
Simhastha 2028 in Ujjain Date Announced: सिंहस्थ 2028 (Simhatha 2028) को लेकर उज्जैन से राजधानी तक तैयारियां तेज हो गई हैं। मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने सिंहस्थ 2028 की तैयारियों को लेकर बैठक ली। अभी तक कार्ययोजना में 18 हजार 840 करोड़ की लागत से 523 कार्य प्रस्तावित किए जा चुके हैं। इनमें अधिकांश स्थायी प्रवृत्ति के कार्य हैं जिनका लाभ सिंहस्थ के बाद भी मिलेगा। प्रशासन इस बार सिंहस्थ 2028 में 14 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का आकलन कर रहा है। यह आंकड़ा सिंहस्थ-16 से लगभग दो गुना है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (MP CM Mohan Yadav) ने मंगलवार को भोपाल में सिंहस्थ-2028 (Simhastha-2028) के आयोजन को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा, सिंहस्थ 2028 के लिए पशुपतिनाथ मंदसौर, खंडवा स्थित दादा धूनी वाले, भादवामाता, नलखेड़ा, ओंकारेश्वर आदि तक सुगम आवागमन और उनके अधोसंरचना सुधार को सम्मिलित करते हुए उज्जैन-इंदौर संभाग को समग्र धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित किया जाए।
उन्होंने निर्देश दिए कि शिप्रा के घाटों का विस्तार और पर्याप्त पार्किंग व्यवस्था की जाए। आगंतुकों की संख्या का अनुमान लगाकर उज्जैन पहुंचने वाले सभी मार्गों पर मूलभूत सुविधाओं सहित गेस्ट हाउस विकसित करें। उज्जैन से लगे ग्रामीण क्षेत्र में होमस्टे व्यवस्था को भी प्रोत्साहित किया जाए। बैठक में उज्जैन से संभागायुक्त डॉ. संजय गोयल, कलेक्टर नीरज कुमार सिंह व अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
1. शास्त्रों के मुताबिक... ऋषि दुर्वाषा के शाप से देवताओं की सारी शक्तियां चली गईं। ऐसे में असुर शक्तिशाली हो गए और राजा बलि के नेतृत्व में उन्होंने संपूर्ण लोकों पर आधिपत्य कर लिया। व्याकुल देवताओं ने विष्णु से मदद मांगी। विष्णु ने देवताओं को अमृत पान का सुझाव दिया। अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन जरूरी था, तो देवताओं और विष्णु की मध्यस्थता के बाद तैयार असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन का निश्चय किया।
2. विशाल कछुए के रूप में विष्णु की पीठ पर रखकर मंदराचल पर्वत और शिव के गले में पड़े वासुकी नाग के जरिए समुद्र मंथन शुरू किया गया। देवताओं ने वासुकी की पूंछ पकड़ी जबकि असुरों को उसके सिर की तरफ का हिस्सा पकड़ने के लिए कहा गया।
3. समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले। इनमें से एक अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद शुरू हो गया। क्योंकि अमृत से देवताओं को उनकी शक्ति वापस मिल सकती थी और असुर इसे पीकर अमर हो सकते थे। लेकिन विष्णु नहीं चाहते थे कि अमृत असुरों के हाथ भी लगे।
4. विष्णु ने अमृत के साथ प्रकट हुए धन्वंतरि को अमृत कलश लेकर इशारा किया कि वे आकाश में उड़ जाएं। लेकिन असुर उनके पीछे दौड़ने लगे। अमृत कलश को लेकर छीना-झपटी होने लगी।
5. छीना-झपटी में ही अमृत कलश छलक पड़ा, उसकी कुछ बूंदें धरती पर गिर गईं। जहां-जहां ये बूंदें गिरीं आज वहीं पर कुंभ का आयोजन किया जाता है।
अमृत की बूंदें हरिद्वार में गंगा नदी, प्रयाग की संगम, उज्जैन की क्षिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी में गिरीं। लिहाजा देश के इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच 12 दिन विवाद चला। यही कारण है कि कुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है। हालांकि हरिद्वार और प्रयाग में प्रत्येक 6 वर्ष पर अर्धकुंभ का भी आयोजन किया जाता है।
* कुंभ मेले में सूर्य और बृहस्पति का खास योगदान माना जाता है। सूर्य देव और गुरु बृहस्पति के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने पर ही कुंभ मेले को मनाने का स्थान और तिथि का चुनाव किया जाता है, इसीलिए...
- उज्जैन- जबकि अंत में कुंभ मेला उज्जैन में तब मनाया जाता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करे और सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहा हो।
- नासिक- जब बृहस्पति और सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश हो तो, यह महान कुंभ मेला महाराष्ट्र के नासिक में मनाया जाता है। इसके अलावा यदि बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा तीनों कर्क राशि में प्रवेश करें और साथ ही अमावस्या का समय हो, तब भी कुंभ नासिक में ही मनाया जाता है।
- हरिद्वार- जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में आता है, तब यह धार्मिक आयोजन हरिद्वार में किया जाता है।
- प्रयाग- जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तो यह उत्सव प्रयाग में मनाया जाता है।
उज्जैन में आयोजित कुंभ को सिंहस्थ कुंभ भी कहा जाता है। दरअसल सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश होने के कारण ही मध्य प्रदेश के उज्जैन में मनाया जाने वाला कुंभ 'सिंहस्थ कुंभ' कहलाता है।
एक मान्यता के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच 12 दिन तक चले युद्ध के कारण कुल 12 कुंभ का आयोजन किया जाता है। लेकिन इनमें से पृथ्वी पर केवल 4 ही कुंभ आयोजित किए जाते हैं, बाकी 8 कुंभ स्वर्ग में देवताओं द्वारा आयोजित किए जाते हैं।
कुंभ की शुरुआत जूना अखाड़ा के साधु-संतों के शाही स्नान के साथ होती है। इसके बाद एक-एक करके कुल 13 अखाड़े अपने निर्धारित क्रम में स्नान करते हैं। ये सभी अखाड़े शैव संप्रदाय- आवाह्न, अटल, आनंद, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, जूना, गुदद तथा वैष्णव संप्रदाय- निर्मोही, दिगंबर, निर्वाणी और उदासीन संप्रदाय- बड़ा उदासीन के साथ ही नया उदासीन निर्मल संप्रदाय- निर्मल अखाड़ा था।
Updated on:
06 Mar 2024 04:07 pm
Published on:
06 Mar 2024 03:47 pm
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