सुबह-ए-बनारस में जब स्वाद का जादू घुलता है तो बनारसी एकदम चउचक हो हो जाता है। दुनिया जब बेड टी ले रही होती है तब खांटी बनारसी दिव्य निपटान के बाद गरमा-गरम कचौड़ी और जलेबी लेकर टंच हो चुका रहता है। बनारस के जानल चाहत हउव त बनारस आवे के पड़ि… त गुरु देर मत कर चल घूम आव बनारस… हर हर महादेव…
वाराणसी. ई बनारस हव राजा… मिजाज में अइबा त दिल में अइबा, अकड़ में अइबा त तोहरे जैसन 56 देखले हईं। जी हाँ ये बनारस है… यहाँ स्वयं बाबा विश्वनाथ के अलावा किसी और की नहीं चलती। बनारसी (Banaras) ठसक का आलम ये है कि अगर आप कभी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) में सुबह के कपाट खोले जाते समय किसी पुजारी को यह कहते हुए भी आप सुन सकते हैं, ‘उठा हो भोले। इतनी बेर हो गईल, अबहीं तक सुतले हउआ। चला अब दुनिया देखा।’ दरअसल यही है बनारस (Varanasi) और ऐसे ही होते हैं बनारसी। सीधे और सहज परंतु ठसक भरपूर।
“राँड़, साँड़, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे वो सेवे काशी” बनारस के बारे में बड़ी पुरानी कहावत है “राँड़, साँड़, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे वो सेवे काशी”। अर्थात् पहला ये कि काशी में विधवा आश्रम बहुत हैं तो आप काशी में आप किसी विधवा के चक्कर में पड़ सकते हैं. दूसरा ये कि काशी में सांड बहुत हैं अतएव किसी के भी सींगों पर चढ़कर आप देवलोक गमन कर सकते हैं। तीसरा ये कि काशी में घाटों पर सीढ़ियां बहुत हैं, जिनसे फिसलकर आपकी इस मृत्युलोक से मुक्तिलाभ हो सकता है। चौथा या कि किसी सन्यासी के फेर में पड़ कर अपना माल लुटा सकते हैं। अब इन सबसे बच पाने वाला व्यक्ति ही काशी सेवन का लाभ उठा सकता है।
बाबा विश्वनाथ से और गंगा से दूर नहीं रह सकते बनारसी बनारसियों की एक और खास बात है वो न तो बाबा विश्वनाथ से और न ही गंगा (Ganga River) से दूर रहना चाहते हैं। जब भी चाहे दन से गंगा में गोता मारा, निकले और बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया, बाजार में खरीदारी की और चट से घर के भीतर। यही वजह है कि यहाँ गंगा के किनारे घनी आबादी बसती चली गयी।
बनारस के घाट और सीढ़ियाँ अब बात बनारस के घाटों और उनकी सीढ़ियों की। बनारसी आज तक ये समझ नहीं पाये हैं कि कि आखिर दो मील लंबे इन पंक्तिबद्ध घाटों को आज तक विश्व के आश्चर्यों में क्यों नहीं शामिल किया गया। सच्चाई ये है कि घाटों की इंजीनियरिंग ऐसी है कि दुनिया के बड़े से बड़े इंजीनियर भी दंग रह जाता है। रही बात सीढ़ियों की तो यहाँ के घाटों की सीढ़ियों पर भी छोटा-मोटा बनारस बसता है। ये सीढ़ियाँ बनारस का विश्रामगृह भी हैं यहाँ सोने पर पुलिस आपका चालान नहीं काटेगी, नगरपालिका टैक्स नहीं लेगी और न कोई आपको परेशान करेगा।
‘आवा रजा लस्सी भिड़ाय लिहल जाए’ बनारस में लस्सी पी नहीं जाती, भिड़ाई जाती है-‘आवा रजा लस्सी भिड़ाय लिहल जाए।’ यही हाल ठंडाई का है और तभी बनारसी बरबस ही पूछ बैठता है, ‘भांग छनल कि नाहीं।’ यहां किसी भी गली में निकल जाएं, इन्हीं गलियों में आपको बनारस मिलेगा। अलसाता, धौंसियाता और पुचकारता हुआ। फूलों का व्यापार हो या साड़ियों और मोतियों का, बनारसी कला की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है।
