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Video नन्हे कान्हा ने गोपाल मंदिर में फोड़ी दही की मटकी…

कृष्ण जन्म के तिथि अनुरूप पांचवें दिन बछ बारस वत्स द्वादशी शनिवार को गोपाल मंदिर पर मटकी फोड़ का आयोजन हुआ।

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उज्जैन. कृष्ण जन्म के तिथि अनुरूप पांचवें दिन बछ बारस वत्स द्वादशी शनिवार को गोपाल मंदिर पर मटकी फोड़ का आयोजन हुआ। नन्हे बच्चे कान्हा का वेश धारण कर यहां पहुंचे और मुख्य द्वार पर लटकी दही से भरी मटकी को फोड़ी।

अनेक श्रद्धालु मौजूद थे
इस दौरान कई श्रद्धालु यहां मौजूद थे। शहर में सुहागिनों ने गाय बछड़े की पूजा की। कुछ महिलाओं ने शुक्रवार को बारस मानकर गाय बछड़े का पूजन किया। अर्पित जोशी ने बताया कि सुबह ११ बजे भगवान के चरण पादुका का पूजन, अभिषेक के बाद मटकी फोड़ कार्यक्रम आरंभ हुआ। इसके बाद दिन में भगवान की शयन आरती हुई। इधर, उदयकाल बारस के कारण शनिवार को महिलाओं द्वारा संतान की सकुशलता और परिवार के सुख की कामना के साथ गाय और बछड़े की पूजा की गई।

कृष्ण की बाल लीला
दही-माखन की मटकी फोडऩा भगवान श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं में से एक थी। गोपाल कृष्ण को लड्डू गोपाल भी कहा जाता है। वे गोपियों के घर में घुसकर वहां रखी दही माखन से भरी मटकियों को फोड़ देते थे।

क्यों करते हैं गाय-बछड़े की पूजा
कृष्ण जन्माष्टमी के बाद जो द्वादश तिथि आती है, उस पर महिलाएं गाय और बछड़े की पूजा करती हैं। यह प्राचीन परंपरा है, जिसका परिपालन आज भी वे करती हैं। किवदंती है कि एक बार सास अपनी बहू से कहकर जाती है कि गवले की सब्जी बना लेना। बहू गवला क्या होता है, जानती नहीं थी। उसे लगा गाय के बछड़े की सब्जी बनानी है, तो उसने बछड़े को काट कर उसकी सब्जी बना ली, जब सास जंगल से लौटी तो पूरी कहानी सुनकर उसके होश उड़ गए। उसने भगवान से प्रार्थना की कि है प्रभु गाय वापस घर लौटे इससे पहले इस बछड़े को जीवित कर दें। प्रभु ने उसकी विनती सुनकर फिर से गाय के बछड़े को जीवित कर दिया। तभी से इस दिन महिलाएं चाकू से कटी हुई सब्जी नहीं बनाती और न ही खाती हैं। तथा गाय-बछड़े की पूजा की जाती है।







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