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मेवाड़ के प्रसद्धि लोक नाट्य गवरी की धूम हुई शुरू

थाली मांदल की थाप पर बजने लगे घुंघरू

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मेवाड़ के प्रसद्धि लोक नाट्य गवरी की धूम हुई शुरू

मेवाड़ के प्रसद्धि लोक नाट्य गवरी की धूम हुई शुरू

उदयपुर. मेवाड़ के प्रसिद्ध लोकनाट्य गवरी नृत्य की धूम ठण्डी राखी के दिन से शुरू हुई। पिछली बार कोरोना संक्रमण के कारण गवरी मंचन नहीं हुआ। वही इस बार भी कोरोना संक्रमण के कारण गावों में गवरी कम ही ली गई हैं। शहर के समीप डांगियों का गुडा में रविवार को सांवरियाजी के पोखरिया खेड़ी गांव की गवरी ने मंचन किया। गवरी में दो राई एक बुढिया एवं अन्य भोपा खास महत्व रखते हैं। गवरी के वस्त्र धारण करने के साथ ही थाली मांदल की थाप पर गांव के चौक मेंं दिनभर गवरी नृत्य का मंचन हुआ। इसमें पहले दिन कालू कीर, हटिया, कान्हा गुर्जरी, गाडुलिया, राजा रानी, बणजारा, लखा बणजारा, बणजारा मीणा के खेल खेले गये। मेवाड़ एवं वागड़ क्षेत्र के भील समाज के लिए भाद्रपद माह ठण्डी राखी से 40 दिन तक का समय विशेष महत्व रखता है।परंपरा के अनुसार वनवासियों के सवा मासी लोक नाट्य अनुष्ठान गवरी की धूम शुरू हुई। इस लोक नृत्य में पौराणिक घटनाओं के साथ मौजूदा पुलिस प्रशासन, समाज की व्यवस्थाओं का मंचन कर वनवासी कलाकार 40 दिन तक दर्शकों का मनोरंजन करेगें। इस अवधि में ही लोक परम्पराओं को समेटे गवरी नृत्य का आयोजन किया जाता है। गवरी नृत्य में विभिन्न लोक नाट्यों के माध्यम से ये कलाकार समाज में व्याप्त सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विद्रुपताओं पर व्यंग कसते दिखाई देते हैं। एक ओर मेवाड़ी बोली के साथ खड़ी बोली इंगलिश मिश्रित कर हास्य संवादो से ग्रामीणों में गुदगुदी मचाए रखते हैं।40 कलाकार और 40 दिन की तपस्यागवरी में अमूमन पुरुष कलाकार होते हैं, जो 40 दिन तक गोरज्या माता की पूजा-अर्चना कर उनके नाम का व्रत करते हैं। इस अवधि में कई मर्यादाएं रखते हैं। सबसे बड़ा व्रत होता है घर से बाहर रहने का। ठंडी राखी के दिन घर से निकले कलाकार सवा माह से पहले वापसी नहीं करते। इस दरमियान ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और मांस शराब आदि से दूर रहते हैं। जूते नही पहनते है । सवा माह तक हरी सब्जी का सेवन नही करते हैं। इस अवधि में केवल एक दिन जलझूलनी एकादशी पर ही स्नान करते हैं।