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गरीब बच्चों को फ्री देने के लिए 30 साल से पतंग बना रहे सरकारी अधिकारी सुरेश कुमार

जर्मन ताव की अपने खर्च पर 30 वर्षों से पतंग बनाकर बांट रहे सुरेश कुमार बड़गोत्या, अहमदाबाद से जर्मन कागज तो बांस खरीदकर बनाते कीमची,एक ऐसा पतंगबाज भी... अपने हाथों से पतंग बनाकर गरीब बच्चों को बांटते हैं खुशियां

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गरीब बच्चों को बांटते हैं खुशियां

उज्जैन. हर कोई पतंगबाजी का शौक रखता है लेकिन शहर में एक ऐसे भी पतंगबाज हैं, जो गरीब बच्चों के पतंग उड़ाने के शौक को पूरा कर रहे हैं। इसके लिए वह स्वयं के खर्च से अपने हाथों से पतंग बनाते हैं और फिर बच्चों को मुफ्त बांट देते हैं। अपने हाथों से पतंग बनाने और बांटने का यह सिलसिला पिछले 30 सालों से चल रहा है और संक्रांति पर बच्चे उनकी पतंग का बेसब्री इतंजार करते हैं।

यह पतंगबाज हैं मक्सी रोड निवासी सुरेश कुमार बडगोत्या। शाजापुर में आकाशवाणी केंद्र के इंचार्ज सुरेश कुमार हर संक्रांति पर 15 दिन पहले से पतंग बनाने में जुट जाते हैं। वे पतंग के लिए गुजरात के अहमदाबाद से जर्मन ताव के कागज मंगवाते हैं और स्थानीय स्तर पर बांस खरीदते हैं। इस बांस से कीमची, घर के आटे से लोई बनाकर पतंग को आकार देते हैं।

सुरेश कुमार वर्ष 1970 से ही अपने हाथों से पतंग बनाकर बच्चों को बांट रहे हैं। उनका कहना है कि गरीब बच्चे पतंग नहीं खरीद पाते, इसलिए वे अपने रुपयों से पतंग बनाकर बांटते हैं। उनके द्वारा जो पतंग बनाई जाती है, उसकी बाजार में कीमत 30-40 रुपए की होती है। इस संक्रांति पर्व पर 80-90 पतंगे बनाई है, जो बच्चों को बांट चुके हैं। सुरेश कुमार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर भी शाजापुर में भी पतंग बांटते हैं। वे अब तक हजारों पतंगें बनाकर गरीब बच्चों को बांट चुके हैं।

डिजाइन पर जोर, 4 से 5 रुपए कास्टिंग
सुरेश कुमार द्वारा बनाई जाने वाली पतंगों की डिजाइन के साथ उसमें लगने वाली कीमची पर भी विशेष ध्यान देते हैं। वे बताते हैं कि पतंग में लगने वाली कीमची का बैलेंस सही होगा तो वह बेहतर तरीके से उड़ सकेगी। जर्मन ताव का कागज जल्दी नहीं फटता। उनके द्वारा बनाई पतंग की कीमत 4 से 5 रुपए ही पड़ती है।

पिता ने पतंग नहीं दी तो हाथ से बनाई
अपने हाथों से पतंग बनाने वाले सुरेश कुमार बताते हैं कि उन्होंने पतंग बनाना सीखा नहीं बल्कि मजबूरी ने सीखा दिया। जब वे 7-8 वर्ष के थे तो पिता ने पतंग के लिए पैसा देने से मना कर दिया। इस पर खुद ही अपने हाथों से पतंग बना ली। धीरे-धीरे हर वर्ष अपने हाथों से ही पतंग बनाकर उड़ाते। बाद में सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरी लगी तो अपने इस शौक का जिंदा रखते हुए गरीब बच्चों के लिए पतंग बनाकर बांटने लगे।