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स्मार्ट विलेज: न गांवों की सूरत बदली, न जीवन स्तर

स्वच्छ भारत अभियान को लेकर जनपद पंचायत अधिकारी पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। ग्रामीणों को सफाई के पहलू समझाने के लिए अफसर कोई कमी नहीं छोड़ रहे। 

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Lalit Saxena

Dec 12, 2016

In terms of smart village, the large problems

In terms of smart village, the large problems

कमलेश वर्मा@नागदा. स्वच्छ भारत अभियान को लेकर जनपद पंचायत अधिकारी पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। ग्रामीणों को सफाई के पहलू समझाने के लिए अफसर कोई कमी नहीं छोड़ रहे। हकीकत है, न गांवों की सूरत बदली न ग्रामीणों का जीवन स्तर। अन्य गांवों को छोड़कर स्मार्ट विलेज की बात करें, तो परेशानियां अपार है। सिंहस्थ के पूर्व शुरु हुआ शौचमुक्त विकासखंड (ओडीएफ) अमली जामा पहनने को तैयार नहीं। ग्रामीण आज भी खुले में शौच जा रहे है। कारण सरपंचों द्वारा शौचालय अभियान का प्रचार-प्रसार नहीं किया जाना।

समय-समय पर बैठके ली जा रही
जिला पंचायत अधिकारियों द्वारा समय-समय पर बैठके ली जा रही है। ग्रामीणों के लिए तमाम योजनाएं शुरू की जा रही है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही। चुनाव के बाद से सरपंच ग्रामीणों को चेहरा दिखाना तक भूल गए। स्वच्छ भारत के सपने से परे ग्रामीण घर महिला रिश्तेदारों के लिए मिट्टी की आड़ कर परंपराओं का निर्वहन कर रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान की तस्वीर बयां करती पत्रिका की विशेष रिपोर्ट...

पर्याप्त मात्रा में पेयजल तक नहीं
जिला पंचायत सीईओ रुचिका चौहान जिले के गांवों को ओडीएफ बनाने में जुटी है, लेकिन नागदा-खाचरौद विकासखंड के ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के लिए मोहताज है। ग्रामीणों के पास पर्याप्त मात्रा में पेयजल तक नहीं है। ज्यादा दूरी की बात नहीं है, शहर से 5 किमी दूर स्थित ग्राम स्मार्ट विलेज भगतपुरी की बात करें तो, ग्रामीणों को पेयजल खेतों से जुटाना पड़ रहा है। रविवार की छुट्टी का दिन बच्चे पेयजल जुटाने में बीता देते है। शौचमुक्त गांव क्या है बच्चों को पता नहीं है। पत्रिका टीम द्वारा घरों में शौचालय है या नहीं पूछे जाने पर...बच्चों का जवाब था कि घर में पतरे की आड़ है। जब मेहमान आते है तो उसका उपयोग नहाने के लिए किया जाता है।

पेयजल के लिए खेतों में पहुंचे
900 की आबादी वाल ग्राम भगतपुरी के ग्रामीणों के सामने बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। ग्राम में ना तो पक्की सड़के है ना ही पेयजल उपलब्धता। ग्राम के मुख्य मार्ग पर एक पेयजल टंकी है। जिसका उपयोग ग्रामीण पीने के लिए नहीं करते। कारण टंकी का निर्माण ग्राम के मुख्य द्वारा पर होना है। दूसरी ओर परेशानी यह है कि ग्रामीण महिलाओं को पेयजल के लिए खेतों के स्त्रोतों पर आश्रित होना पड़ रहा है। विद्युत व्यवस्था के अनुरूप ग्रामीण महिलाएं व बच्चे खेतों पर पहुंचकर पेयजल जुटाते हैं।

विकासखंड को 34 हजार शौचालय का लक्ष्य
नागदा खाचरौद विकासखंड को शौचमुक्त बनाने की कवायद सिंहस्थ के पूर्व से की जा रही है, लेकिन अधिकारियों की अनदेखी के कारण लक्ष्य के करीब तक नहीं पहुंचा जा रहा है। विकाखंड की 130 पंचायतों में 34 हजार शौचालय निर्माण किया जाना है। लेकिन अक्टूबर 2016 के अंत तक विकासखंड में 9 हजार शौचालय ही बन सके हैं। ग्रामीणों के सामने परेशानी प्रोत्साहन राशि का नहीं मिलना है। राशि नहीं मिलने की शिकायतों व समस्या को नागदा शहर में बीते दिनों उज्जैन सीईओ रुचिका चौहान ने एक सरपंचों व सचिवों की एक बैठक आहुत की थी। इस दौरान प्रोत्साहन राशि नहीं की परेशानी का समाधान करते हुए चौहान ने बताया था कि पूर्व के हितग्राहियों की राशि देने के बाद ही नए हितग्राहियों को राशि का आवटन होगा।




ऐसा है स्मार्ट विलेज उमरनी
खाचरौद मार्गपर स्थित 900 की आबादी वाला स्मार्ट विलेज उमरनी के किसी घर में शौचालय नहीं है। कुछ लोगों ने स्वयं की राशि खर्च कर शौचालय बना लिया, लेकिन प्रोत्साहन राशि का आज तक पता नहीं चला। ग्राम में महिला सरपंच दाखा बाई है। ग्रामीणों का तर्क है कि सरपंच ग्राम में झांकने तक नहीं आती। शौचालय बनाने के लिए क्या करना है, किस प्रकार पंचायत से प्रोत्साहन राशि लेनी है। हमें कुछ जानकारी नहीं है। ग्राम के करीब सभी घरों में बिता छत की मोरी(बाथरूम) है। जिसका उपयोग ग्रामीण महिलाएं नहाने व कपड़े बदलने के लिए करती है।

मुख्य सड़क बारिश में बन जाती मुसीबत
ग्राम उमरनी में सड़कों का जाल सालों पहले बिछा था। ग्रामीणों को याद नहीं की, ग्राम की सीसी रोड कब बनी थी। एक रोड बनाकर ग्रामीणों को विकास की शुरुआत समझाकर चुप करा दिया गया। परेशानी ग्रामीणों को ग्राम की अन्य सड़कों से है। ग्रामीणों का तर्क है ग्राम खेतों तक पहुंचने वाला मार्ग आज भी कच्चा है। बारिश के दिनों में मार्ग से गुजरने में भय लगता है।

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