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गणेश विसर्जन की चौंकाने वाली तस्वीर … नाले के बीच रखी बप्पा की मूर्ति!

MP News: गणेश विसर्जन (Ganesh visarjan) के समय श्रद्धा का चेहरा बदल जाता है। पूजा के ढोल-नगाड़ों के बाद जब विदाई की बेला आती है, तो दिखावा और लापरवाही सामने आ जाती है।

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Ganesh visarjan ganapati bappa idol in drain ramghat ujjain mp news

Ganesh visarjan ganapati bappa idol in drain ramghat ujjain (Patrika.com)

Ganesh visarjan:उज्जैन में रामघाट क्षेत्र में धर्मराज मंदिर के पास शिप्रा में मिलने वाले नाले के बीच गणेश प्रतिमा को पत्थरों पर रख विसर्जन किया गया। धर्म नगरी में यह चौंकाने वाला दूश्य आस्था पर बड़ा आधात है। गणेश चतुर्थी वाले दिन विधि विधान के साथ प्रथमेश की प्रतिमाओं को घर-वपत्तरों में विराजमान किया जाता है।

9 दिन तक सेवा-पूजा आरती करते हैं और विसर्जन की बेला में यह दुर्व्यवहार क्यों, यह लापरवाही क्यों, जबकि शहर में अनेक स्थानों पर ननि की टीम सक्रिय रहती है, कई जगहों पर विसर्जन की व्यवस्था की जाती है। क्रेन से नदी, तालाब, कुंड में विधि अनुसार विसर्जन किया जाता है। त्तो क्या हमारे पास इतनी भी संवेदनशीलता नहीं कि हम बप्पा को सही ढंग से विदा भी करें। (MP News)

सवाल- भक्ति या दिखावा?

विघ्नहर्ता के आगमन से लेकर विसर्जन तक दस दिनों में भक्ति का खूब ढोल पीटा जाता है, लेकिन हकीकत विसर्जन के समय सामने आती है। भारत विकास परिषद विक्रमादित्य के संरक्षक भगवान शर्मा ने कहा कि विघ्नहर्ता को विदाई की बेला में असम्मानजनक स्थिति में छोड़ देना, भक्ति-आस्था का अपमान है। यह दिखाता है कि शायद पूजा का सार समझने की बजाय उसे दिखावे के रूप में निभाया जा रहा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियों को नालों या जल स्रोतों के किनारे छोड़ा जाता है, तो वे जल प्रदूषण करती हैं।

संत सत्कार समिति के श्याम माहेश्वरी ने कहा कि नगर निगम ने विसर्जन के लिए विशेष कुंड की व्यवस्था की थी। बावजूद कुछ लोगों का शॉर्टकट अपनाना गैर-जिम्मेदारी का प्रमाण है। इस तरह के फूल्य समाज, विशेषकर आने वाली पीढी को गलत संदेश देते हैं। वे सीखते हैं कि त्योहारों का मतलब केवल दिखावा है, उसके पीछे की भावना, सम्मान और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का कोई मूल्य नहीं है। (MP News)

ये सच्ची भक्ति नहीं- प्राचार्य डॉ. वंदना गुप्ता

कालिदास कन्या कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वंदना गुप्ता का कहना है कि सच्ची भक्ति केवल मूर्ति स्थापना और पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि उस आस्था को सम्मानपूर्वक और जिम्मेदारी के साथ निभाने में है। भगवान का स्वागत जितने गाजे-बाजे और उत्साह से हो। उनकी विदाई भी उतने ही सम्मान और सही रीति-रिवाज के साथ होनी चाहिए। यह हम सभी का वार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्व है। हमें इसका पालन जीवन में करना ही चाहिए। (MP News)