प्रदोषकाल जिस समय का दीपावली-महालक्ष्मी पूजन में सबसे ज्यादा महत्व है। वह सायंकाल 05 बजकर 34 मिनट से रात्रि 08 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। प्रदोषकाल में ही मेष, वृष लग्न और शुभ-अमृत के चैघड़िया भी विद्यमान रहेंगे। प्रदोषकाल का अर्थ है दिन-रात्रि का संयोग। दिन विष्णुरूप और रात्रि लक्ष्मी रूपा है। प्रदोषका के स्वामी (अधिपति) अवढ़र दानी आशुतोष भगवान सदाशिव स्वयं है। इससे स्वाती नक्षत्र और लुम्बक योग व्यापारियों व गृहस्थियों के लिए दीपावली महालक्ष्मी, कुबेर, दवात-कलम, तराजू-बाट, तिजोरी इत्यादि पूजन से अक्षय श्रीप्रद एवं कल्याणकारी सिद्ध होगी। कदाचित् यदि इस लग्न में पूजनादि कृत्य की सुविधा प्राप्त न हो सके तो भी अभिष्ट पूजनार्थ पूजा स्थल में दीपक जलाकर प्रतिज्ञा संकल्प अवश्य कर लेना चाहिए। पुनः अपनी आस्था व सुविधानुसार अग्रदर्शित लग्न किसी शुभ-चैघड़िया, महानिशीयकाल और सिंह लग्न में महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए।