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श्राद्ध पक्ष में हाथी अष्टमी पर्व: महाभारत काल से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी

महाभारत काल में अर्जुन ने मां कुंती के लिए स्वर्ग से ऐरावत हाथी बुलाया था। सुख-समृद्धि और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं।

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महाभारत काल में अर्जुन ने मां कुंती के लिए स्वर्ग से ऐरावत हाथी बुलाया था। सुख-समृद्धि और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं।

उज्जैन. श्राद्ध पक्ष की अष्टमी तिथि पर हाथी अष्टमी का पर्व शनिवार को मनाया जाएगा। अखंड सौभाग्य और सुख समृद्धि की कामना को लेकर महिलाएं और युवतियां इस व्रत को प्रतिवर्ष करती हैं। यह व्रत राधा अष्टमी से लेकर 16 दिन पूरे कर हाथी अष्टमी पर पूरा होता है।
पुजारी पं. राजेश शर्मा ने बताया नई पेठ स्थित अतिप्राचीन मंदिर में शनिवार को सुबह मां गजलक्ष्मी का 8 से 11 बजे तक दुग्धाभिषेक होगा। इसके बाद सोलह शृंगार कर महाआरती की जाएगी। वहीं शाम 6 से 9 बजे तक भजन संध्या का आयोजन होगा। माता का प्रिय भोग खीर नैवेद्य प्रसाद का भोग लगाकर भक्तों को वितरित किया जाएगा। इस अवसर पर धर्मप्राण जनता से विशेष शृंगार, महाआरती और अन्य आयोजन में शामिल होने का अनुरोध किया है।
दो हजार साल पुरानी स्फटिक से बनी दुर्लभ प्रतिमा
पं. शर्मा के अनुसार यह प्रतिमा दो हजार साल पुरानी है और स्फटिक से बनी है। करीब 5 फीट ऊंची है और एक ही पाषाण पर निर्मित है। मां गजलक्ष्मी की यह प्रतिमा ऐरावत हाथी पर सवार होकर पद्मासन मुद्रा में है। इसे सम्राट विक्रमादित्य के समय का बताया जाता है। इसके अलवा यहां विष्णु के दशावतार की काले पाषाण पर निर्मित अद्भुत प्रतिमा भी मौजूद है।
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क्यों मनाया जाता है हाथी अष्टमी पर्व
महाभारत काल में अर्जुन ने मां कुंती के लिए स्वर्ग से ऐरावत हाथी बुलाया था। सुख-समृद्धि और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए महिलाएं यह व्रत करती हैं। व्रत पूजन करते समय हाथी पर सवार लक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करने का विधान है। महालक्ष्मी में मिट्टी की गज हाथी की प्रतिमा को आम लोग घरों में रखकर पूजन करते हैं। महिलाएं 108 दूर्वा से मां लक्ष्मी को जल अर्पण करती हैं। इस पूजन के करने से घर में धन लक्ष्मी, वैभव का वास होता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार अश्विन मास महालक्ष्मी का माह माना गया है।