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मार्कडेण्य आश्रम आए थे राम

दशरथ घाट में किया था श्राद्ध

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Ram came to Markandeya Ashram

मार्कडेण्य आश्रम आए थे राम

उमरिया. विंध्य मैकल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी अमरकंटक से निकलने वाली दो नदियों सोन एवं जोहिला के संगम स्थल पर स्थित दृश्य भगवान राम के वन गमन का मार्ग है जो लोगों की आस्था का केंद्र तो है लेकिन उपेक्षा का शिकार भी हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक चित्रकूट से सतना होते हुए भगवान राम उमरिया के मार्कण्डेय आश्रम पंहुचे थे। जहां से वह बांधवंगढ़ के लिए रवाना हुए और रात्रि विश्राम कर दूसरे दिन आगे बढ़े और सोन जोहिला नदी के संगम में अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया। उसी क्षण के बाद इस स्थल का नाम दशरथ घाट हो गया। तब से लेकर लोग यहां आज तक आस्था की डुबकी लगाते हैं लेकिन घने जंगल और पगडंडियों से होकर यहां तक पंहुचने में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में स्थित राम वनगमन मार्ग को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने के फैसले से लोगों में उत्साह है। राम वनगमन समय के उमरिया जिले में तीन मुख्य केंद्र है। जिसमे पहला मार्कण्डेय आश्रम है जो अब बाणसागर जलाशय बन जाने के बाद डूब में आ चुका है। दूसरा बांधवंगढ़ का किला और तीसरा दशरथ घाट संगम। जानकारों की माने तो प्रभु श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को लंका में निगरानी रखने के लिए यह किला दान में दिया था और इसका निर्माण सेतुबन्धु रामेश्वरम का निर्माण करने वाले नल नील ने किया था। किवदंती है कि बांधवंगढ़ के पर्वत की ऊंचाई इतनी ज्यादा थी कि लंका का किला ठीक से दिखाई नही देता था। जिसके चलते लक्ष्मण ने अपने पैर बांधवंगढ़ के ऊपर रखकर इसे छोटा कर दिया था। भूगोल के जानकार आज भी बांधवंगढ़ के पहाड़ को किसी फुटप्रिंट जैसे होना बताते हैं। बांधवंगढ़ के किले में स्थित रामजानकी मंदिर आज भी देश भर के लोगो की आस्था का केंद्र है। जहां हर जन्माष्टमी लाखो लोग दर्शन करने आते हैं। प्रदेश सरकार के द्वारा राम वनगमन मार्ग को चिन्हित कर विकसित करने से जिले में उपेक्षित पड़े राम वनगमन मार्ग के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार संभव हो सकेगा। वहीं लोगों के जेहन में धुंधली होती जा रही राम वन गमन की तस्वीर भी साफ होगी।