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उज्जैन शहर का मशहूर कार्तिक मेला क्यों इस दौर से गुजर रहा

इस वर्ष मेले से निगम को राजस्व तो मिला लेकिन अधिकांश व्यापारियों की ग्राहकी चालू नहीं हो सकी, अवधि नहीं बढ़ी तो होगा बड़ा नुकसान

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Why is the famous fair of Ujjain city passing through this phase

इस वर्ष मेले से निगम को राजस्व तो मिला लेकिन अधिकांश व्यापारियों की ग्राहकी चालू नहीं हो सकी, अवधि नहीं बढ़ी तो होगा बड़ा नुकसान

उज्जैन. कम समय में भले ही इस बार कार्तिक मेला लगा दिया हो लेकिन न लोगों को इसका पूरा आनंद मिल पाया है और नहीं व्यापारियों की कोई आमदनी हो पाई है। इसके विपरित कई व्यापारियों को बड़े नुकसान का खतरा हो गया है। कारण, यदि अवधि नहीं बढ़ती है तो मेला समाप्त होने में सिर्फ ८ दिन शेष हैं और अब तक न सभी दुकानें लग सकी हैं और नहीं सभी झूले शुरू हो पाए हैं। कई झूलों का तो अभी फीटनेस ही नहीं हुआ है।

कोरोना के चलते पीछले वर्ष कार्तिक मेला आयोजित नहीं हो पाया था। इस बार व्यापारियों की मांग के बावजूद एन वक्त पर शासन से मेला आयोजन की अनुमति प्राप्त हुई और नगर निगम को भी ताबड़तो 18 नवंबर को मेले का औपचारिक शुभारंभ करना पड़ा। उद्घाटन के बाद दुकानदारों के मेले में आने और भूखंड आवंटन की प्रक्रिया शुरू हुई जो कुछ दिन पहले तक जारी थी। नतीजतन मेला ग्राउंड में अभी भी 70 फीसदी दुकानें शुरू ही नहीं हो पाई हैं। इनमें से कई खाली पड़ी हैं तो कई अभी बन ही रही हैं। एेसे में मेला आयोजन से भले ही निगम ने लाखों का राजस्व जमा कर लिया हो लेकिन कई व्यापारियों की ग्राहकी तक शुरू नहीं हो पाई है। कई व्यापारी तो सिर्फ इसलिए दुकान लगा रहे हैं ताकि अगले वर्ष उन्हें भूखंड आवंटन में परेशानी न हो।

चंद दुकानों से थौड़ी रौनक

पद्मनी शृंगार व खान-पान की कुछ दुकानों और गीनती के झूले-चकरी के दम पर ही मेले में थोड़ी रौनक बनी हुई हैं और यहां आने वाले पूरी तरह बेरंग नहीं लौट रहे हैं। मेले की अवधि कुछ दिन बढऩे की उम्मीद में शेष व्यापारी भी अनमने मन से दुकान-झूले लगा रहे हैं ताकि कम से कम उनका खर्च निकल सके। व्यापारियों के अनुसार यदि मेला अवधि नहीं बढ़ी तो बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।

नए ले-आउट के पहले मेले की रंगत फीकी

नगर निगम में मेला ग्राउंड में मंच, सड़क आदि का पक्का निर्माण कर इस नए-लेआउट के साथ तैयार किया है। करोड़ों रुपए से तैयार नए ले-आउट से दावा किया जा रहा था कि इससे व्यापारी व आने वाले लोगों को सुविधाएं मिलेंगी वहीं मेले की रंगत और बढ़ेगी। नया ले-आउट तैयार होने के बाद यह पहला मेला आयोजित हुआ है लेकिन कमजोर तैयारी के कारण पहले मेले की ही रंगत फीकी पड़ी हुई है। झूलों पर अभी रंगाई-पुताई हीइस वर्ष झूला व्यवसाइयों को खासी मार झेलना पड़ रही है। नए ले-आउट के कारण स्थान बदलने और कुछ नए झूला व्यवाइयों के आने की खींचतान में भूखंड आवंटन देरी से हुआ है। कुछ दिन पूर्व ही आपसी सहमति से जगह निर्धारित की गई है। इसके बाद झूले लगना शुरू हुए। शुक्रवार को ही कई झूले कसा रहे थे वहीं कई पर रंगाई-पुताई चल रही थी। एेसे में अभी कई झूलों का फिटनेस होना ही शेष है। कुछ झूले जरूर शुरू हो गए हैं।

खल रही बोर्ड की कमी

व्यापारी अव्यवस्था और सुनवाई नहीं होने का भी आरोप लगा रहे हैं। इस बार उन्हें नगर निगम का बोर्ड नहीं होने की कमी खल रही है। कई व्यापारियों का कहना था कि जनप्रतिनिधि नहीं होने से हमारी समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। नगर निगम प्रशासन सिर्फ अपनी सुविधा अनुसार निर्णय ले रहा और व्यवस्था बना रहा है।

बोले व्यापारी

प्लॉट बदला, काफी नुकसान होगा
वर्ष 1980 से कार्तिक मेले में होटल लगा रहे हैं। इस बार नए एेसी जगह भूखंड दे दिया है जहां ग्राहक ही नहीं आएंगे। समझ नहीं आ रहा दुकान शुरू करे भी या नहीं। मेले की अवधि आधे से अधिक गुजर चुकी है। यदि मेला नहीं बढ़ता है तो काफी नुकसान झेलना पड़ेगा।
- सुरेश मालवीय, होटल संचालक

दो दिन पहले झूला शुरू हो पाया

दो साल से नाव झूले की सामग्री शाजापुरा में पड़ी थी। ट्रांसपोर्ट व झूला फिटिंग में २२ हजार रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं। रोज का तीन हजार रुपए का खर्च अलग से होता है। बमुश्किल दो दिन पहले ही झूला शुरू हो पाया है। कुछ दिनों में यदि मेला समाप्त हो जाएगा तो खर्च की राशि भी नहीं निकल सकेगी।
- मोहम्मद शाह, झूला संचालक

सैकड़ों ब्लॉक लेकिन रंगत उतनी नहीं

पद्मनी शृंगार बाजार- 468 ब्लॉक
बी-क्षेत्र - 183 ब्लॉक
चुड़ी व्यवसाय - 42 ब्लॉक
झूले- 21 ब्लॉक
हलवाई पट्टी- 43 ब्लॉक
(इनमें से अधिकांश दुकानें अभी पूरी तरह शुरू नहीं हो पाई हैं।)