
Snake Bite prevention (फोटो सोर्स : पत्रिका)
Snake Bite: सांप को लेकर इस सीजन में विशेष सावधानी रखने की जरूरत है, क्योंकि प्रदेश सहित जिले में स्नेक बाइट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मप्र में एक साल में करीब तीन हजार लोग सर्पदंश से जान गंवा रहे हैं। आठ हजार से अधिक लोगों को जहर से प्रभावित अंग कटवाना पड़े हैं और तीन साल में सरकार को मृतकों के परिवार को 200 करोड़ से अधिक की राहत राशि बांटना पड़ी है।
सर्पदंश कितना बड़ा खतरा है, इस बात से समझ सकते हैं कि सरकार को इसे राज्य आपदा में शामिल करना पड़ा है। बारिश के सीजन में यह खतरा और भी बढ़ जाता है। दरअसल इस दौरान बिलों में पानी भरने से सांप बाहर निकलकर भोजन व सूखे स्थान की तलाश में यहां-वहां जाते हैं। ऐसे में सांप और इंसान का आमना-सामना होने की स्थिति बढ़ जाती है और कई बार यह सर्प दंश का कारण भी बन जाती है। घटनाओं में कमी लाने के लिए शासन-प्रशासन लगातार एडवाइजरी जारी कर रहे हैं। साथ ही वीडियो, समाचार आदि के माध्यम से जन जागरण के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
मप्र में सर्पदंश(snake poison) की स्थिति चिंताजनक है। इससे होने वाली मौतों को लेकर अलग-अलग एजेंसी की अलग-अलग रिपोर्ट है। विशेषज्ञ बताते हैं, एनसीआरबी की रिपोर्ट अनुसार, सर्पदंश से प्रदेश में एक साल में करीब तीन हजार लोगों की मौत होती है। मौतों का यह आंकड़ा देश के अन्य प्रदेशों की तुलना में सर्वाधिक है।
हालांकि सरकार की ओर से ऐसी कोई अधिकृत जानकारी सामने नहीं आई है। इसी तरह एनएचएम के अनुसार प्रदेश में एक साल में औसत करीब 2700 और राजस्व रेकॉर्ड अनुसार तीन हजार से अधिक लोगों की मौत होती है। प्रदेश में सागर, छिंदवाड़ा, बैतूल सहित 10 जिले ऐसे हैं जहां सर्पदंश की सर्वाधिक घटनाएं होती हैं। इनमें मालवा में रतलाम जिला भी शामिल है।
प्रदेश में सांप के डंसने से मृत्यु होने पर सरकार द्वारा आपदा राहत के अंतर्गत परिजनों को अधिकतम चार लाख रुपए की सहायता राशि दी जाती है। इस मद से तीन साल में 200 करोड़ रुपए से अधिक की राशि वितरित की जा चुकी है। प्रदेश में 50 और जिले में 27 प्रजाति के सांप मप्र में करीब 50 प्रजाति के सांप पाए जाते हैं। इनमें से जिले में 27 और शहर में 13 प्रजाति मिलती है। इन 13 प्रजातियों में से तीन अतिविषैले सांप कोबरा, रेसल वाइपर (दीवड़) व कामन करेत यहां पाए जाते हैं। इनके अलावा डेंडू, धमन, घोड़ापछाड़, अलंकृत, कुकरी, माटी का सांप, सीता की लट जैसे अविषैले सर्प भी बहुतायत हैं।
शहर में: बिल में पानी भरने से सांप सूखे स्थान की तलाश में घरों में घुसने का प्रयास करते हैं। इसके लिए उनके पास बाथरुम का पानी बाहर निकालने वाले आउटलेट पाइप का रास्ता सुलभ रहता है। पाइप पर बारिक जाली लगा सकते हैं। सांप के घर में आने की संभावना 70 प्रतिशत खत्म हो जाएगी।
सफाई रखें: बड़े मकानों में गार्डन, लॉन,स्टोर आदि रहता है। इनमें अनुपयोगी सामग्रियों का जमावड़ा न होने दे। सफाई रखें। इससे सांपों को रहने-छिपने की जगह नहीं मिलेगी।
भोजन के लिए सांप-चूहों की तलाश में घर में आ जाते हैं। घर में चूहे न हों, ऐसी व्यवस्था करें।
यदि घर में बेल लगी हैं जो पहली दूसरी मंजिल तक जाती हैं तो इससे बचें। सांप इनके सहारे ऊपर चढ़ सकते हैं।
गांव में : कई घरों के नजदीक ही मवेशियों के बाड़े होते हैं। इनमें, चारा, भूसा, लकड़ी के ढेर आदि होते हैं जो सांपों के रहने के लिए आदर्श स्थान हैं। पशु बाड़े अपने घरों से थोड़ी दूरी पर बनाए।
हाथों में दस्ताने: खेतों में आने-जाने के लिए बड़े बूट, हाथों में दस्ताने का उपयोग करें।
जमीन पर सोने से बचें। यदि जमीन पर सो भी रहे हैं तो मच्छरदानी का उपयोग करें और इसे अच्छी तहर गद्दे के नीचे दबाकर सोएं।
टार्च: अंधेरे में टार्च का उपयोग जरूर करें।
सांप और ग्रामीणों के बाहर निकलने का समय समान होता है, इसे बदलें। सांप सुबह 7 से 9.30 बजे के बीच और शाम को 6-7 बजे के आसपास अधिक सक्रीय होते हैं। इस समय बाहर निकलने से बचें या अतिरिक्त सावधानी बरतें।
-पीड़ित को शांत रखें, घाव को स्थिर व खुला रखें।
-सांप की पहचान की कोशिश करें (रंग/आकार)।
-घाव को न काटें ना चूसें।
-बर्फ, शराब या घरेलू इलाज का प्रयोग न करें।
-झाड़-फूंक या ओझा-तांत्रिक पर भरोसा न करें।
-नि:शुल्क 108 संजीवनी एबुलेंस को बुलाएं।
मप्र में सर्प दंश की घटनाएं न सिर्फ बड़ी चुनौती बल्कि बड़ी चिंता का विषय भी है। सर्प दंश की से हर साल होने वाली मौतों को लेकर अलग-अलग एजेंसी की अपनी रिपोर्ट है। एनसीआरबी ने तो सर्प दंश से होने वाली मौतों में मप्र को सबसे ऊपर बताया है। सर्प दंश की घटनाओं से बचने के लिए जरूरी है कि हम सांपों के बिहेवियर को समझे, साथ ही अपने बिहेवियर में भी बदलाव लाएं। घर व आसपास ऐसी स्थितियां न बनने दें जो सांपों के रहने के लिए आदर्श होती हैं। दक्षिण भारत में तुलनात्मक सांप अधिक है लेकिन वहां के लोग इसको लेकर जागरूक है इसलिए स्नेक बाइटिंग या इससे मौत की घटना कम होती है। इसलिए जनजागरण की भी आवश्यकता है।- मुकेश इंगले, डायरेक्टर रेक्टल कन्जर्वेशन एंड रिसर्च सेंटर
Published on:
04 Jul 2025 04:20 pm
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