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शहादत उनकी है जिन्होंने पाक के मुंह में घुसकर  छिना था बांग्लादेश 

-फैजाबाद में मौजूद है डोगरा रेजिमेंट,जिसके बटालियन में घुस कर आतंकियों ने मारे हैं जवान 

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Awesh Tiwary

Sep 19, 2016

bravery of dogras

bravery of dogras

-आवेश तिवारी
वाराणसी. अभी बमुश्किल डेढ़ साल बीते होंगे जब मणिपुर में डोगरा रेजिमेंट के 18 जवानों को मणिपुर में आतंकियों ने घात लगाकर किये गए हमले में मार डाला था,अब उरी में भी इसी रेजिमेंट के बटालियन मुख्यालय में घुसकर 18 जवान मारे गए हैं ,वहीँ डेढ़ दर्जन घायल हुए हैं मृत और घायल जवानो को लाया जा रहा है। अकेले पूर्वी उत्तर प्रदेश से चार जवानों के मारे जाने की खबर हैं। यूपी के फैजाबाद में मौजूद इस रेजिमेंट के जवान देश के नाम पार बार बार शहीद होते रहे हैं चाहे वो जंग का मैदान हो या आतंकवाद का सरमाया । ज्वाला माता की जय के नारे के आगे के रास्ते साथ दुश्मन पर हमला बोल देने वाले डोगरा रेजिमेंट के जवानों के बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा कि यही वो रेजिमेंट थी जिसने बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। डोगरा रेजिमेंट की स्थापना अंग्रेजों ने अविभाजित हिंदुस्तान के सियालकोट(वर्तमान पाकिस्तान ) में 1877 में की थी विभाजन के दौरान इस रेजिमेंट को पाकिस्तान में बलूच ,पंजाब और फ्रंटियर पोस्ट में बाँट दिया गया इधर हिन्दुस्तान में नए सिरे से रेजिमेंट को चुस्त दुरुस्त बनाया गया। आजादी के बाद इस रेजिमेंट ने एक अशोक चक्र और 9 महावीर चक्र पाए हैं।

न होते डोगरा तो न बनता बांगलादेश

सात दिसंबर 1971 को जब भारत पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान ने सरेंडर किया तो अंग्रेजी के एक बड़े अखबार का शीर्षक था कि "पूर्व में पाकिस्तानी सेना के प्रतिरोध का पूरी तरह से विफल हो जाना इस युद्ध की सबसे अनोखी दास्ताँ हैं। बताया जाता है कि सुआडीह नाम के उस गाँव में जहाँ पाकिस्तानी सेना सर्वाधिक शक्तिशाली थी 9 डोगरा रेजिमेंट के जवानों को लगाया गया था जिन्होंने बहुत कम समय में पाकिस्तानी सेना को वहां से खदेड़ दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय सेना के लिए आगे के रास्ते खुल गए और सेना ने पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को मुक्त कराने में सफलता अर्जित कर ली । बाद में युद्ध ख़त्म होने के बाद बटालियन को इस बड़ी सफलता के लिए युद्ध पदक भी दिया गया |सिर्फ इतना ही नहीं 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान आपरेशन विजय के तहत टाइगर हिल मिशन पर पांचवी डोगरा बटालियन के जवानों को ही लगाया गया था जो पूरी तरह से सफल रहा |एक सितम्बर 2001 के बाद से अब तक काश्मीर में डोगरा जवानों की वीरता को देखते हुए उनकी छह बटालियन तैनात की गई है ,यह भी काबिलेगौर हैं कि इस बटालियन में आज यूपी और बिहार के जवानों की संख्या सर्वाधिक है।

कहानी डेरा बाबा नानक देव की

डोगरा रेजिमेंट के जवानो की वीरता की एक और बड़ी कहानी 1971 के युद्ध से जुडी हुई है। पंजाब में डेरा बाबा नानक देव नाम का एक सीमावर्ती गाँव है जिसकी ओर पाकिस्तानी सेना बढ़ी आ रही थी इस गाँव से गुरुदासपुर ,बटाला और अमृतसर सीधे जुड़े हुए थे इस गाँव में गुरु नानक देव ने तक़रीबन अपने जिंदगी के 11 वर्ष बिताये थे इसलिए इस गाँव का सिखों के लिए अलग महत्त्व था। खैर अंततः डोगरा रेजिमेंट को इस गाँव के सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई । कर्नल एनएस संधू के नेतृत्व में रेजिमेंट की दो बटालियन गाँव की सुरक्षा में लग गई।6 दिसंबर को अचानक पाकिस्तानी सेना ने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बूंद नदी पर बने बाबा नानक देव पुल की दूसरी तरह से अचानक फायरिंग शुरू कर दी ,कर्नल ने तत्काल मेजर भोपाल सिंह यादव को बूंद नदी और उसके ऊपर बने बूंद जंक्शन पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी और जवानों के साथ तुरंत मोर्चा संभालने को कहा। उधर पाकिस्तान ने अपनी सतलज रेंजर्स और 38 पंजाब के जवानो की भारी भरकम संख्या को लगा रखा था ,लेकिनसेपाय बागी, गुलवंत सिंह और भोपाल सिंह यादव समेत अन्य डोगरा जवानों की जवाबी फायरिंग में पाकिस्तानी सेना दो घंटों में ही चित्त हो गई और भारतीय सेना ने बूंद नहीं और जंक्शन पर कब्ज़ा कर लिया और डेरे पर पाकिस्तान का कब्ज़ा कभी सफल नहीं हो पाया।

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