
राम मंदिर से लेकर राणा सांगा तक-अखिलेश का 'दलित कार्ड', बसपा का वोट बैंक खिसकाने की सियासी बिसात पर बढ़ते कदम
UP Politic News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक दिलचस्प बदलाव देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अब बीजेपी के पारंपरिक मुद्दों को सीधे चुनौती देने के लिए तैयार दिख रहे हैं, और इस रणनीति में वह अपने दलित सांसदों को आगे कर रहे हैं। यह रणनीति न केवल भाजपा की असहजता बढ़ा रही है, बल्कि बसपा के परंपरागत दलित वोट बैंक में भी सेंध लगाने की सियासी चाल मानी जा रही है।
हाल ही में सपा सांसद रामजी लाल सुमन के राणा सांगा पर की गई विवादित टिप्पणी और उसके बाद की घटनाओं ने इस रणनीति को और स्पष्ट कर दिया। वहीं अब सपा के अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद द्वारा रामलला के दर्शन कर, राम मंदिर मुद्दे पर भी भाजपा को सीधी चुनौती देने का संकेत दिया गया है।
राणा सांगा विवाद पर शुरुआत में बैकफुट पर नजर आए अखिलेश यादव ने करणी सेना द्वारा सांसद रामजी लाल सुमन के घर तोड़फोड़ की घटना के बाद सियासी पलटवार किया। पहले सांसद सुमन ने माफी मांग ली, लेकिन इसके तुरंत बाद अखिलेश ने दलित समर्थन को भांपते हुए यूटर्न लिया और इतिहास की सच्चाई बताने की बात कहकर एक नई सियासी दिशा पकड़ी। यह घटनाक्रम यह दर्शाता है कि सपा अब केवल यादव और मुस्लिम समीकरण तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि दलित वर्ग को भी अपने साथ जोड़ने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो चुकी है।
रविवार को अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने राम नवमी के मौके पर सपरिवार रामलला के दर्शन किए और एक बड़ा बयान देकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। उन्होंने कहा: "राम हमारे रोम-रोम में हैं। जब भगवान बुलाएंगे, अखिलेश यादव भी रामलला के दर्शन करने जरूर आएंगे।"
यह बयान केवल एक धार्मिक आस्था का इजहार नहीं था, बल्कि भाजपा के सबसे बड़े मुद्दे राम मंदिर पर सपा की सीधी एंट्री का संकेत था।
सपा का 'दलित कार्ड' खेलना अचानक नहीं, बल्कि सोच-समझ कर रची गई रणनीति का हिस्सा है। भाजपा की हिंदुत्व आधारित राजनीति और बसपा की दलित राजनीति के बीच सपा एक नया समन्वय स्थापित करना चाह रही है, जिसमें दलितों के धार्मिक विश्वास और उनकी सामाजिक पीड़ा दोनों को जगह दी जा रही है।
सांसद अवधेश प्रसाद ने भी कहा कि: "प्रभु श्रीराम से देशवासियों की खुशहाली की प्रार्थना की है। हमें ऐसी शक्ति दें कि जनता की उम्मीदों पर खरे उतर सकें। हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब बनी रहे और सब लोग सुखी रहें।" यह भाषा हिंदुत्व की नहीं, बल्कि समावेशी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की है, जिससे सपा न केवल भाजपा की जमीन पर उतरना चाहती है, बल्कि उसे वैचारिक चुनौती भी देना चाहती है।
ज्ञात हो कि राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से सपा ने दूरी बनाई थी, जिस पर भाजपा ने अखिलेश यादव को आड़े हाथों लिया था। अब अवधेश प्रसाद के माध्यम से सपा ने एक तरह से उस दूरी को पाटने का संकेत दिया है। उन्होंने साफ कहा कि मंदिर का काम अभी अधूरा है, और जब भगवान का बुलावा आएगा, अखिलेश यादव दर्शन को जरूर आएंगे।
2024 लोकसभा चुनाव में सपा को अयोध्या की फैजाबाद सीट से बड़ी सफलता मिली, जहां से अवधेश प्रसाद ने भाजपा को हराया। इस जीत के बाद से सपा का आत्मविश्वास बढ़ा है और वह भाजपा के गढ़ में घुसकर राजनीति करने को तैयार है।
सपा द्वारा दलित सांसदों को आगे कर के भाजपा के कोर मुद्दों पर सीधी भिड़ंत की यह रणनीति अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसके असर दिखने लगे हैं। सपा अब 'राम' को केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि सामाजिक एकता का माध्यम बनाने की कोशिश कर रही है।
यदि यह रणनीति सफल रही तो उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित-हिंदू सांस्कृतिक गठजोड़ की एक नई तस्वीर उभर सकती है, जो भाजपा और बसपा दोनों के लिए चुनौती होगी।
Published on:
07 Apr 2025 08:14 am
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