बताएगा उसके घर ले जाया जाएगा। सब ने बारी-बारी से गांव के नाम बताए, लेकिन छह साल की उम्र में परिजनों से बिछड़ा भूरा 12 वर्ष की उम्र में भी कुछ नहीं बता पाया।

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उसे पांच से छह बच्चों के बीच बिठाया गया और कहा कि सब बच्चे अपने-अपने गांव के अलावा पास के गांव का नाम भी बताएंगे, जो सही बताएगा उसके घर ले जाया जाएगा। सब ने बारी-बारी से गांव के नाम बताए, लेकिन छह साल की उम्र में परिजनों से बिछड़ा भूरा 12 वर्ष की उम्र में भी कुछ नहीं बता पाया।

दो-तीन बार की कोशिश में उसने कोटड़ा के आसपास के गांव के साथ ही कुछ लैंडमार्क बताए। बस फिर क्या, काउंसलर ने सीडब्ल्यूसी से बच्चे को ऑन द स्पोर्ट ले जाने का आग्रह किया। पुलिसकर्मी उसे छह गांव लेकर पहुंचे। दोपहर तक सफलता नहीं मिली तो काउंसलर ने बच्चे से वीडियो कॉल कर फिर काउसलिंग की। इस बार बच्चा ऊंची-नीची घाटियों पर आगे बढऩे लगा तो पुलिसकर्मी उसके पीछे चलते रहे। आखिर भूरा अपनी बुआ के घर पहुंच गया। पूरे 6 साल बाद बुआ अपने भतीजे को देखते ही पहचान गई और रोते हुए सीने से लगा लिया।
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यह करुण दृश्य मांडवा के देवला में देखने को मिला। पूरे 6 साल बाद भूरा अपने परिजनों से मिल पाया। इसमें महत्ती भूमिका निभाने वाली राजकीय किशोर गृह की काउंसलर किरण जोशी का परिजनों ने आभार जताया। मांडवा थानाधिकारी अशोक कुमार व हैडकांस्टेबल पन्नालाल, कांस्टेबल भैयाराम, संदीप व अंशुल भी पूरी जिम्मेदारी निभाई और बच्चे को कोटड़ा, देवला, जूड़ा, विकारणा, मांडवा सहित आसपास के गांव लेकर पहुंचे।
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किशोर गृह में निकाला समय: परिजनों ने बताया कि भूरा की मां का निधन हो गया, जब वह महज 6 साल का था। पिता मजदूरी के लिए राजसमंद साथ ले गया, जहां वह गुम हो गया। सड़कों पर घूमते हुए उसे पुलिस ने राजकीय किशोर गृह पहुंचाया। भूरा पिछले 6 साल से यहां रहकर पढ़ाई कर रहा था। वह अब आठवीं कक्षा में आ गया है। परिजनों से मिलने के बाद वह बेहद खुश है। अब आगे कानूनी कार्रवाई पूरी होने पर सीडब्ल्यूसी की ओर से बच्चा परिजनों के सुपुर्द किया जाएगा।


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