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सम्पादकीय: गुलाब कोठारी की कलम से ऑर्डर, ऑर्डर…!

जीने का एक और तरीका भी है कि मैं अपने लिए जीने के साथ-साथ समाज के लिए भी जीऊं। देश और धरती मां का ऋण भी चुकाऊं। समाज के विकास में आने वाली बाधाओं और बाधा पहुंचाने वालों के साथ संघर्ष करने के लिए सदा तत्पर रहूं।

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Lalit Saxena

Apr 23, 2016

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गुलाब कोठारी@पत्रिका.व्यक्तिगत जीवन में पवित्रता और समग्रता से व्यक्ति की पहचान बनती है। सार्वजनिक जीवन में दूसरों के लिए भी चिंतन करना होता है। मेरे व्यवहार से कोई आहत न हो तथा मैं दूसरों के आध्यत्मिक विकास में सहायक बनूं। खोटे व्यक्ति को गाली देने से अपना ही मन काला होता है। अगले के असर कुछ होने वाला नहीं। न ही हम किसी का भाग्य बदल सकते हैं। हमें तो बस अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।

जीने का एक और तरीका भी है कि मैं अपने लिए जीने के साथ-साथ समाज के लिए भी जीऊं। देश और धरती मां का ऋण भी चुकाऊं। समाज के विकास में आने वाली बाधाओं और बाधा पहुंचाने वालों के साथ संघर्ष करने के लिए सदा तत्पर रहूं। इस मार्ग से चलकर मैं नई और ऊंची मंजिल तक पहुंच सकता हूं। कृष्ण का बाल्यकाल तो असुरों से ब्रजभूमि को मुक्त करने में ही बीता। कुरुक्षेत्र में कौरवों को निपटाया।

राम ने छोटी आयु में ही असुरों से यज्ञ भूमि को मुक्त कराना शुरू कर दिया था। रावण वध तो उनके लिए लक्षित उपलब्धि थी। कृष्ण यह भी कह गए हैं-'ममैवांशो जीव लोके, जीवभूत सनातन:। 'अर्थात् कृष्ण हम सबके भीतर बैठा है। सुप्त है। हमें उसको जगाना है। भ्रष्ट असुरों से समाज को मुक्त करने का यही एक मार्ग है। आज देश लुट भी रहा है तथा विदेशी निवेश के नाम पर बेचा भी जा रहा है। धरती को निजी सम्पदा मानकर उसका दोहन किया जा रहा है। गाना पर्यावरण विकास का गाते हैं और पेड़ सारे काटे जा रहे हैं। न छाया, न ही वर्षा। पक्षियों के आश्रय उजड़ गए, लाखों की संख्या में मर गए। लोग आज भी उनके लिए परीण्डे लगा रहे हैं। धिक्कार है ऐसे दरिन्दों को!

हममें प्रत्येक युवा को गणपति का अवतार बन जाना चाहिए। कल के अंक में एक चित्र दिखाया गया था भ्रष्टाचार और न्यायपालिका की लाचारी का। विधायिका और कार्यपालिका ने तो अपना गठजोड़ बना लिया है-भ्रष्टाचार को परवान चढ़ाने का। दोनों मिलकर न्यायपालिका को घेरने में लगे हुए हैं। यह तो बिल्कुल स्पष्ट हो गया। कुछ न्यायाधीश भी धन और तन में फंसने लगे हैं, किन्तु अधिकांश अभी भी सामाजिक तथा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर फैसले करते हैं।

कल कुछ उदाहरण भी हमारे सामने थे जहां चुनी हुई सरकारें सामन्तों की तरह व्यवहार कर रही हैं। भोगों में भी आकण्ठ डूबी हुई हैं। हर बड़े अपराधी को, पुख्ता सबूत होने पर भी सरकारें बचाने में जुटी रहती हैं। क्योंकि भ्रष्टाचार का बड़ा हिस्सा तो ऊपर जाता है। यदि अशोक सिंघवी को सजा होती है तो आंच मुख्यमंत्री तक पहुंचेगी। उसको बचाना ही 'जनहित' में है।

मध्यप्रदेश में, व्यापमं के कारनामों को अथवा वहां के अन्य घोटालों को सच में छानबीन के लिए खोलोगे, तब क्या ऊपर वाले बच सकेंगे। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के 'सलवा जुडुम' के साथ नक्सलियों से मुठभेड, कोयला घोटाला को सार्वजनिक करेंगे तो क्या सी.एम. बचेंगे?

