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कौन थे राजा विक्रमादित्य.. जिनका नाम ही उपाधि बन गया

भारत का सबसे लोकप्रिय राजा, उनके न्याय की हजारों मिसाल है इतिहास में, सेना में तीन करोड़ थे पैदल सैनिक, 25 हजार हाथी

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Rajiv Jain

Apr 08, 2016

vikrmaditya

Vikram Temple ujjain

उज्जैन. हिंदू नववर्ष यानी नवसंवत्सर शुरू होता है विक्रम संवत से और यह विक्रम संवत नाम पड़ा महाराजा विक्रमादित्य से। आइए जानते हैं कौन है विक्रमादित्य...। भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध पुरातन पुरुषों विक्रमादित्य अग्रगण्य माने जाते है। भारतीय सभ्यता और राजतंत्रीय शासन में जो कुछ सर्वश्रेष्ठ था विक्रमादित्य को उसका प्रतीक माना जाता है। इतिहास गवाह है कि विक्रमादित्य शक्तिशाली राजा होने के साथ उदार शासक भी था। भारत में विक्रमादित्य का नाम पश्चिम के सीजर के समान अत्यधिक महत्व प्राप्त है और यह विजय, वैभव और साम्राज्य का प्रतीक माना जाता है। विक्रमादित्य के नाम, काम और कई विषयों को लेकर इतिहासकार कभी भी एक मत नहीं रहें। यही वजह है कि अनेक विद्वान विक्रमादित्य के ऐतिहासिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते है। ऐसे विद्वानों के मतानुसार विक्रमादित्य किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था, बल्कि एक उपाधि थी। अनेक विद्वान इस तथ्य से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि विक्रमादित्य इतना महान था कि उसका नाम बाद के राजाओं और सम्राटों के लिए एक पदवी और उपाधि बन गया। हालांकि कालांतर में अधिकांश विद्वानों ने विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता को स्वीकार कर लिया है।

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कष्ट जानने के लिए रात में भम्रण

राजा विक्रमादित्य के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह एक श्रेष्ठ और न्यायपूर्ण शासन का व्यवस्थाप भी था। जनता के कष्टों को जानने और राजकाज की पड़ताल के लिए राजा विक्रमादित्य छद्मवेष धारण कर रात में भम्रण करता था। विक्रमादित्य विद्या और संस्कृति का संरक्षक भी था। उसके नवरत्नों की कथा और कहानियां प्रसिद्ध है। अनेक विद्वान उसके काल में थे।


विक्रमादित्य है उपाधि

राजतंत्रीय शासन में जो कुछ सर्वश्रेष्ठ था, विक्रमादित्य को उसका प्रतीक माना जाता है। यह विजय, वैभव और साम्राज्य का प्रतीक माना गया। विक्रमादित्य के नाम व काम को लेकर इतिहासकार और विद्वान कभी भी एक मत नहीं रहे। इनके अनुसार विक्रमादित्य नाम नहीं था, बल्कि एक उपाधि थी।


सम्राट का परिवार

पिता: गर्द भिल्ल, गन्धर्वसेन, गर्दभवेश, महेन्द्रादित्य।

माता : सौम्यदर्शना, वीरमती, मदनरेखा आदि नाम।

बहन : मैनावती।

भाई : शंख, भर्तृहरि सहित कई बताए जाते हैं।

पत्नियां : मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेवी।

पुत्रियां : प्रियंगुमंजरी या विद्योत्तमा, वसुन्धरा।

पुत्र : विक्रमचरित्र या विक्रमसेन और विनयपाल।

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भानजा : गोपीचंद।

मित्र : भट्टमात्र।

वंशनाम : गर्दभिल्ल अथवा प्रसर।

पुरोहित : त्रिविक्रम, वसुमित्र।

मन्त्री : भट्टि, बहिसिन्धु।

सेनापति : विक्रमशक्ति, चन्द्र।


बत्तीस पुतलियां

पौराणिक कथाओं के आधार पर न्यायप्रिय सम्राट विक्रमादित्य की बत्तीस पुतलियां हुआ करती थीं। ये पुतलियां राजा को न्याय करने में सहायक होती थीं। यह एक लोककथा संग्रह भी कहलाता है। इसी में बेताल पच्चीसी का भी जिक्र मिलता है। प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है, जिसमें 32 पुतलियां विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा रूप में वर्णन करती हैं। विक्रमादित्य जनता के कष्टों को जानने के लिए छद्मवेष धारण कर रात में भम्रण करते थे।

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महान योद्धा

कहा जाता है कि उज्जैन में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था। भर्तृहरि ने शासन छोड़ दिया तब शकों ने शासन की बागडोर अपने हाथ में लेकर कुशासन कर आतंक मचाया। ईसा पूर्व 57-58 में विक्रमादित्य ने विदेशी शासक शकों को परास्त कर मालवगण के महान योद्धा बने।


भारी भरकम सेना

विक्रमादित्य ने मालवा, उज्जैन और भारतभूमि को विदेशी शकों से मुक्तकर स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद किया था। राजा विक्रमादित्य की सेना में तीन करोड़ पैदल सैनिक, 10 करोड़ अश्व, 24600 गज और चार लाख नौकाएं थी।


इन 9 रत्नों से दमकता था विक्रमादित्य का दरबार

सम्राट विक्रमादित्य की राजसभा 9 रत्नों से सुशोभित थी, जो अपने समय के विषय विद्वान थे। इसमें धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि शामिल हैं। इन सभी के बहुत से ग्रंथ काफी महत्वपूर्ण रहे और आज भी भारतीय परंपराओं को प्रभावित कर रहे हैं।


धन्वन्तरि :
वैद्य और औषधिविज्ञान (मेडिसिन व फॉर्मेसी) का अविष्कार किया।

क्षणपक :
व्याकरणकार और कोषकार थे। उस काल में उन्होंने गणित विषय पर काम किया।

अमरसिंह
: कोष (डिक्शनरी) का जनक माना जाता है। इन्होंने शब्दकोष बनाया। साथ ही शब्द ध्वनि आदि पर काम किया।

शंकु :
नीति शास्त्र व रसाचार्य थे।

वेताल भट्ट :
युद्ध कौशल में महाराथी थे। वह हमेशा विक्रमादित्य के साथ ही रहे। साथ ही सीमवर्ती सुरक्षा के कारण इन्हें द्वारपाल भी कहा गया।

घटकर्पर :
साहित्य के विद्वान रहे। उन्होंने नई शैली का निर्माण किया।

कालिदास :
महान कवि रहे। जिन्होंने परंपरागत काव्य की अवधारणा को तोड़ नवीन काव्य सृजन किया, जो आज भी श्रेष्ठ माना जाता है।

वराहमिहिर
- ज्योतिर्विदों में अग्रणी माने गए। उन्होंने ही काल गणना, हवाओं की दिशा, पशुधन की प्रवृत्ति, वृक्षों से भूजल का आकलन आदि विषयों की खोज की।

वररुचि
- व्याकरण के विद्वान व कवियों में श्रेष्ठ। शास्त्रीय संगीत के भी जानकर रहे।

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