क्या है मामला
पाली ब्लाक मे पदस्थ महेन्द्र मिश्रा वरिष्ठ अध्यापक शासकीय उत्कृष्ट उमावि पाली परें बी एड की फर्जी अंक सूची लगाकर नौकरी करने का आरोप लगाया गया है। जिस पर सहायक आयुक्त जन जातीय कार्य विभाग के अधिकारी आनंद राय सिन्हां ने तीन सदस्यों की एक जांच टीम बनाकर अंकसूची की जांच रिपोर्ट एक सप्ताह में पेश करने के लिए कहा है।
इन्हे सौंपी जांच
सहायक आयुक्त द्वारा गठित की गई जांच टीम में विभू मिश्रा प्राचार्य सुंदरदादर, व्ही के पाण्डेय प्राचार्य पाली, सरिता जैन कन्या स्कूल प्राचार्य पाली को शामिल किया गया था। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस स्कूल मे महेंद्र मिश्रा पदस्थ है उसी स्कूल के प्राचार्य को भी इस जांच टीम में रखा गया है। ऐसे में साफ जाहिर हो रहा है कि उक्त शिक्षक को बचाने के लिए नाम मात्र की जांच टीम बनाई गई है। जबकि होना यह चाहिए कि कोई न कोई उच्च अधिकारी राजस्व अमले का होना चाहिए जैसे कि एसडीएम , तहसीलदार या अन्य कोई , पर ऐसा नही किया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि उक्त जांच महज दिखावा के लिए कराई जा रही है।
बन गए अध्यापक
बताया गया कि मिश्रा सन 1998 मे नगर पालिका के संरक्षण एवं राजनैतिक पहुंच के चलते संविदा वर्ग-1 मे भर्ती हो जाने में सफल हो गये। नगर पालिका शिक्षा समिति पाली द्वारा बी एड की अंकसूची फर्जी होने के बावजूद भी वरिष्ठ अध्यापक बना दिया गया। तब से लेकर वर्तमान समय तक मिश्रा यहंा अपनी सेवाएं दे रहे हैं और बकायदे वेहन उठा रह हंै। इस दौरान वह शासन के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए तीन वर्ष तक प्रभारी प्राचार्य माडल उमावि पाली में रह चुके है। जिसमें मिश्रा पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार क े आरोप लगाए गए है। वरिष्ठ कार्यालय के द्वारा जांच आदेश जारी होने के बावजूद भी आज दिनांक तक जांच नही की गई। इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रभारी प्राचार्य एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय पाली में रहे । यहां भी व्यापक पैमाने पर आर्थिक अनियमितता किए जाने के आरोप इन पर लग रहे हैं। मामले में आज दिनंाक तक कोई कार्यवाही नही की गई।
हो गया संविलियन
शास. उत्कृष्ट उमावि पाली के प्राचार्य एवं विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी ने तब और हद कर दी जब शासन के आदेश के अनुसार जन जातीय कार्य विभाग मे सभी शैक्षणिक दस्तावेजो की सत्यता प्रमाणित करने के बावजूद विभाग में संविलियन होना था। उक्त शिक्षक की फर्जी अंक सूची होने के बावजूद विभाग में संविलियन हो गया। इनके द्वारा की गई अनियमितता व लग रहे कई आरोपों के मामले में विभाग द्वारा क्या सख्त कदम उठाए जाते हैं यह आने वाला समय ही बताएगा। बताया जाता है कि उच्च न्यायालय जबलपुर के द्वारा मिश्रा पर पांच हजार रूपये का कास्ट भी लगाया जा चुका है। इतना ही नही इस पूरे मामले में सहायक आयुक्त जन जातीय कार्य विभाग की भी मिली भगत साफ दिखाई दे रही है। या फिर यह कहे कि पूरा अमला फर्जी अंकसूची के मामले को दबाने का प्रयास कर रहा है।