
प्रवीण नागर
पैसे कमाने के लिए लोग किस हद तक जा सकते हैं, इसका खुलासा प्रदेश में हो रहे एक नए कारनामे से हुआ है। उज्जैन में एक एनजीओ (ngo) हर साल करोड़ों का अनुदान लेने के लिए शहर से वैश्यावृत्ति को खत्म ही होने नहीं दे रहा। उसका यह कागजी खेल वर्षों से जारी है, जबकि उज्जैन का रेड लाइट एरिया वर्षों पहले बंद हो चुका है।
एनजीओ के मुताबिक उज्जैन शहर में 1377 रजिस्टर्ड फीमेल सेक्स वर्कर (एफएसडब्ल्यू) काम रही हैं। इनमें से एक्टिव हाइरिस्क ग्रुप (एचआरजी) में 722 हैं। इस सूची में संभ्रांत परिवार की महिलाओं के नाम भी हैं, जिनके पते बदले गए हैं। कागजों में यह गंदा खेल वर्षों से सेठी नगर स्थित एनजीओ में चल रहा है। पिछले दिनों इसे लेकर शिकायत हुई, तब इस कारस्तानी का खुलासा हुआ।
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) देश में एचआइवी (एड्स) को नियंत्रित करने का काम करता है। नाको इसके लिए एनजीओ को जिम्मेदारी सौंपता है। सेठीनगर स्थित किराए के मकान में चल रहा एनजीओ कई वर्षों से शहर में 1377 से ज्यादा सेक्स वर्कर बताकर करोड़ों रुपए का अनुदान ले चुका है। आरोप है कि इनमें 10-15 प्रतिशत महिलाएं संभ्रात और परिवार से हैं।
सरकारी गाइडलाइन और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण (नाको) के अनुसार फीमेल सेक्स वर्कर की पहचान गुप्त रखना जरूरी है। इसी का फायदा उठाकर एनजीओ शहर की बस्तियों और अनपढ़ महिलाओं के नाम-पते जुटाते हैं। इनके आधार कार्ड और फोटो के आधार पर मंथली इंफोर्मेशन ट्रेकिंग रिपोर्ट तैयार किया जाता है। यह रिपोर्ट हर माह ऑनलाइन गूगल पर फिलअप कर मप्र राज्य एड्स नियंत्रण समिति भोपाल को भेजी जाती है। इनमें से 722 महिलाओं को एचआरजी में रखा है। बस्तियों की अनपढ़ महिलाओं में से कई को तो रेगुलर मंथली चेकअप (आरएमसी) के लिए भी ले जाया जाता है। इसका फायदा एनजीओ को यह मिलता है कि उसे अनुदान मिलता रहता है।
एनजीओ के साथ डॉक्टर भी इस कागजी खेल में शामिल हैं। महिलाओं का मंथली चेकअप, उनकी दवाइयां, सुरक्षा के साधन, सेनेटरी से लेकर समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए हर माह करोड़ों का बजट है। इसके लिए माधवनगर, जीवाजीगंज और चरक अस्पताल में सेंटर बनाए गए हैं। इसमें जुलाई 2021 तक डॉ. शबीना अंजूम, डॉ. महेन्द्र तिवारी और डॉ. अजय कछावा महिलाओं की रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। इनमें एचआइवी, गुप्त, सिफलिस, टीबी, सहित अन्य जांच की जा रही थी।
समय-समय पर शहर में फीमेल सेक्स वर्कर की कम्युनिटी बेस्ड स्क्रीनिंग की जाती है। इसके लिए नाको के अधिकारी पहुंचते हैं। वे एनजीओ के साथ बस्ती में जाकर अनपढ़ महिलाओं से पूछते हैं, आप एफएसडब्ल्यू या एचआरजी हैं तो वह बिना कुछ समझे हां में सिर हिला देती हैं। इस तरह स्क्रीनिंग की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
नाको एड्स नियंत्रण के लिए 11 करोड़ रुपए वार्षिक का बजट सेठी नगर स्थित एनजीओ का है। इसकी स्क्रीनिंग के लिए टीम आती है। किसी भी मोहल्ले की महिला को 500 से 1000 रुपए का लालच देकर उन्हें 15 मिनट के लिए इकट्ठा कर लिया जाता है।
मुझे 6 माह पहले ही अनियमितताएं सामने आने के बाद एनजीओ का कार्यवाहक प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया है। लिस्ट में फर्जी नाम जोड़े गए, यह जानकारी गलत है। हम तो एड्स नियंत्रण के लिए काम कर रहे हैं, फिर चाहे वह सेक्स वर्कर हो या कोई भी।
- शैलेन्द्र व्यास, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, एनजीओ
Updated on:
05 Mar 2025 03:18 pm
Published on:
20 Aug 2022 12:10 pm
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