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उदयपुर

मेवाड़ में जलाशय अपार, सूरत संवारो सरकार

ऐतिहासिक धरोहर बावड़ियां, कुएं और तालाब बदहाल, संरक्षण की दरकार

उदयपुरMay 30, 2025 / 06:55 pm

अभिषेक श्रीवास्तव

गुलाब बाग, उदयपुर

उदयपुर. झीलों के शहर के रूप में पहचाना जाता है उदयपुर। लेकिन, यहां केवल झीलें ही नहीं, प्राचीन और कलात्मक बावड़ियां और अन्य जलाशय भी बड़ी तादाद में है। जानकारों के अनुसार अकेले उदयपुर शहर में करीब सवा सौ से ज्यादा प्राचीन बावड़ियां है। यह बात और है कि झीलें आबाद है और बावड़िया और अन्य जलाशय बदहाल। जिले में भी कई जगह जलाशयों की दुर्गति हो रही है। प्राचीन जलाशयों में बावड़ियों, कुएं और तालाबों का बड़ा महत्व था। कालखण्ड के अनुरूप यहां जलाशयों का निर्माण किया था, लेकिन अब अधिकांश दुर्दशा का शिकार है। जलाशय केवल पानी उपलब्ध कराने के स्रोत ही नहीं थे, बल्कि सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक विरासत के परिचायक भी रहे हैं।

कभी थे जीवनरेखा, अब संरक्षण की दरकार

उदयपुर की प्रसिद्ध बावड़ियों में त्रिमुखी बावड़ी, बेदवास की बावड़ी, सर्वऋतुविलास की बावड़ी, सुंदरबाव, भुवाणा की बावड़ी, नौलखा बावड़ी प्रमुख है। किसी दौर में यहां सवा सौ से ज्यादा बावड़ियां थीं। अब कई जमींदोज हो गई है तो कई अतिक्रमण का शिकार। कई मरम्मत और देखरेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच रही है। कुछ बावड़ियों की हालत ठीक है, लेकिन देखरेख के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रहा। इससे वह भी अनदेखी की शिकार है। गोगुंदा समेत अन्य कई स्थानों पर भी जलाशयों की भरमार रही है। यही जलाशय ग्रामीणों की जीवनरेखा थे।

यों हो रही दुर्दशा

केस-1 : प्रताप के राजतिलक की साक्षी रही बावड़ी बदहाल

गोगूंदा में श्रीधरी त्रिमुखी बावड़ी महाराणा प्रताप के राजतिलक की साक्षी रही है। इससे पूरे गांव की प्यास बुझती थी। देखभाल के अभाव में यह जीर्णशीर्ण अवस्था में है। महाराणा प्रताप का जहां राजतिलक हुआ, उस स्थल पर कई बार सौंदर्यकरण हुआ, लेकिन बावड़ी की ओर किसी ने देखा नहीं। इसके चारों ओर छतरियां बनी होने से इसे श्रीधरी बावड़ी कहते हैं। इसके तीन मुख है। इतिहास में उल्लेख है कि कस्बे की बावड़ी और शिव मंदिर के समीप महाराणा प्रताप का राजतिलक किया था।
केस-2 : कभी धरोहर रही है घासा गांव की बावड़ी

घासा में स्थित बैजनाथ महादेव मंदिर के सामने की प्राचीन बावड़ी बदहाल हो गई है। संरक्षण के अभाव में गंदगी और कचरा फैला हुआ है। सीढ़ियां टूटी हैं, झाड़ियां उम चुकी है। यहां प्राचीनकाल में लोग प्यास बुझाते थे। इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार की दरकार है। बावड़ी का सांस्कृतिक महत्व भी है, जो गांव के इतिहास और विरासत से जुड़ा है। यहां के ग्रामीण सरकार से लंबे समय से बावड़ी की सुध लेने की मांग कर रहे हैं।
केस-3

शहर के गुलाबबाग में प्राचीन बावड़ी है। बावड़ी पर रेलिंग के पत्थर टूटकर गिर रहे हैं। अन्य जलाशयों से इसकी हालत ठीक है, लेकिन इसके सौंदर्यकरण की जरूरत है। राजस्थान पत्रिका ने भी बावड़ी पर कई बार सफाई कराई। कई संगठन और सामाजिक संस्थाओं के लोग भागीदार बने। अब इसके रंग-रोगन और मरम्मत की जरूरत है।

एक्सपर्ट : मेवाड़ की पारंपरिक जल संरचनाएं: स्थापत्य, संस्कृति का अद्भुत संगम

गौरव सिंघवी, संयोजक, इनटेक, उदयपुर

मेवाड़ में कृत्रिम जल स्रोतों जैसे कुएं, बावड़ी, तालाब और सरोवर बनाने की परंपरा और तकनीक प्राचीन काल से आज भी जीवित है। गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में कोई बड़ी नदियां न होने से जल संकट सदैव बना रहता है, जिसे इन कृत्रिम जल संरचनाओं द्वारा काफी हद तक दूर किया गया। जल संरचनाओं में सबसे अधिक ध्यान बावड़ियों ने आकर्षित किया है। सबसे अद्भुत बात इनकी दीर्घायु है। मेवाड़ के पूर्व शासकों ने यहां जल संरचना को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। कई बावड़ियों का भी निर्माण कराया, जिसमें त्रिमुखी बावड़ी, बेदवास की बावड़ी, सर्वऋतुविलास की बावड़ी, सुंदरबाव, भुवाणा की बावड़ी और नौलखा बावड़ी प्रमुख हैं। अफसोस की बात यह कि अब हमारी यह धरोहर दुर्दशा की शिकार है।

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