
Poison dissolved in the fija due to the stolen coal, the sigdi is covered in the evening, the furnace smoke sheet
बीना. शहर के अधिकांश स्थानों पर खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग हो रहा है। पहले से ही प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे शहर में कोयले से जलने वाली सिगड़ी एक बड़ी समस्या बन गई है, जिससे शहर की फिजा में जहर घुल रहा है और प्रदूषण कम होने की जगह बढ़ रहा है। शहर के झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग भी खाना पकाने और वार्डों में भी अधिकांश लोग ठंड में सिगड़ी जलाते हैं। यही नहीं खर्च बचाने के लिए कई ढाबा व होटल संचालक भी कोयला जलाया जाता है। सिगड़ी जलाने के दौरान गहरा सफेद व काला धुआं निकलता है। धुआं फैलने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे पूरा शहर कोहरे में ढंक गया हो। सड़क पर वाहनों की लाइट भी धीमी पड़ जाती है। शाम के समय स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है। यही नहीं इस दौरान सांस लेने में भी लोगों को परेशानी होती है। शाम करीब छह बजे से देर रात तक सड़कों पर धुआं के कारण निकलना मुश्किल रहता है। साथ ही लोगों के घर में इतना ज्यादा धुआं भर जाता है उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यदि नपा अधिकारियों द्वारा इस ओर कार्रवाई की जाए तो कुछ हद तक रोक लग सकती है।
चोरी के कोयला से बन रही स्थिति
शहर में जहां भी सिगड़ी में कोयला जलाया जा रहा है उसमें से एक तिहाई कोयला रेलवे से चोरी कर बाजार में बिकने वाला होता है। रेल पटरियों के किनारे की बस्तियों में कोयला चोरी करके बेचा जाता है, जिसे लोग कम दामों पर खरीदकर जला रहे हंै। जिसके बाद शहर में जगह-जगह कोयले का धुआं लोगों की जान का दुश्मन बना हुआ है। स्वांस रोगियों के लिए यह धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। क्योंकि इस धुएं से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है।
भट्टी जलाने पर नपा ने की थी होटल सील
सोमवार को आंबेडकर तिराहा पर एक होटल पर कोयला का उपयोग करके भट्टी जलाई जा रही थी और संचालक समझाइश के बाद भट्टी का उपयोग बंद नहीं कर रहा था। इसके बाद नपा ने होटल को सील कर जुर्माना वसूला। इसके बाद भी होटल व ढाबा संचालकों में प्रशासन का भय नहीं है और बेधड़क कोयला की भट्टी जला रहे हैं।
हो सकता है फेफड़ों का कैंसर
कोयले के धुएं से लगातार संपर्क में रहने से फेफड़ों का कैंसर हो सकता है, जिससे मौत भी हो सकती है। इतना ही नहीं स्वांस संबंधी रोग भी कोयले के धुएं से हो सकते हैं, इसलिए कोशिश करना चाहिए कि जहां तक हो सके पत्थर के कोयले से सिगड़ी नहीं जलाई जाए।
डॉ. आरके जैन, मेडीकल ऑफिसर, बीना
Published on:
17 Jan 2020 07:53 pm
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