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जानिए…उज्जैन ही है कालगणना का केंद्र

विक्रम संवत् विशेष - संवत्सर आज से, पूर्व कुलपति व शिक्षाविद् प्रोफेसर रामराजेश मिश्र ने बताए ऐतिहासिक तथ्य

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Know ... Ujjain is the center of time calculation

उज्जैन. भारत का कैलेंडर पंचाग ज्योतिर्विज्ञान पूर्णत: वैज्ञानिक आधार पर है, ईसा से भी अनेक वर्षों पूर्व। फिर यह भिन्न कैलेंडर के उद्भव का क्या कारण है? दरअसल सभ्यताओं और संस्कृतियों को साम्राज्यवादी विचारों का सामना करना पड़ा, जिसका उल्लेख राज्य और उन पर होने वाले आक्रमणों में कम ही मिलता है। वैज्ञानिक अवधारणाओं में भारतीय प्राचीन सिद्धांत किस प्रकार से पछाड़ दिया गया यह आज का आहत प्रश्न है। काल गणना में पृथ्वी और आकाश मण्डल के गोल होने से स्थान को ही सापेक्ष, मान कर आगे बढ़ाने का काम किया।

यहां एक वास्तविक कारण है कि संसार के बिल्कुल बीच के भाग की धारणा भारतवर्ष में की गई और यहां से एस्ट्रोनॉमी (ज्योतिर्विज्ञान) विधा का आरंभ हुआ। बहुत सारे सिद्धांत आर्य भट्टीयन से लेकर पैतामह सिद्धांत, ब्रह्स्फूूत सिद्धांत आदि ने इसको स्थापित किया। यहां पर यह तथ्य भी सामने आया कि सृष्टि के आदि में सूर्य उदय के समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (रविवार) को काल का आरंभ हुआ। यहां पर लंका और उज्जैयनी को इसका केंद्र माना गया। इस संशय को वराह मिहिर ने पंच सिद्धान्तिका में और सूर्य सिद्धांत में दूर किया कि जब सूर्य उत्तर में परम क्रांति पर पहुंचता है, उस दोपहर में उज्जैन में शंकु (एक प्रकार की पतली छड़ी) की छाया अदृश्य हो जाती है। इसलिए ब्रह्मंड में सभी ग्रहों का गणित उज्जैयिनी के सूर्योदय और आधी रात से किया जाना प्रारंभ किया गया है। यानी समय की गणना के लिए उज्जैन ही प्रधान केंद्र बन गया।

लेकिन यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि ग्रीनविच से समय की गणना साम्राज्यवादी युग की देन है। भारतीय सभ्यता इससे बहुत आगे रही है। विदेशी साम्राज्यवाद ने बड़ी चतुराई से संस्कृतिहंता की भूमिका निभाई और साथ ही यह भी प्रयास किया कि सिद्धांतों को तकनीक की खोज में पिछड़ा हुआ सिद्ध किया जाए। इसलिए संवत का स्थान सन ने ले लिया। यानी कैलेंडर और उसके प्रतिमानों को ही बदलने का काम तेजी से कर डाला। आज भी उज्जैन काल गणना का केंद्र है। इस बीच इस्टीफन हॉकिन्स भी सृष्टि के सृजन काल को ऊर्जा का विस्फोट और सापेक्षता के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हैं। यह बात साफ है कि इसमें भी स्थान और गतिशीलता सापेक्ष है। अत: उज्जैन काल गणना केंद्र की मान्यता को प्रबल करता है। इस बीच विदेशी आक्रमणकारियों को साम्राज्यदियों के कैलेंडर के आने से पूर्व विक्रमादित्य द्वारा उखाड़ फेंका गया। विक्रम संवत प्रारंभ किया था, लेकिन इस विचार को पिछड़ा और दकयानूसी बताकर पाश्चात्य विचार ने हाशिए पर खड़ा कर दिया। इधर नोबेल पुरस्कार विजेता आमत्र्यसेन ने विश्व की काल गणना को पुन: भारत से एवं उज्जैन से करने की बात कही थी। यह सही है कि ग्रीन विच का संदर्भ साम्राज्यवादी संदर्भ था। जिसने भारत की काल गणना के केंद्र उज्जैन को हाशिए में कर दिया। जो कि अब पुन: स्थापित हो गया है। उज्जैन का डोंगला इसका प्रमाण है।
प्रो. रामराजेश मिश्र, पूर्व कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय

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