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Gyanvapi Case: ज्ञानवापी परिसर का इस तकनीक से होगा ASI सर्वे, 8 दिन लगेगा समय!

Gyanvapi Case: जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार ऐसी तकनीक है, जिससे किसी भी वस्तु या ढांचे को बगैर छेड़े हुए उसके नीचे कंक्रीट धातु,पाइप, केबल या अन्य वस्तुओं की पहचान की जा सकेगी।  

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Gyanvapi Case

ज्ञानवापी परिसर का जीपीआर तकनीक की मदद से होगा सर्वे

Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए परिसर के ASI सर्वे करने के फैसले को जारी रखा है। बता दें कि वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में बगैर कोई छेड़छाड़ किए पुरातात्विक महत्व की पड़ताल करने के निर्देश दिए थें जिसके बाद ASI ने रडार और जीपीआर तकनीक की मदद सर्वे करने का फैसला किया है। जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार ऐसी तकनीक है, जिससे किसी भी वस्तु या ढांचे को बगैर छेड़े हुए उसके नीचे कंक्रीट धातु,पाइप, केबल या अन्य वस्तुओं की पहचान की जा सकेगी।

इस प्रकार से काम करती है ये तकनीक
इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की मदद से ऐसे सिग्नल मिलते हैं जो यह बताने में कारगर साबित होते हैं कि जमीन के नीचे किस प्रकार और आकार की वस्तु या ढांचा मौजूद है। इस उपकरण की मदद से आसानी से 8 से 10 मीटर अंदर तक वस्तु का पता लगाया जा सकता है। 2D और 3D प्रोफाइल्स की जाएंगी, यह टेक्नोलॉजी अंदर मौजूद वस्तु का आकार पता लगाने में मदद करेगी, जिसके हिसाब से अनुमान लगाया जाएगा और इस सर्वे के लिए 8 दिन का समय लगेगा।

इस सर्वे से किन सवालों के जवाब मिल सकते हैं?
वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि देश की जनता को ज्ञानवापी से जुड़े इन सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं, इस सर्वे के जरिए यह पता चल सकेगा कि ज्ञानवापी में मिली शिवलिंगनुमा आकृति कितनी प्राचीन है? शिवलिंग स्वयंभू है या कहीं और से लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी? विवादित स्थल की वास्तविकता क्या है? विवादित स्थल के नीचे जमीन में क्या सच दबा हुआ है? मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन कथित गुंबद कब बनाए गए? तीनों कथित गुंबद कितने पुराने हैं?