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तो क्या काम आ गया बाहुबली अतीक अहमद का दबाव!, मुलायम भी नहीं काट सके टिकट

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ज्वाइन कर चुनाव लड़ने की खबरों से सपा में थी बेचैनी!

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Mohd Rafatuddin Faridi

Dec 28, 2016

Atiq Ahmad, Akhilesh and Mulayam

Atiq Ahmad, Akhilesh and Mulayam

वाराणसी. अन्तत: अतीक अहमद जीत गए। आप गलत समझे चुनाव जीतना बाकी है, अभी वह समाजवादी पार्टी में टिकट जीते हैं। जीत भी ऐसी-वैसी नहीं सीएम अखिलेश यादव की नाराजगी को दरकिनार कर हासिल की गई विजय। बिना सामने आए जिस तरह का राजनीतिक दबाव उन्होंने समाजवादी पार्टी पर बनाया वह काम आ गया। शिवपाल सिंह यादव ही नहीं मुलायम सिंह यादव ने भी उन्हें हरी झण्डी दी और उनका टिकट कानपुर कैण्ट की सीट से बरकरार रखा।


समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की लिस्ट देखने के लिये यहां क्लिक करेेंं


दरअसल एक तो बाहुबली और दूसरे इलाहाबाद के शियाट्स विश्वविद्यालय में घुसकर मारपीट का आरोप और कानपुर में सैकड़ों गाड़ियों के साथ शक्ति प्रदर्शन सीएम अखिलेश यादव को पसंद नहीं आया, ऐसी चर्चा राजनीतिक हलकों और मीडिया में आयीं। उसके बाद सीएम अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को अपने 403 प्रत्याशियों की लिस्ट सौंपी तो फिर यह बातें मीडिया और राजनैतिक गलियारों में जुबान जद हुईं कि इस लिस्ट में बाहुबली मोख्तार और अतीक अहमद का नाम नहीं। इसके बाद अतीक अहमद के एआईएमआईएम में जाने की खबरें मीडिया में आ गईं। हालांकि न तो इसको लेकर अतीक ने कोई बयान दिया और न ही उनके आने को लेकर ओवैसी की पार्टी ने पुष्टि की। राजनैतिक पण्डितों के एक बड़े वर्ग की मानें तो यह भी हो सकता है कि बाहुबली ने अपना टिकट बचाने के लिये खबरें फैलाई हों। सोशल मीडिया से होते हुए यह खबरें मीडिया की सुर्खियों में छायी थीं कि 30 दिसम्बर को कानपुर में होने वाली ओवैसी की रैली में अतीक अहमद उनकी पार्टी ज्वाइन कर लेंगे।




इसके पीछे तर्क यह भी दिया जा रहा है कि चूंकि अतीक अहमद कानपुर कैण्ट जैसी मुस्लिम बाहुल सीट से ओवैसी के साथ आते तो जीत भी सकते थे। इसके अलावा इलाहाबाद व पड़ोसी जिलों की मुस्लिम सीटों पर अपना प्रभाव दिखाकर परिणाम को बदल सकते थे या फिर प्रभावित तो कर ही सकते थे। फाफामऊ, सोरांव, इलाहाबाद पश्चिमी, दक्षिणी और फूलपुर जैसी सीटें मुस्लिम बाहुल मानी जाती हैं और कहीं न कहीं इन सीटों पर अतीक का असर भी राजनैतिक हलकों में स्वीकार किया जाता है। हालांकि अतीक के ओवैसी की पार्टी में शामिल होने को लेकर एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने पत्रिका से साफ कहा था कि सारी बातें मनगढ़ंत और अफवाह हैं। न तो ओवैसी से बाहुबली भाइयों की बात हुई है और न ही पार्टी के किसी दूसरे जिम्मेदार से।





इलाहाबाद की इन सीटों पर मानी जाती है अतीक की पकड़

फूलपुर रही है अतीक की परम्परागत सीट
बाहुबली अतीक अहमद और उनके भाई यदि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ जाते हैं तो इलाहाबाद व आस-पास की कई सीटों पर प्रभाव डालेंगे। इसमें पहला नाम इलाहाबाद में अतीक की परम्परागत फूलपुर सीट का आता है। अतीक ने लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोट इसी सीट से पाया था। इसके अलावा वह इस सीट से विधायक भी रह चुके हैं। मुस्लिम बाहुल इस सीट पर अतीक की हार तब हुई जब उनपर राजू पाल की हत्या का आरोप लगा। बावजूद इसके अतीक का असर इस सीट पर है ऐसा राजनीतिक पण्डित भी दावा करते हैं। फिलहाल इस सीट से सपा के सईद अहमद विधायक हैं जिनसे अतीक के सम्बन्ध अच्छे नहीं बताए जाते हैं।



