मानस महाकाव्य ही नहीं, महामंत्र भी है। कलि पावनातार तुलसी ने कहा है, साधक इसका अनुष्ठान पारायण करेगा। उसके कुअंक मिट जाएंगे। अपने पवित्र ग्रंथ के प्रति ईष्ट भाव होना ही चाहिए। सवाल दृढ़ भरोसे का है। सद्ग्रंथ वह है, जो ईश्वर की राह बताए। विश्व वंदन गांधी बापू भी कहते थे कि जो व्यक्ति रामायण, महाभारत को नहीं जानता है, उसे भारतीय होने का अधिकार नहीं है।