24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

BHU के वैज्ञानिकों की बड़ी खोज, अब बहुत जल्द पता चलेगा किसे है गॉल ब्लैडर कैंसर और किस स्थिति में है, खर्च भी कम आएगा

मरीज को क्या गॉल ब्लैडर कैंसर है। ऐसा है तो क्यों है, इससे पूरी तरह स्वस्थ हो पाएंगे या नहीं, दवाएं कितनी कारगर होंगी। ये सब बताएंगे बीएचयू के वैज्ञानिक डॉक्टर। इन्होंने ऐसी खोज की है जिससे गॉल ब्लैडर कैंसर की सारी जानकारी जल्द मिलेगी और खर्च भी कम आएगा।

2 min read
Google source verification
गॉल ब्लैडर कैंसर

गॉल ब्लैडर कैंसर

वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। इन वैज्ञानिकों ने 300 सौ मरीजों पर पांच साल तक स्टडी करने के बाद गॉल ब्लैडर कैंसर के कारक तत्वों का पता लगाया है। अब वो इस स्थिति में हैं कि समय रहते इस मर्ज की जानकारी हासिल कर सकेंगे ताकि समय से उसका इलाज शुरू हो सके।

300 मरीजों पर 5 पांच साल चला शोध

विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के तकरीबन 300 मरीजों पर पांच साल तक चली स्टडी के बाद ये पता लगाने में कामयाबी मिली। इसके लिए इन मरीजों के खून अथवा ट्यूमर के सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग की गई। इस प्रक्रिया में 20 म्यूटेशन का पता चला जो गॉल ब्लैडर कैंसर के कारक हैं। इनके आधार पर मरीज को गॉल ब्लैडर कैंसर होने की सूचना देने के साथ ही इलाज शुरू किया जा सकेगा। ये शोध मॉलिक्यूलर बायोलॉजी रिपोर्ट्स में प्रकाशित भी हो चुकी है।

कम खर्च में जल्द से जल्द गॉल ब्लैडर कैंसर बताने की तैयारी

प्रो. पांडेय अब आरएनए चिप बनाने में लगे हैं जिससे 10 गुना कम खर्च में मरीज को इस रोग की जानकारी दी जा सकेगी। वैसे अभी तक के शोध में एक मरीज की जांच में करीब 10 हजार रुपए का खर्च आया है। लेकिन चिप तैयार होने के बाद ये जानकारी 1000 रुपए में ही मिल जाएगी। इतना ही नहीं, इस जांच से महीना नहीं बल्कि एक या दो दिन में रिपोर्ट भी मिल जाएगी। इससे न रोग को बढ़ने का समय मिलेगा न ही ज्यादा पैसा खर्च होगा। हालांकि इस चिप को तैयार करने में अभी कम से कम दो साल और लगेंगे। प्रो. पांडेय का कहना है कि ये आरएनए बेस्ड रिसर्च है और आरएनए से ही ही डीएनए और प्रोटीन दोनों की खराबी का पता लगाया है।

इस शोध से मिलेगी ये जानकारियां

-पित्त की थैली में गांठ दिखाई दे रही है वह कैंसर है या नहीं
-गॉल ग्लैडर के मरीज को इलाज का फायदा होगा या नहीं
- मरीज कोई दवा असर करेगी अथवा नहीं
-मरीज का कितना जीवन शेष है
-सर्जरी के बाद कैंसर दोबारा होने या न होने के कितने चांस
-कौन सी दवा और कितने दिन में असर करेगी
-कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या इम्युनोथेरेपी मरीज को दी जाए या नहीं
-जीन रेगुलेटेड है और नॉन रेगुलेटेड है यह बता पाएंगे

बीमारी के कारण

केमिकल पॉल्यूशन, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, मीट, मोटापा आदि।

महिलाओं में ज्यादा दिखी दिक्कत
महिलाओं में यह समस्या पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा होती है। इसके पीछे वजह उनमें पाया जाने वाला हार्मोन पॉजिट्रॉन बताया जा रहा है। इसके स्राव से पित्त के थैली की संकुचन प्रक्रिया रुक जाती है, जिससे वहां ट्यूमर बनने लगता है।

इन्होंने की है खोज
आईएमएस बीएचयू के सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर प्रोफेसर मनोज पांडेय, प्रो. वीके शुक्ला और उनकी शोध छात्रा रुही दीक्षित और मोनिका राजपूत को भारत में पहली बार गॉल ब्लैडर कैंसर के जिम्मेदार जीन का पता लगाने में कामयाबी पाई है।