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राजस्‍थान में कई वनस्‍पत‍ियां और वन्‍यजीव हैं संकटग्रस्‍त, अभी नहीं बचाया तो कभी नहींं बचेंगे

- विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस विशेष, आईयूसीएन ने 2020 की रेड डेटा लिस्ट में कई वनस्पतियों व वन्यजीवों को रखा अति संकटग्रस्त की श्रेणी में

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Nature Conservation Day

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उदयपुर. प्रकृति संरक्षण के प्रयास अब भी नहीं किए गए तो वो दिन दूर नहीं जब ये भी विलुप्त हो जाएंगे। राजस्थान और मेवाड़ में मिलने वाली कई तरह की वनस्पतियों और वन्य जीवों को संरक्षण की दरकार है। स्विट्जरलैंड स्थित विश्व सरंक्षण संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने वर्ष 2020 की रेड-डाटा लिस्ट जारी की हैं, जिसके अनुसार सम्पूर्ण विश्व में अनेकों पेड़-पौधों एवं जन्तुओ की प्रजातियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

भारत में आईयूसीएन के सदस्य और मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डा. विनीत सोनी ने बताया कि विश्व में अभी तक 160 पेड़-पौधों की प्रजातियां सदैव के लिए लुप्त हो गई हैं। रेड-डाटा लिस्ट 2020 के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में 40,468 पेड़-पौधों की प्रजातियों को वर्तमान में सरंक्षित करने की आवश्यकता है। इसमें से 16 ,460 पादप प्रजातियां अति- दुर्लभ श्रेणी में है। इसी प्रकार भारत में 2063 पेड़-पौधों की प्रजातियां संकटग्रस्त है, जिनमें से 428 अति दुर्लभ हैं।

राजस्थान की अनेकों पादप प्रजातियां रेड लिस्ट में
रेड-डाटा लिस्ट 2020 के अनुसार, राजस्थान की पादप प्रजातियां एलिओटिस रोटलेरी, कोमिफोरा व्हीटी, डेलबरजिया कोंगेस्टा, क्लोरोफाइटम बोरीविलियेनम, रिनकोसिया हेनी और ट्रिबूलस राजस्थाननेन्सिस अति-दुर्लभ क्षेणी में सम्मिलित है। डा. सोनी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष रेड डेटा लिस्ट में अति-दुर्लभ पौधों की संख्या में वृद्धि एक चिंतनीय विषय है। वास्तव में जमीनी स्तर पर लुप्त हो रहे जीवों की संख्या इससे बहुत अधिक है। राजस्थान में वनस्पतियों के लुप्त होने का मुख्य कारण औषधीय गुणों के कारण इनका अतिदोहन, बढ़ता शहरीकरण और उपभोगवादी संस्कृति है। सरकार को वृक्षारोपण को सख्ती से कानूनन अनिवार्य करना चाहिए।


सार्थक प्रयासों से बढ़ रही है गुग्गुल की संख्या

बहुमूल्य औषधीय पौधा गुग्गुल, जिसका वानस्पतिक नाम कोमिफोरा व्हीटी है। राजस्थान की अरावली की पहाडिय़ों पर पाया जाता है। इस पौधे की गोंद के अतिदोहन के कारण ये पौधा वर्तमान में आईयूसीएन की अति-दुर्लभ श्रेणी में है। डा. विनीत सोनी ने बताया कि उनके द्वारा जमीनी स्तर पर 2008 से चलाए जा रहे गुग्गुल बचाओ अभियान एवं राजस्थान सरकार के वन विभाग के प्रयास के परिणाम अब सामने आ रहे हैं। अरावली की पहाडिय़ों में इस पौधे की संख्या में वृद्धि हुई है। वास्तव में यदि पेड़-पौधों के सरंक्षण हेतु जमीनी स्तर पर काम किया जाए तो विलुप्ति की कगार पर पहुंचे सभी पौधों को आसानी से संरक्षित किया जा सकता है।

- राजस्थान में करीब 39 पशु-पक्षी प्रजातियां और पेड़-पौधों की 40 प्रजाति दुर्लभ व विलुप्ति की कगार पर
- इनमें टाइगर, लेपर्ड, उडऩ गिलहरी, चूहा हिरण, चौसिंगा, घडिय़ाल, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी कई प्रजातियां शामिल हैं


संरक्षण के लिए करने होंगे प्रयास

वन्यजीवों की प्रजातियों के कम होने का प्रमुख कारण इनके आवास कम होना, इन पर खतरा होना और इन्हें भोजन ना मिल पाना है। वहीं, पेड़-पौधे भी इंसानों के शहरीकरण, औद्योगीकरण की बलि चढ़ रहे हैं। इस वजह से कई प्रजातियां आज खतरे में हैं। ऐसे में इनके संरक्षण के लिए सभी को प्रयास करने होंगे।
डॉ. सतीश शर्मा, वन्यजीव विशेषज्ञ्