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उन्नाव

गुरु की स्थिति पंचम भाव में होने से जातक को पुत्र की संभावना कम, होगी आज्ञाकारी पुत्री

- शंकर दयाल त्रिवेदी ने बताया गुरु किस प्रकार जातक के ऊपर प्रभाव डालता है

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उन्नाव. शंकर दयाल त्रिवेदी ज्योतिषाचार्य ने कहा कि गुरू के द्वादश भाव में स्थिति के फलादेश, वृष लग्न में गुरू की स्थिति पंचम भाव में होने से जातक के पुत्र कम और कन्या अधिक होंगी। पुत्र थोड़ा विद्रोही स्वभाव का होगा। जातक की संतान आज्ञाकारी होती है। संतान की शिक्षा दीक्षा व संस्कार उत्तम होते हैं। ऐसा जातक बुद्धिमान, धनवान, महान वक्ता, विद्बान व दार्शनिक होता है। उन्होंनेे बतायाा कि वृष लग्न में गुरू षष्टम भाव में स्थित होने से जातक कामी होता है। सुंदर स्त्रियों संग भोग करता है। जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते हैं। ऐसे जातक भाई बहन, मामा मामी, ननिहाल व मौसी को सुख देने वाला होता है। पचास वर्ष की आयु के बाद बहुमूत्र, मधुमेह, हर्नियाँ व गुर्दे की बीमारी संभव है।

गुरु की स्थिति सप्तम भाव में होने से विवाह के बाद भाग्योदय

गुरू की स्थिति सप्तम भाव में होने से जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होगा। जातक का जीवन साथी सुंदर, गुणी व धैर्यवान होता है। जातक न्यायप्रिय होता है। उसे जाति व समाज में अच्छी मान्यता मिलती है। बृहस्पति की दशा अंतर्दशा में जातक की अकल्पनीय उन्नति होगी। वृष लग्न में गुरु की स्थिति अष्टम स्थान में होने से जातक का जीवन साथी सुखी और मधुर वाणी बोलने वाला होता है। जातक धनवान होता है। किन्तु भौतिक संसाधनो पर पैसे खर्च करता है। वह दानशील भी होता है। जातक परिवार में लम्बी आयु वाला होगा। जातक को जीवन में अनायास संपत्ति वसीयत या बीमे की राशि के रूप में प्राप्त होती है।