
उदयपुर . कितने खुशनसीब होते हैं वे बच्चे जिन्हें मां का आंचल जमाने की हर नजर से बचाकर नाजों से पालता है। पिता की अंगुली थामे जीवन की डगर पर चलना सीखते हैं। माता-पिता बिन मांगे उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते और अपने जिगर के टुकड़े को पढ़ा-लिखकर होशियार बनाते हैं। जिंदगी के जरूरी फैसलों पर उनके साथ खड़े रहकर हौसला देते हैं। अब जरा कल्पना कीजिए उन बच्चों की जिन्हें जन्म से माता की गोद नसीब नहीं हुई।
वे जो पिता की डांट-डपट और सहारे के अहसास तक से नावाकिफ हैं। आंख खुली तो लगा जैसे सिर पर नीला आसमां उनका पिता और नीचे धरती ही उनकी मां है। राह चलते कभी ठोकर लगी तो रोने की बजाय उठकर चल दिए, क्योंकि उन्हें पता है कि उनका इस दुनिया में कोई है ही नहीं। ऐसे कई बच्चे जमाने भर की मुश्किलों और जिल्लतों की आग में तपकर कुुदन बन निखरे, पेश है मोहम्मद इलियास की रिपोर्ट:
11 अनाथों को मां जैसा दुलार दे रही शकीरा
पांच बहनों में मंझली शकीरा की अपनी अलग ही कहानी है। दुर्घटना में पिता गुलाम रसूल शेख की मौत के बाद परिवार पर एकाएक बिजली गिर गई। दो बड़ी बहनें संजीदा और जायदा दो छोटी बहनें नाजिया व साबेरा का विवाह हुआ लेकिन शकीरा ने अपना घर बसाने की बजाय अनाथों के बीच ही अपना खुदा ढूंढ़ा। बेसहारा और लावारिसों को सहारा देकर खुद को भी उसने मजबूत किया।
आज वह चित्तौडगढ़़ के आसरा विकास संस्थान में अनाथ लावारिस बच्चों की मां बनकर उनका लालन-पोषण कर रही है। वह 23 ऐसे बच्चों की देखभाल कर रही है, जिनमें 11 बच्चे अनाथ है। शकीरा इन बच्चों को आत्मनिर्भर के साथ ही पढ़ाई व समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के अलावा वो गुर भी सिखा रही है जो उनके जीवन भर काम आएंगे। हाल ही उसने कुछ बच्चों को कराटे की ट्रेनिंग दिलवाई तो कुछ को उनकी रुचि के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में तैयार किया। ऐसे में बच्चे भी अपनी पालनहार मां की उम्मीदों पर खरा उतरे। किसी ने कराटे में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। तो किसी ने पेंटिंग प्रतियोगिता में भी कामयाबी हासिल की।
एक बच्ची तो प्रशासन की बेटी बनकर अच्छे निजी स्कूल में तालीम ले रही है। शकीरा की इन बच्चों के प्रति की जा रही ईमानदार मेहनत को देखकर हर कोई हैरान है। लोगों का कहना है कि शिक्षा के प्रति समाज में पिछड़ा तबका होने के बावजूद शकीरा की यह सेवा पढ़े-लिखे वर्ग से बड़ी और अलग है। हाल ही उसे चित्तौडगढ़़ में बच्चों के संरक्षण के लिए बनी कमेटी में विशेषज्ञ के रूप में मनोनीत किया गया है। बकौल शकीरा ‘इंसान अपने कर्मों से ही बड़ा होता है। आज बिन मां-बाप के जिन बच्चों सेवा कर रही हंू, उन्हें समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार और खुशहाल बना पायी तो समझंूगी कि मेरा जीवन सार्थक हो गया।
अपनों ने नकार दिया तो परायों ने दी ‘ममता’
जाने ऐसी क्या मजबूरी थी कि महज डेढ़ साल की उम्र में मुझे उदयपुर-अहमदाबाद ट्रेन में लावारिस छोड़ दिया। जब मेरी आंख खुली और समझ आई तो मेरे सामने एक नहीं, कई मां थी। उन सबने मुझे कभी मां-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी। कई बच्चों के संग खेलते पता ही नहीं चला कब बड़ी हो गई। शहर के महिला मण्डल स्कूल में पढ़ते हुए कक्षा पहली से बारहवीं तक पढ़ाई की। बाद में मीरा गल्र्स कॉलेज में दाखिला पाकर वहां समाज कल्याण विभाग के हॉस्टल में तीन साल गुजारते बीए उत्तीर्ण की।
बकौल ममता ‘स्कूल-कॉलेज शिक्षा के दौरान कई बार और बच्चों के माता-पिता को देखकर अक्सर सोचती थी काश, मेरे भी मां-बाप होते, इसी तरह मुझे लाड़-प्यार करते..छुट्टियों में उनके साथ खूब घूमती, बातें करती। इसी सोच और समझ को बरकरार रखते पुलिस सेवा में जाने की ठानी ताकि अनाथों को उनके माता-पिता तक पहुंचा सकंू।’ इस बीच, ममता विवाह उसकी इच्छानुसार सराड़ा के उमाशंकर से होने के बाद उसने जहां एक ओर पुलिस भर्ती के लिए आवेदन किया है तो दूसरी ओर उसकी ख्वाहिश है कि समय रहते म्यूजिक में भी एमए की डिग्री हासिल की जाए।
Published on:
13 Nov 2017 03:00 pm
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