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अब हिंदी नहीं जानने वाले महसूस करेंगे शर्म : अमित शाह

वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में बोलते हुए अमित शाह ने कहाकि देश भर में हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के बीच कोई संघर्ष नहीं है। उन्हें भी गुजराती से ज्यादा हिंदी पसंद है। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर नहीं होते तो आज हम अंग्रेजी ही पढ़ रहे होते। सावरकर ने ही हिंदी शब्द‍कोश बनाया था, अंग्रेजी हम पर थोपी गई थी।

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Amit Shah over hindi in All India Raajabhaasha Conference in varanasi

वाराणसी. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हिंदी को बढ़ावा देने की जरूरत है। जिस देश की भाषा जितनी सशक्त और समृद्ध होगी, उतनी ही संस्कृति व सभ्यता विस्तृत और सशक्त होगी। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा से लगाव और अपनी भाषा के उपयोग में कभी भी शर्म मत कीजिए, ये गौरव का विषय है। एक समय ऐसा आएगा कि जो लोग हिंदी नहीं बोल सकेंगे तो उन्हें लघुता महसूस होगी। वाराणसी में अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में बोलते हुए अमित शाह ने अपने विभाग का उदाहरण दिया, कहा कि मुझे गर्व है कि गृह मंत्रालय में अब एक भी फाइल ऐसी नहीं है, जो अंग्रेजी में लिखी जाती या पढ़ी जाती है। हमने पूरी तरह राजभाषा को स्वीकार किया है। बहुत सारे विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हमें अपनी राजभाषा को मजबूत करने की जरूरत है क्योंकि लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब प्रशासन की भाषा स्वभाषा हो। उन्होंने कहा कि जो देश अपनी भाषा खो देता है, वह अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है, जिसके बाद वह दुनिया को आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकता है। केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी के शब्दकोश के लिए काम करना होगा और इसे मजबूत करना होगा।

मुझे गुजराती से ज्यादा हिन्दी पसंद है : अमित शा
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि देश भर में हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के बीच कोई संघर्ष नहीं है। उन्हें भी गुजराती से ज्यादा हिंदी पसंद है। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर नहीं होते तो आज हम अंग्रेजी ही पढ़ रहे होते। सावरकर ने ही हिंदी शब्द‍कोश बनाया था, अंग्रेजी हम पर थोपी गई थी।

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लोकतंत्र राष्ट्रभाषा से ही सफल हो सकता है: अमित शाह
अमित शाह ने कहा कि हमें स्वराज तो मिल गया, लेकिन स्वदेशी और स्वभाषा पीछे छूट गया। हिंदी भाषा को लेकर विवाद पैदा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन वह समय अब समाप्त हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गौरव के साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर में प्रतिस्थापित करने का काम किया गया है। 2014 के बाद मोदी जी ने पहली बार मेक इन इंडिया और अब पहली बार स्वदेशी की बात करके, स्वदेशी को फिर से हमारा लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहे हैं।

काशी से ही हिंदी का उन्नयन : अमित शाह
हिंदी के उन्नयन के लिए काशी से शुरुआत हुई। पहली हिंदी पत्रिका काशी से ही शुरू हुई। मालवीय ने हिंदी में बिना चिंता के पढ़ाई की। गृहमंत्री ने कहा कि तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं। अगर उन्होंने राम चरित मानस नहीं लिखी होती तो आज रामायण लोग भूल जाते। अनेक हिंदी के विद्वानों ने यहीं से भाषा को आगे बढ़ाया।

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