7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

लोकसभा चुनाव के लिए PM मोदी के खिलाफ ब्राह्मण प्रत्याशी की तलाश में कांग्रेस

यूपी के मौजूदा जातीय समीकरण में सीएम से सर्वाधिक नाराज हैं ब्राह्मण। ऐसे में पीएम मोदी के खिलाफ कद्धावर ब्राह्मण नेता की तलाश।

4 min read
Google source verification
कांग्रेस फ्लैग

कांग्रेस फ्लैग

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। ऐसे में सभी दलों में संगठन की मजबूती से लेकर प्रत्याशी चयन तक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। गठबंधन हो या न हो, कौन-कौन दल गठबंधन में शामिल होंगे कवायद इसकी भी चल रही है। लेकिन सबसे पहले अपने दल की मजबूती पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में 28 वर्ष से यूपी की सियासत के हाशिये पर चल रही कांग्रेस ने भी अपनी कसरत शुरू कर दी है। एक तऱफ जहां बूथ स्तर की कमेटियों को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन की तिथि मुकर्रर कर दी गई है। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के मुकाबिल उम्मीदवार के चयन को लेकर भी कवायद तेज कर दी गई है।


पार्टी सूत्रों की मानें तो वर्तमान में जो प्रदेश की सियासत का हाल है उससे भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर जिस तरह से जाति विशेष को तवज्जो देने के आरोप लग रहे हैं। उससे सर्वाधिक खफा हैं ब्राह्मण। वो खुद को उपेक्षित मानने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस उनकी नाराजगी का फायदा उठाने में जुट गई है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस चाहे गठबंधन का हिस्सा हो या न हो, वाराणसी की सीट पर तो उसे लड़ना ही है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबिल एक कद्धावर ब्राह्मण नेता की तलाश शुरू हो गई है। ये ब्राह्मण नेता पूर्व डॉ सांसद राजेश मिश्र भी हो सकते हैं। कारण साफ है डॉ मिश्र के साथ एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि काशी के लिए वह नया चेहरा भी नहीं होंगे। दूसरे बनारस के मुस्लिम समुदाय में भी उनकी अच्छी खासी पैठ है। अगर विधानसभा 2017 चुनाव की ही बात करें तो डॉ मिश्र को शहर दक्षिणी से सर्वाधिक मुस्लिम मत ही मिले। हालांकि तब मोदी लहर में हिंदुओं का ध्रुवीकरण डॉ मिश्र की ओर नहीं हो सका था। लेकिन ऐसा नहीं कि ब्राह्मणों के बीच उनकी पैठ नहीं। ऐसे में अगर कांग्रेस, ब्राह्मणों जो यूपी सरकार के मुखिया की भूमिका से खासी नाराज बताए जा रहे हैं, उन्हें कड़े मुकाबले का भी विश्वास दिला पाती है तो यह उसके फायदेमंद होगा और मुस्लिम व ब्राह्मण मतों के ध्रुवीकरण की स्थिति में कांग्रेस कहीं ज्यादा मजबूती से मुकाबला कर पाएगी बीजेपी प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का। फिर राजेश मिश्र का यूथ ब्रिगेड आज भी काफी हद तक उनके साथ है।

इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि कांग्रेस में जिस तरह से तीन संभावित नाम फ़िजा में तैर रहे हैं, उनमें डॉ राजेश मिश्र के अलावा 2014 के चुनाव में पीएम मोदी को टक्कर देने वाले अजय राय और मेयर प्रत्याशी शालिनी यादव हैं। इन तीनों के जातीय समीकरणों के लिहाज से अगर देखा जाए तो चाहे 2009 का लोकसभा चुनाव रहा हो या 2014 का, लाख प्रयास के बावजूद अजय राय चाहे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रहे हों या कांग्रेस के सजातीय वोट उनके साथ पूरी तरह से नहीं खड़े हो पाए। बता दें कि 2009 का चुनाव पूरी तरह से सांप्रदायिक हो गया था। तब बीजेपी प्रत्याशी डॉ मुरली मनोहर जोशी और कौमी एकता दल के प्रत्याशी मोख्तार अंसारी के बीच सीधी फाइट हो गई थी, ऐसे में मोख्तार को रोकने के लिए राजनीतिक दलों ने भी सरेंडर कर दिया था। ऐसे में हिंदू मतों के एकतरफा ध्रवीकरण में डॉ जोशी को फतह हासिल हुई। 2014 में कांग्रेस ने कौमी एकता दल से हाथ मिला लिया जिसका नतीजा यह हुआ कि अजय राय को उनके नजदीकी सजातीय लोगों के मतों से भी महरूम होना पड़ा। दूसरे राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि अजय राय पर एक ठप्पा प्रो-हिंदूवादी होने का भी है जिससे मुस्लिम मतों में वह उतनी पैठ नहीं बना पाते जिस तरह से डॉ राजेश मिश्र बना चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हाल ही में अजय राय द्वारा की गई काशी पंचक्रोशी परिक्रमा भी कांग्रेस को लाभ नहीं दिला पाई। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फिलहाल जो राजनीतिक परिदृश्य है उसमें आम हिंदुओं का अभी बीजेपी और नरेंद्र मोदी से पूरी तरह से मोहभंग नहीं हुआ है। ऐसे में रणनीत वही कारगर होगी जिससे हिंदू-मुस्लिम दोनों वर्गों को लेकर चले। फिलहाल केवल हिंदू कार्ड से कोई फायदा नहीं होने वाला।


जहां तक शालिनी यादव का सवाल है तो उसे राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के लिए एक एसेट के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने जिस तरह से मेयर के चुनाव में मेहनत किया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें एक लाख 13 हजार मत मिले। हालांकि इसमें उन 89 पार्षदों की मेहनत भी रही जिन्होंने खुद के साथ मेयर के लिए भी वोट मांगा। खास तौर पर मुस्लिम बेल्ट से उन्हें ज्यादा सफलता मिली तो इसमें भी डॉ राजेश मिश्र का बड़ा योगदान रहा। वैसे शालिनी के मतों में वृद्धि में अजय राय के योगदान को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। फिर अन्य वरिष्ठ लोगों ने भी मेयर के चुनाव में एकजुटता दिखाई और पूरी तन्मयता से लगे रहे। उस चुनाव के बाद भी वह लगातार दिल्ली से लेकर बनारस तक जिस तरह से सक्रिय हैं वह उनके भविष्य के लिहाज से ज्यादा बेहतर है। उऩकी सक्रियता कहीं न कहीं से कांग्रेस को फायदा ही पहुंचाएगी। उनकी राजनीतिक सोच भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद है। फिर जिस तरह से वह सीमावर्ती इलाकों में अपनी पैठ बनाने में जुटी हैं उसका भी बेहतर परिणाम मिल सकता है। लेकिन जिस उम्मीद से उन्हें मेयर चुनाव में उतारा गया था वह पूरा नहीं हो सका। उनके पक्ष में सजातीय मतों का ध्रुवीकरण नहीं हो सका।

हालांकि पार्टी सूत्र बताते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि कांग्रेस पीएम मोदी के खिलाफ डॉ राजेश को ही मैदान में उतारे, यह भी संभव है कि ऊपर से किसी नए ब्राह्मण नेता को भेजा जा सकता है। लेकिन इतना तय है कि प्रत्याशी तो कोई ब्राह्मण नेता ही होगा। भले वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही क्यों न आए। वैसे भी अगर सपा, बसपा और कांग्रेस का गठबंधन होता है तो भी पूर्वांचल में कांग्रेस को कम से कम दो सीट मिलनी तय है, एक वाराणसी और दूसरी कुशीनगर। कुशीनगर से आरपीएन सिंह का दावा मजबूत है। जहां तक चंदौली और देवरिया का सवाल है तो ये दोनों ही सीटें कांग्रेस के पाले में नहीं आने वाली।