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ललित सक्सेना, उज्जैन। सांदिपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी। यहां कुंडेश्वर महादेव मंदिर में विराजित है कुबेर की 1100 साल पुरानी प्रतिमा। बताया जाता है कि यह भगवान श्रीकृष्ण को मिली थी। मान्यता है कि कुबेर की नाभि में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है। पं. शैलेंद्र व्यास के अनुसार शहर में कुबेर की आकर्षक प्रतिमा मंगलनाथ मार्ग स्थित महर्षि सांदिपनि आश्रम में है।
एक हाथ में सोम पात्र है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। कंधे पर धन की पोटली रखी है। तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप आकर्षक है। पुरावेत्ताओं के अनुसार यह प्रतिमा मध्य कालीन यानी 800 से 1100 वर्ष पुरानी है। जिसे परमार काल के शिल्पकारों ने बनाया था ।
गुरु दक्षिणा के लिए लाए थे धन
कुबेर पूजन के लिए धनतेरस पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। पुजारी व्यास के अनुसार प्रतिमा 84 महादेव में से 40वें क्रम पर श्री कुंडेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में विराजित है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण जब महर्षि सांदिपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर जाने लगे, तो गुर दक्षिणा देने कुबेर धन लेकर आए गुरु माता ने कृष्ण से कहा कि मेरे पुत्र का शंखासुर नामक राक्षस ने हरण कर लिया है। उसे मुक्त करा दो । यही गुरु दक्षिणा होगी। श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को राक्षस से मुक्त करा कर गुरु मात को सौंप दिया। प्रसन्न होकर गुरु माता ने श्रीकृष्ण को श्री की उपाधि दी, तभी से भगवान कृष्ण के नाम के साथ श्री जुड़ गया और वे श्रीकृष्ण कहलाए। इसके बाद श्रीकृष्ण त द्वारका चले गए, लेकिन कुबे आश्रम में ही रह गए।
Published on:
02 Nov 2021 05:25 pm
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