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उज्जैन@ शैलेष व्यास . कार्तिक चौक स्थित बूढ़ा राम मंदिर शहर का सबसे प्राचीन श्रीराम मंदिर है। जिसमें भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। मंदिर के महंत ओमप्रकाश निर्वाणी का कहना है कि उनके पास उपलब्ध भाट पोथी के अनुसार परमार काल के चंद्रगुप्त द्वितीय ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। काले वर्ण वाले श्रीराम की मूर्ति देश में दो स्थानों पर है। एक नासिक के पंचवटी में और दूसरी अवंतिका में है। नासिक की मूर्ति काले पाषाण की है और उज्जैन की मूर्ति काले कासौटी के पत्थर से निर्मित है। मंदिर भगवान की श्रीराम की मूर्ति दाढ़ी-मूंछ वाले वनवासी वेशभूषा और चलायमान मुद्रा में है। माता सीता की मूॢत के हाथ में पानी की झारी और चंवर है। हनुमानजी की मूर्ति मानव ब्राह्मण स्वरूप में है। हनुमानजी की एेसी प्रतिमा देश में कहीं भी नहीं है। पुरातत्वविदों के अनुसार परमार काल का यह मंदिर 800 वर्ष पुराना है।
राम मंदिरों में उमड़ी भीड़
विश्व प्रसिद्घ महाकाल मंदिर ज्योतिर्लिंग तथा काल गणना के केंद्र के रूप में तो उज्जैन विख्यात है। इस नगरी में भगवान श्रीराम के अति प्राचीन मंदिरों में भगवान के साथ-साथ सीता, लक्ष्मण और हनुमान की दुर्लभ मूर्तियां हैं। इन विद्यमान मंदिरों के कारण भी शहर की अपनी अलग पहचान है। रामनवमी पर शनिवार को शहर के प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य देव प्रभु श्रीराम के दर्शन कर सुख, शांति की कामना की।
महाकाल मंदिर परिसर में भी श्रीराम विराजित
महाकाल मंदिर परिसर, कोटितीर्थ कुंड के साथ सभा मंडप में अनेक मंदिर मौजूद हैं, जिनकी अपनी अलग महिमा है। सभा मंडप में इन्हीं में से एक अनूठा श्रीराम मंदिर है। इसके समीप वैष्णव, विष्णु व ईशान (शिव) की करीब 900 साल पुरानी 11वीं शताब्दी की प्रतिमाएं मौजूद हैं। इनके पास श्रीराम मंदिर में विराजित प्रभु श्रीराम, सीता व लक्ष्मण की मूर्तियां सफेद संगमरमर से निर्मित जीवंत प्रतीत होती हैं।
विष्णु सागर के तट पर राम-जनार्दन मंदिर
पुरातत्वविदों के अनुसार प्राचीन विष्णु सागर के तट पर राम-जनार्दन मंदिर भी भी 265 वर्ष पुराना है। मराठा काल में वर्ष 1748 में इसका निर्माण हुआ था। प्राचीन विष्णु सागर के तट पर विशाल परकोटे से घिरा मंदिरों का समूह है। इनमें एक श्रीराम मंदिर एवं दूसरा विष्णु मंदिर है। इसे सवाई राजा एवं मालवा के सूबेदार जयसिंह ने बनवाया था। इस मंदिर में 11वीं शताब्दी में बनी शेषशायी विष्णु तथा 10वीं शताब्दी में निर्मित गोवर्धनधारी कृष्ण की प्रतिमाएं भी लगी हैं। यहां श्रीराम, लक्ष्मण एवं जानकीजी की प्रतिमाएं वनवासी वेशभूषा में उपस्थित हैं।
पट्टाभिराम मंदिर में भगवान की दुर्लभ मूर्ति
नगर की पुरानी बसाहट सिंहपुरी के समीप पानदरीबा में प्राचीन पट्टाभिराम मंदिर है। मंदिर में माता सीता प्रभु श्रीराम की पट्ट (जांघ) पर विराजित हैं। राम नवमी पर मंदिर में विशेष उत्सव होता है।
प्रभु श्रीराम के सेवक हनुमान जी अष्टमी पर लाए थे देशभर के तीर्थों का जल
भगवान राम के राज्याभिषेक के समय हनुमान जी देश के तीर्थों का जल लेने यात्रा पर निकले। इस बीच वे उज्जैन भी आए और महाकाल दर्शन करने रुके तो उनके कलश में भरा तीर्थों का जल कुंड में गिर गया। तभी से महाकाल कुंड का नाम कोटितीर्थ पड़ा। इस दिन अष्टमी तिथि थी। तभी से उज्जैन में हनुमान अष्टमी पर्व मनने लगा।
भगवान राम और उज्जैन से जुड़ी मान्यताएं
उज्जैन में गणेशजी का एक सिद्ध स्थान है, जिसका नाम है चिंतामण गणेश मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम ने की थी। यहां आने वाले भक्तों की सभी चिंताएं गणेशजी दूर करते हैं, इसीलिए इन्हें चिंतामण गणेश कहा जाता है। श्रीराम ने वनवास काल में की थी इस मंदिर की स्थापना पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। श्रीराम वनवास के दौरान उज्जैन भी आए थे। श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ इस क्षेत्र के वन में घूम रहे थे, तब सीता को प्यास लगी। सीता की प्यास बुझाने के लिए लक्ष्मण ने अपने बाण से एक बावड़ी बना दी थी। यह बावड़ी चिंतामण के पास ही स्थित है। श्रीराम को इस क्षेत्र की धरती दोषपूर्ण प्रतीत हो रही थी, इसलिए उन्होंने यहां के दोष मिटाने के लिए गणेशजी का मंदिर स्थापित किया था। यहीं मंदिर चिंतामण गणेश के नाम से प्रसिद्ध है।
Updated on:
13 Apr 2019 05:42 pm
Published on:
13 Apr 2019 05:40 pm
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