उदाहरण हर प्रदेश में सैकड़ों-हजार हैं। क्या हमें बैठे-बैठे इनको गिनते रहना है। हमारी संवेदना को काठ क्यों मार गया। क्यों युवापीढ़ी का खून नहीं खौलता? क्या यह उम्र वापिस मिल पाएगी आपको? यह तो कुछ 'कर गुजरने' की उम्र है। जाग जाओ! पहले संकल्प करो कि देश-प्रदेश के लिए कुछ करना है। बाधा पहुंचाने वालों की भी तबियत ठीक करनी है। उसका एक तरीका यह भी है कि यदि किसी का भ्रष्टाचार प्रमाणित हो जाता है तब, उसका सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए। भले ही वह आपके क्षेत्र का जनप्रतिनिधि ही क्यों न हो।

आपने भी पढ़ी होगी सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी-'यदि भ्रष्टाचार के आधार पर ही सरकारों को बर्खास्त किया गया तो कोई नहीं बचेगा। 'लेकिन अभी तक सभी बचे हुए हैं क्योंकि न्यायालयों की एक सीमा भी हैं। इस सीमा को केवल जनता ही लांघ सकती है। आगे युवावर्ग चले! मान लो न्यायालय ने व्यापक जनहित से जुड़े जयपुर के रामगढ़ बांध को लेकर एक निर्णय दिया कि, उसके भराव क्षेत्र में आने वाले तमाम अतिक्रमण तोड़ दिए जाएं! यह निर्णय लागू करना है, सरकार को-प्रशासन को। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि, अधिकांश अतिक्रमण नेता, अफसर और पैसे वालों ने ही किए हैं, उन्हीं की शह से हुए हैं। तब क्या वे उन्हें तोड़ेंगे? नहीं तोड़ेंगे लेकिन कोर्ट के सामने अपने हाथ-पांव बचाते हुए पालना रिपोर्ट पेश कर देंगे।

यहां काम आपका-हमारा यानी जनता का है कि, वह सच को न्यायालय के सामने लाए। कितने हटे, कितने नहीं हटे पर पूरे दस्तावेजी सबूत कोर्ट में जज साहब के सामने पेश करें। यह तो एक मामला है। कोर्ट के आदेश वाले हर मामले की पालना पर जनता निगाह रखे। राजस्थान में भी और मध्यप्रदेश में भी। छत्तीसगढ़ में भी और गुजरात में भी। पूरे देश में।

जब अदालती अवमानना के सबूत कोर्ट में पहुंचने लगेंगे तब देखना कोर्ट कैसे सरकारों को, उनके अफसरों को एक टांग पर खड़ा रखती है। मास्टर प्लान के उल्लंघन पर मैंने स्वयं एक पत्र उच्च न्यायालय को लिखा था। जरूरत हर मामले में जागरुकता की है। नौकरशाही को जब यह लग गया कि, कोई इस काम पर निगाह रख रहा है तब वह तो दौड़-दौड़ कर अदालती निर्णयों को लागू करेगी।

इसी तरह आपके सामने भ्रष्टाचार का कोई भी मुद्दा आए, आप प्रमाण सहित, मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखें। जरूरी समझें तो उसकी एक प्रति पत्रिका तक भी पहुंचा सकते हैं। हम इस कार्य से न्यायालय को 'शक्ति' देंगे। यदि कोई झूठे प्रमाण देकर बरी हो जाए और आपके पास प्रमाण हों, तो तुरन्त पत्र तो लिख ही दें। मन को नित्य प्रात: संकल्पित करते रहें। ग्लैमर और मनोरंजन इस उम्र की कालिख है। इसके बजाए तो अपने खून से इस क्रान्ति का इतिहास लिख जाएं।

भविष्य आपका है। आप ही कर्णधार भी होंगे। जो हालात आगे होंगे, उनको भी तो आप ही भोगने वाले हैं। आज 70 साल बाद भी लोगों के पास पीने को पानी नहीं है। प्रभावशाली लोगों के घरों में लॉन और तरणताल है। आधी जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे है। यह इस बात का प्रमाण है कि विधायिका तथा कार्यपालिका की नीयत कैसी है। लगता नहीं कि उनको आम आदमी तथा देश की चिन्ता भी है।

युवाशक्ति एक आशा है। गांव-गांव में छोटे-छोटे दल बनाकर, आर.टी.आई. के जरिए सूचनाएं बटोरकर, मीडिया में छपे समाचारों की पड़ताल करके हमें भ्रष्टाचार और अदालती फैसलों की अवमानना की गाड़ी को गणपति बनकर रोक देना है। पत्रिका सदा आपके साथ रहेगी। ईश्वर भी उसकी मदद करता है जो अपना कर्म करता है। देख लेना, यदि कर गुजरे तो जीवन के विकास का 'ऑर्डर' बदल जाएगा!

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