बनारस की गलियाँ बात गलियों की हुई है तो आपको बता दें कि बनारस में जो सबसे अद्भुत चीज़ आपको मिलेगी वो है वहाँ की गलियाँ। आप उस गली में चाहे दस बार घूमे हों लेकिन अगर मैं कुछ महीनों के बाद आपको उसी गली में दोबारा जाएंगे तो आप उसे पहचान नहीं पाएंगे। जब कभी भी आप बनारस जाएंगे वहाँ की गालियां आपको देश के सभी राज्यों से अलग लगेंगी।
‘बनारस में सब गुरु, केहू नाहीं चेला’ बनारसी बहुत संतोषी होते हैं। आपने उनके बनारस का सम्मान किया तो शहर सिर पर बैठा लेगा, लेकिन नखरे दिखाए तो आपका अस्तित्व खत्म। फिर चाहे आप राजा हों या कुबेर। वैसे भी जिसने बाबा को साध लिया, वह काहे जग की फिकर करने लगा। कहा भी जाता है, ‘बनारस में सब गुरु, केहू नाहीं चेला।’
‘जा बेटा, तोरे जइसन छप्पन ठे के रोज चराइला’ यहाँ सांड़ सिर्फ सड़क पर नहीं बल्कि दुकान में भी खड़ा दिखेगा। हल्कीफुल्की बातों में भी बनारस जीवन का मर्म बता देता है। आपने अकड़ दिखाई तो बनारसी समझा देगा- ‘जा बेटा, तोरे जइसन छप्पन ठे के रोज चराइला।’ बनारस देखना है तो घाटों पर समय बिताएं और पक्के महाल जाएं। सड़क किनारे चाय की बैठकी में शामिल हों और यह जानने की कोशिश करें कि सदा आनंदमग्न रहने की ऊर्जा बनारसी लाते कहां से हैं।
बनारसी मृत्यु का उत्सव मनाते हैं बनारसी मृत्यु का उत्सव मनाते हैं, इसलिए उनकी यमराज के प्रतिनिधि डोम से सहज निकटता रहती है क्योंकि इनकी उत्सवधर्मिता मानती है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। वह जीवन का उत्थान है। परम शिखर है, जीवन का चरम है, अगर आपने जीवन ठीक से जिया है, उसका सारा रस निचोड़ लिया है तो मृत्यु परम सुखकारी होगी। यहाँ होली में एक तरफ चिता जलती है तो दूसरी तरफ होली खेली जाती है। मृत्यु के प्रति ऐसी बेपरवाही इसी शहर में मिलेगी। शिव भी तो यहां के मशान में होली खेलते हैं। काशी के किसी एक श्मशान की पौराणिकता नहीं मिलती क्योंकि यह पूरा शहर ‘महाश्मशान’ कहा गया है।
“खर मेटाव से जे कइलस परहेज, रोग ओके मिले दहेज” एक बात और यहाँ खान पान की बात ही निराली है। सुबह-ए-बनारस में जब स्वाद का जादू घुलता है तो बनारसी एकदम चउचक हो हो जाता है। बनारसी कहते हैं कि, “खर मेटाव से जे कइलस परहेज, रोग ओके मिले दहेज।” दुनिया जब बेड टी ले रही होती है तब खांटी बनारसी दिव्य निपटान के बाद गरमा-गरम कचौड़ी और जलेबी लेकर टंच हो चुका रहता है। वहीं अगर इसमें आलू की छोटकी कचौड़ी और झोलदार घुघनी हो तो फिर कहना ही क्या… गुरु नथुना फड़क जाता है स्वाद आत्मा तक पहुँच जाती है।
बनारस इंटरनेट पर ना मिली और आखीर में इ कहब कि खाली एगो जनम में बनारस के त नहिये जान पइ ब.. जनम दो चार गो लेवे के पड़ि… एगो बात अउर कि बनारस इंटरनेट पर ना मिली… बनारस के जानल चाहत हउव त बनारस आवे के पड़ि… त गुरु देर मत कर चल घूम आव बनारस… हर हर महादेव…