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नाम है गोल्डन बाबा, इनकी साधना के साथ बढ़ता जाता है सोना

सुरक्षा के लिए साथ रखते हैं बॉडीगार्ड

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Lalit Saxena

Mar 14, 2016

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उज्जैन. कहते हैं सोना तामसी है, बुद्धि भ्रष्ट कर देता है, लेकिन गोल्डनपुरी बाबा से मिलकर यह बात मिथ्या लगेगी। सोना उनके लिए देवी-देवताओं का वास स्थल है। शायद इसलिए किसी साधक की साधना की तरह समय के साथ उनके शरीर पर सोना भी बढ़ता जाता है। तभी तो अपने जिस शरीर को वह तीन साल पहले सोने से पूरी तरह खाली कर चुके थे, आज फिर उस पर 11.5 किलो सोना चढ़ा हुआ है। इनकी सुरक्षा के लिए साथ में बॉडीगार्ड भी हैं।

सिंहस्थ में पहली बार लगाएंगे कैंप
इस सिंहस्थ में पहली बार गोल्डनपुरी बाबा भी कैंप लगाएंगे। इसके लिए वह शहर आए हुए हैं। करीब तीन वर्ष पहले बाबा ने केदारनाथ त्रासदी के दौरान शरीर पर पहना पूरा सोना सहायता कोष के लिए दान कर दिया था। इसके बाद फिर सोने के आभूषण पहनना शुरू किया। वर्तमान में बाबा ने करीब 11.5 किलो सोने के आभूषण पहन रखे हैं। उनका कहना है कि, यह आभूषण उनके देवी-देवताओं के पूजन का माध्यम है, इसलिए मन तो रोज सोने के नए आभूषण पहनने का करता है। जब भी संभव होता है, वह देवी-देवताओं के नाम से सोने का नया आभूषण पहन लेते हैं। शुरुआत उन्होंने भोले बाबा का लॉकेट पहना था और अब गले में 21 लॉकेट हैं जिनमें मां लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, हनुमानजी, दत्त भगवान आदि शामिल हैं। साथ ही हाथों में भी गोल्डन बाबा के नाम के बेल्ट पहने हुए हैं।

पूजन के बाद ही पहनते हैं आभूषण
बाबा के अनुसार सोने के आभूषण देवी-देवताओं के पूजन और उन्हें प्रसन्न रखने का माध्यम है। वह सुबह स्नान के बाद इनकी पूजा करते हैं और फिर इन्हें धारण करते हैं। दिन में यदि शौच जाते हैं तो इन्हें पहले उतारते हैं। शौच के बाद फिर स्नान व इनका पूजन कर ही धारण करते हैं।

150 टर्न ओवर का बिजनेस छोड़ा
करीब चार वर्ष पूर्व गोल्डनपुरी बाबा दिल्ली में सुधीर कुमार के नाम से जाने जाते थे। उनके अनुसार तब वह गारमेंट्स के व्यापारी थे, जिसका टर्नओवर 150 करोड़ रुपए सालाना था। तब भी वह सोना पहनते थे। 1972-73, जब सोना 270 रुपए तोला था, तभी से उन्होंने पहनना शुरू कर दिया था। वर्ष 2012 में गुरु श्रीमहंत मछंदरपुरी महाराज ने इलाहाबाद में दीक्षा दी और तब से वह गोल्डन बाबा बन गए। बाद में जूना अखाड़े से जुड़कर वह गोल्डनपुरी बाबा बने। अभी गोल्डनपुरी बाबा का हरिद्वार में आश्रम भी हैं। बाबा के अनुसार ईश्वर आराधना के लिए उन्होंने बिजनेस छोड़ गुरु के सान्निध्य में यह मार्ग चुना है।

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