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यदि आपके लग्न में गुरु प्रथम भाव में विद्यमान है तो जाने कैसे होगा किस्मत चमकाने वाला

- शंकर दयाल त्रिबेदी ज्योतिषाचार्य ने वृष लग्न में गुरू के द्वादश भावों के फलादेश की दी जानकारी

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यदि आपके लग्न में गुरु प्रथम भाव में विद्यमान है तो जाने कैसे होगा किस्मत चमकाने वाला

यदि आपके लग्न में गुरु प्रथम भाव में विद्यमान है तो जाने कैसे होगा किस्मत चमकाने वाला

उन्नाव. शंकर दयाल त्रिबेदी ज्योतिषाचार्य ने वृष लग्न में गुरू के द्वादश भावों के फलादेश की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गुरू प्रथम भाव में विद्यमान होने से जातक पिता और परिवार के लिए किस्मत को जगाने वाला होगा। गुरु की दशा जातक को सर्वांगीढ़़ उन्नति कराता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक की तरह रोशन करता हैै। वृष लग्न मेंं गुरू की स्थिति द्वितीय भाव में होने से जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। उसे कालेज, शिक्षण संस्थान द्वारा छात्रवृति मिलने का संजोग रहता है। ऐसा व्यक्ति कार्यो में रूचि लेता है। ऐसे जातक को अपने मौत का बहुत पहले पता लग जाता है।

ऐसे में गुरु उच्च का हो जाता है

वृष लग्न में गुरू की स्थिति तृतीय भाव में होने से गुरू उच्च का हो जाता है। ऐसा गुरू जातक को प्रबल पराक्रमी बनाता है। उसके भाई बहनों के सुख में वृद्धि होती है। जातक की आर्थिक, सामाजिक और व्यवसायिक उन्नति होती है। जातक परिजनो, कुटुम्बियों की सेवा में पूर्ण रूचि लेता है। विवाह के बाद जातक के ससुराल में भी तरक्की, प्रगति होती है। जातक को साझेदारी या व्यापार से धन लाभ होगा।

यहां पर गुरु मारकेश का फल देता है

वृष लग्न में गुरु की स्थिति चतुर्थ भाव में होने से बृहस्पति लाभेश व अष्टमेश हो जाता है। गुरू यहाँ अष्टमेश होने से मारकेश का फल देेता है। चतुर्थ भावस्थ गुरू सिंह राशि में होगा। यहाँ बृहस्पति अपने मित्र ग्रह सूर्य की राशि में रहता है। जातक उच्च शिक्षा पाने वाला, उत्तम भवन, उत्तम वाहन के सुख से युक्त होगा। जातक राजा के समान ऐश्वर्वान होकर अपने कुटुम्ब परिवार का नाम दीपक के समान रोशन करता है। जातक न्यायप्रिय व धैर्यशाली होता है।