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महाभारत काल में राजा बर्बरीक ने की थी शिवलिंग की स्थापना

पर्वत पर विराजमान है मेलेश्वर महादेव, भस्मी से होता है दु:खों का निवारण

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उज्जैन. शहर से 42 किमी दूर उन्हेल स्टेशन के पास आलोट-जागीर मार्ग से सटे टीले पर स्थित मेलेश्वर महादेव मंदिर हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। क्षिप्रा-गंभीर नदी के संगम पर स्थित महाभारत काल के इस मंदिर की नींव भीम के पौत्र राजा बर्बरीक यानी खाटू श्याम ने रखी थी। इसी कारण सावन में यह आस्था का केंद्र है।

मान्यता है कि 5 हजार वर्ष पहले नागदा में नागदाह के बाद राजा जन्मेजय मेलेश्वर पहुंचे थे। कुछ दिन रुकने के बाद जन्मेजय ने महिदपुर में यज्ञ किया। वहीं महाभारत काल में कौरव-पांडवों के युद्ध के दौरान राजा बर्बरीक ने मेलेश्वर में यज्ञ किया था। यज्ञ के दौरान बर्बरिक ने शिवलिंग की स्थापना की। टीले पर शिवलिंग की स्थापना के बाद स्थानीय लोगों यहां मंदिर बनवाया। भारत के शिवालयों में मेलेश्वर का अलग महत्व है। पर्वत पर देवियों के मंदिर होते हैं और मेलेश्वर महादेव भी पर्वत पर विराजमान है, जो बहुत कम स्थानों पर होते हैं।

भस्मी से होता है दु:खों का निवारण
पंडित ईश्वर शर्मा ने बताया कि बर्बरीक ने शिवलिंग स्थापना के पूर्व यहां पर यज्ञ किया था। यह यज्ञशाला लोगों की आस्था के केंद्र के साथ दु:खों का निवारण करती है। इसकी भस्मी लगाने से सभी दु:खों का निवारण होता है। यहां दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं।

मेलेश्वर महादेव मंदिर बना आस्था का केंद्र
कौन हैं बर्बरीक महाभारत काल के पांच पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीम के पौत्र हैं राजा बर्बरीक। वह भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे हैं। वर्तमान में बर्बरीक बाबा खाटू श्याम के नाम से जाने जाते हैं। राजस्थान के खाटू में प्रतिमाह ग्यारस पर नगर से श्रद्वालु निशान यात्रा लेकर पहुंचते हैं।

मेलेश्वर महादेव मंदिर बना आस्था का केंद्र
कौन हैं बर्बरीक महाभारत काल के पांच पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीम के पौत्र हैं राजा बर्बरीक। वह भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे हैं। वर्तमान में बर्बरीक बाबा खाटू श्याम के नाम से जाने जाते हैं। राजस्थान के खाटू में प्रतिमाह ग्यारस पर नगर से श्रद्वालु निशान यात्रा लेकर पहुंचते हैं।