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सूरजपोल प्रवेश द्वार पर कभी सूरजगढ़ नाम का बुर्ज था

सूरजपोल के संदर्भ में संवाद, बोले इतिहासकार मेनारिया, भविष्य में स्मार्ट सिटी के काम में पुराविद् का सदस्य हो

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सूरजपोल प्रवेश द्वार

सूरजपोल प्रवेश द्वार

उदयपुर. सूरजपोल दरवाजा शहर की पहचान के साथ ही एक महत्वपूर्ण ‘लेण्डमार्क’ है। इसकी दीवार का ध्वस्त होना अमूल्य धरोहर की क्षति के साथ ही लोगों की संवेदनाओं पर गंभीर आघात लगा है।
यह बात शान्तिपीठ की ओर से ‘मूल्य परक हमारी विरासत के साक्षी: सूरजपोल के संदर्भ में’ विषयक आयोजित संवाद में बोलते हुए वक्ताओं ने रखी। अध्यक्षता करते हुए वास्तुविद् डॉ. ललित पांडेय ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में संभवत: खुदाई में असावधानीवश सूरजपोल दरवाजे की दीवार गिर जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह अतीत से जुड़ी वास्तु पहचान ही नहीं अपितु उस समय के विज्ञान, तकनीक और सांस्कृतिक परम्पराओं को जानने का साधन है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारतीय पुरातत्व विभाग की ‘कन्जर्वेशन ब्रांच’ से सम्पर्क कर इसको पुनर्जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा भविष्य में एहतियातन स्मार्ट सिटी समिति में पुराविद् का सदस्य होना अनिवार्य किया जाना चाहिए। विशिष्ट अतिथि इतिहासविद् डॉ. राजशेखर व्यास ने कहा कि हमारे वास्तु चिन्ह् और स्मारक बदलते युगों पर भी नई पीढिय़ों को समाज से अखण्डित रखते आए है, इनका अनादर एवं उपहास अक्षम्य है। डॉ. जी.एल.मेनारिया ने कहा कि उदयपुर जिसे पूर्व का वेनिस और विश्व विरासत शहर कहा जाता है, मेवाड़ के सूर्यवंशी राज्य का प्रवेश द्वार सूरजपोल करीब 300 वर्ष के इतिहास का साक्षी है। इस ऐतिहासिक प्रवेश द्वार पर पहले कभी सूरजगढ़ नाम का बुर्ज था। उदयपुर शहर परगना गिर्वा सम्बन्धी विवरण प्रसिद्ध इतिहास लेखक महामहोपाध्याय कवि श्यामलदास ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक वीर विनोद के प्रथम खण्ड में लिखा- उदयपुर को भारत का एथेंस कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य अभियन्ता जी.पी. सोनी ने कहा कि अमरीका जैसे देशों में पुरामहत्व के निर्माण सौ साल से भी कम पुराने है पर उनकी सार संभाल और प्रचार पूरी निष्ठा से किया जाता है, किन्तु भारत में सैकड़ों वर्ष पुराने पुरामहत्व के निर्माणों पर हम गंभीर नहीं है। शान्तिपीठ के संस्थापक अनन्त गणेश त्रिवेदी ने कहा कि हमारी विरासतें और इनके वृत्तान्त ‘जेनरेशन गेप’ से हमें मुक्त रखेंगे, ये हमारे जीवन्त स्वाभिमान की पहचान है। संवाद में शिक्षाविद् कैलाश बिहारी वाजपेयी, डॉ. कमलसिंह राठौड़ ने सांस्कृतिक विरासत के महत्व को रेखांकित किया।