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अद्भुत था उज्जैन के इस राजा का सिंहासन, करते थे न्याय…

नौ रत्न और 32 पुतलियों के साथ विराजे हैं उज्जैन के सम्राट विक्रम

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उज्जैन. सिंहस्थ अंतर्गत उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की प्रतिमा रूद्रसागर में स्थापित की गई थी। प्राचीन टीले पर 10 फीट ऊंचा प्लेटफॉर्म बना हुआ है, जिस पर सम्राट विक्रमादित्य की 25 फीट ऊंची प्रतिमा सिंहासन बत्तीसी पर स्थापित की गई है। प्रतिमा के सामने विक्रमादित्य के नौ रत्नों की मूर्तियां लगी हुई हैं। आसपास 5-5 फीट की 32 पुतलियों की पाषाण प्रतिमाएं भी सुशोभित हैं। इन ३२ पुतलियों के साथ उनसे जुड़ी कहानियां भी लिखी हैं, ताकि पढऩे के बाद सम्राट की बुद्धिमत्ता समझी जा सके। परिक्रमा पथ पर थ्रीडी वॉल बनाकर म्युरल बनाए गए हैं, जो उज्जयिनी और विक्रमादित्य से संबंधित हैं। टीले तक पहुंचने के लिए नया आर्च ब्रिज बनाया गया है।

रूद्रसागर में स्थापित है सिंहासन
रूद्रसागर विकास कार्य के चलते सिंहस्थ के दौरान सम्राट विक्रमादित्य की आलीशान प्रतिमा स्थापित की गई थी। साथ ही यहां सौंदर्यीकरण के कार्य भी हुए हैं। एक समय यह स्थान वीरान पड़ा रहता था, लेकिन डेवलपमेंट के बाद यहां लोगों की आवाजाही शुरू हो गई।

सिंहस्थ में लगे थे एक दर्जन से ज्यादा कैम्प
सिंहस्थ 2016 के दौरान रूद्रसागर में शंकराचार्य के साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक साधु-संतों के कैंप लगे थे। लगभग चार करोड़ रुपए की लागत से रुद्रसागर स्थित विक्रम टीले का विकास किया गया है। प्रोजेक्ट में आर्च ब्रिज के साथ ही पाथ वे, प्रतिमाओं की स्थापना, गैलेरी व अन्य सौंदर्यीकरण कार्य किया गया है।

तांत्रिकों को भाती है विक्रम-बेताल की नगरी
राजा विक्रम और बेताल पच्चीसी की कहानियां तो सभी ने सुनी होंगी, लेकिन ये सिर्फ कहानी-किस्से तक ही सीमित नहीं है, बल्कि महाकाल की इस पुण्य नगरी में तंत्र-मंत्र की साधना सिद्धियां भी खूब होती हैं।

कई राजाओं ने यहां की थी तंत्र साधना
बताया जाता है कि उज्जैन नगरी में कई राजाओं ने तांत्रिक साधनाएं की थीं। इनमें राजा भोज, विक्रमादित्य, भर्तृहरि आदि शामिल हैं। ये कुशल शासक तो थे ही, साथ ही तंत्र साधना में भी महान थे। इनकी शैव साधना के साथ शाक्त साधनाएं भी विख्यात रही हैं। कालिदास, भैरव, बेताल, हनुमान आदि अपनी कठिन तंत्र साधना के बल पर ही बौद्धिक, वैश्विक आदि से अलंकृत हुए थे।

अद्भुत था विक्रम का सिंहासन
विक्रमादित्य का सिंहासन तांत्रिक साधनों के बल पर ही बना हुआ था। उसमें ऐसे तांत्रिक यंत्रों को समाहित किया गया था कि पुतलियां स्वयं यथा अवसर बोलती थीं। राजा के संयम, बौद्धिक स्तर की परीक्षा लेने और कई मौकों पर उन्हें संबल प्रदान करती थीं। इसी तरह बेताल भी समय-समय पर संकट आने पर सब कुछ पहले ही अवगत करा देता था।