फाफामऊ सीट पर सबसे अधिक मुस्लिम ही बने विधायक
फाफामऊ विधानसभा का जो पहले ब्राम्हण बाहुल थी पर नए परिसीमन के बाद यहां मुस्लिम यादव समीकरण हावी है। उसमें भी मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं। गद्दोपुर व हाजी का पुरा जैसे कई मुस्लिम बाहुल गांव इसी विधानसभा में आते हैं। दरअसल गंगापार में नवाबगंज क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल माना जाता रहा। पर नए परिसीमन के बाद फाफामऊ सीट बनी तो ब्राह्मणों का बड़ा हिस्सा सोरांव में चला गया। इसके अलावा उत्तरी व सोरांव के मुस्लिम वोटर फाफामऊ सीट से जुड़ गए। इसके बाद यह मुस्लिम बाहुल मानी जाने लगी। यह बात भी याद रखने वाली है कि इस सीट पर जब यह नवाबगंज के नाम से जानी जाती थी तब से लेकर फाफाऊ होने तक अतीक अहमद के राजनीतिक गुरू कहे जाने वाले अंसार अहमद सपा, बसपा और अपना दल के टिकट पर सबसे ज्यादा छह बार चुनाव जीते। वर्तमान समय में भी सपा से वही विधायक हैं। कोई भी दो राजनीतिक दल लगातार दो बार चुनाव नहीं जीता। 1993 में इस सीट पर एक बार बीजेपी के टिकट पर प्रभाशंकर जीते पर वह 13 महीने ही एमएलए रहे। यह सीट सपा और बसपा के पास ही रही। इसमें भी सबसे अधिक मुस्लिम ही एमएलए बने।



शहर पश्चिमी में भी सपा को लग सकता है झटका
अतीक यदि सपा से टूटे तो समाजवादी पार्टी को इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट पर भी झटका लग सकता है। यह सीट भी मुस्लिम बाहुल कही जाती है। यहां से फिलहाल समाजवादी पार्टी के परवेज अहमद ऊर्फ परवेज टंकी विधायक हैं। पूरे शहर में यह मुस्लिमों का सबसे मजबूत गढ़ कहा जाता है। नए परिसीमन के बाद शहर दक्षिणी विधानसभा का 50 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता पश्चिमी में जुड़ गया। इसके बाद पश्चिमी सीट मुस्लिम बाहुल हो गई। यह सीट पहले कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, पर जब कांग्रेस कमजोर हुई तो यह सपा का गढ़ बन गया। पर ऐसा कहा जाता है कि मस्लिम बाहुल होने के अलावा इलाहाबाद की इस सीट पर अतीक का क्रेज भी है और मतदाता यदि नाराज हों तो सपा को नुकसान की भी बात कही जा रही है।



सोरांव सुरक्षित पर भी अतीक का असर कम नहीं
इलाहाबाद की सोरांव विधानसभा सीट यूं तो सुरक्षित है, पर इस विधानसभा में भी अतीक का असर बताया जाता है। जीताने का न भी हो तो हराने भर का तो है माना ही जाता है। कमला नगर, ताजुद्दीनपुर, भानेमऊ और सराय दत्ते समेत तकरीबन 10 के आस-पास मुस्लिम बाहुल गांव इस सीट के अन्तर्गत आते हैं। जनता में रॉबिनहुड की छवि बनाने के लिये बाहुबली की मदद के चलते गैर मुस्लिम मतदाताओं में भी असर से इनकार नहीं किया जा सकत, ऐसा राजनीतिक पण्डित भी मानते हैं।




अतीक और ओवैसी की फोटो वायरल
बाहुबली अतीक अहमद के न सिर्फ ओवैसी की पार्टी में जाने की चर्चा थी बल्कि AIMIM चीफ ओसैवी के साथ अतीक की एक फोटो भी वायरल की गयी। इस फोटो में एक जलसे के दौरान अतीक और ओवैैसी इलाहाबाद में एक ही मंच पर दिख रहे हैं। अतीक इस तस्वीर में ओवैसी के कान में कुछ कहते हुए दिख रहे हैं। यह तस्वीर काफी पुरानी है, पर वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में इसके भी अलग मायने निकाले जा रहे थे।
Atiq Ahmad and Ovaisi Poster

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