17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नगर निकाय चुनावः मेयर के लिए कांग्रेस इस बिल्डर परिवार पर लगाएगी दांव

पुराना कांग्रेसी परिवार है, शहर का प्रतिष्ठित व्यावसायिक परिवार की शिक्षित नवयुवती हो सकती हैं कांग्रेस उम्मीदवार।

5 min read
Google source verification
नगर निगम चुनाव सिंबल

नगर निगम चुनाव सिंबल

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. शहर के प्रथम नागरिक के चयन के लिए होने वाला चुनाव का बिगुल बज चुका है। राज्य निर्वाचऩ अधिकारी की ओर से तिथियों की घोषणा कर दी गई है। वाराणसी में दूसरे चरण में 26 नवंबर को मतदान होना है। इसके लिए विभिन्न दलों की ओर से पार्षद प्रत्याशियों की सूची स्थानीय स्तर पर लगभग पूरी कर ली गई है। लेकिन मेयर पद के लिए अभी जोड़ तोड़ जारी है। इस बीच कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलने की तैयारी की है। समझा जा रहा है कि 1995 में जब पहली बार जनता द्वारा मेयर के सीधे चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तब से लेकर अब तक का यह सबसे बड़ा दांव होगा। इस बार कांग्रेस ने स्थानीय स्तर की गुटबाजी को दरकिनार करते हुए शहर के पुराने प्रतिष्ठित कांग्रेस घराने को इस महत्वपूरण पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार बनाने की तैयारी की है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस बार जिस परिवार की बहू को मेयर पद का उम्मीदवार बनाने की रणनीति चली गई है वह न केवल पुराना कांग्रेसी परिवार से ताल्लुख रखती हैं बल्कि वह शहर के प्रतिष्ठित व्यावसायिक घराने से भी जुड़ी हैं। दूसरे वह वेल क्वालीफाइड है। वह रिसर्च स्कॉलर है। यह परिवार फिलहाल पुराने काशी के जर्दा व्यवसाय के साथ रियल स्टेट से भी जुड़ा है।

1995 के बाद से पहली बार ऐसा उम्मीदवार

दरअसल लंबी कवायद के बाद कांग्रेस ने एक ऐसे परिवार को काशी के इस अति महत्वपूर्ण पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाने की रणनीति तय की है जो न केवल बनारस बल्कि पूर्वांचल के जर्दा व्यवसाय से अरसे से जुड़ा रहा है। बता दें कि पूर्व एमएलसी व कांग्रेस के पूर्व शहर अध्यक्ष चंद्रशेखर चौरसिया के समधी रहे माधव बाबू की पौत्रवधु हैं इशा। ससुर ओम प्रकाश गुप्ता के भाई अशोक गुप्ता औरंगाबाद वार्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। इतना ही नहीं चचिया ससुर शीतला प्रसाद चौरसिया नगर महापालिका के जमाने के मेयर रहे कुंजू बाबू के कार्यकाल में डिप्टी मेयर रहे, साथ ही वह सनातन धर्म इंटर कॉलेज की प्रबंधक भी रहे। इस विद्यालय के संस्थापकों में उनका नाम लिया जाता है। काशीवासियों के लिए नंदू राम खेदन लाल एंड संस व बदलराम, लक्ष्मी नारायण एंड संस का नाम अनजाना नहीं है। ऐसे परिवार की बहू कोलकाता की मूल निवासी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी मे एमए करने के बाद वहीं से पीएचडी करने वाली इशा गुप्ता को पार्टी ने मेयर पद का प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया है। ऐसा कांग्रेस सूत्रों का कहना है। सूत्र बताते हैं कि इशा के नाम पर पार्टी का हर घराना फिलहाल सहमत है। राजनीतिक गलियारों में भी जो चर्चा है उसके मुताबिक कांग्रेस ने इस बार मेयर पद के लिए बड़ा दांव चला है। राजनीतिक विशेलषक मानते हैं कि सर्व विद्या की राजधानी काशी के मेयर पद के लिए उच्च शिक्षा में तालीम हासिल करने वाली नवयुवती सबसे मुफीद उम्मीदवार हो सकती है। वे कहते हैं कि बनारस के पुराने कांग्रेसी व प्रतिष्ठित व्यवसायी परिवार की बहू को राजनीति के मैदान में उतारने से एक तरफ जहां पार्टी पुराने कांग्रेसियों को जोड़ने में काफी हद तक सफल हो सकती है वहीं बनारस के नए व पुराने दोनों ही वर्ग के मतदाताओं को लुभाने में कामयाब हो सकती है। यह दांव लगातार चार बार से इस पद को अपनी झोली में रखने वाली बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी।

ये भी पढ़ें-नगर निकाय चुनावः कांग्रेस संकट में, इन वार्डों के लिए नहीं मिल रहे दावेदार

एक से अधिक उम्मीदवारों से मिल सकती है मुक्ति

एक सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को यह मिलेगा कि पिछले यानी 2012 के नगर निगम चुनाव की तरह कांग्रेस से एक से अधिक प्रत्याशी मैदान में नहीं होंगे। बता दें कि पिछली बार कांग्रेस ने जहां डॉ अशोक सिंह को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था वहीं उनके खिलाफ सत्तन पांडेय, रत्नाकर त्रिपाठी ने भी ताल ठोंक दिया था। नतीजा कांग्रेस का ही वोट तीन जगह बंटा। नतीजा कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार सिंह महज 70,683 मत हासिल कर सके और बीजेपी उम्मीदवार राम गोपाल मोहले ने 1,32,800 वोट के साथ जीत हासिल कर ली थी।

अभी भी कुछ कांग्रेसी साझा प्रत्याशी के पक्ष में
हालांकि कांग्रेस का एक धड़ा अब भी मेयर पद पर साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर भी विचार कर रहा है। यह तब है जब कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता और नेता किसी गठबंधन से साफ तौर पर इंकार कर रहे हैं। वे हालिया विधानसभा चुनाव परिणाम को उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं। साझा उम्मीदवार के विरोधियों का तर्क है कि साझा उम्मीदवार देकर विपक्ष भाजपा की राह आसान ही करेगा। इससे विपक्ष को सीधा लाभ मिलने की गुंजाइश कम हो जाएगी। वैसे राजनीतिक विश्लेषक भी यही मानते हैं। उनका कहना है कि साझा विपक्ष का प्रत्याशी आने की सूरत में बीजेपी लोकल बॉडी से लेकर केंद्र तक की ताकत झोंक देगी। केंद्र व राज्य दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार होने की सूरत में ऐसा करना उसके लिए कोई कठिन न होगा। इसके विपरीत अगर कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी के अलग-अलग प्रत्याशी होने पर परिस्थितियां बदल सकती हैं। कांटे की लड़ाई में विपक्ष को कम अंतर से ही सफलता मिले पर विपक्ष का पलड़ा भारी रहेगा। वे सामूहिक रूप से अलग-अलग 1995 से अब तक के बीजेपी के कार्यकाल पर हमला बोल सकते हैं। फिर मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में आमजन भी विपक्ष के जानदार उम्मीदवार के पक्ष में आ सकता है। अन्यथा साझा उम्मीदवार उतारने की सूरत में मतदाताओं के बीच भी नकारात्मक संदेश जाएगा और बीजेपी इसे अच्छी तरह से भुना पाएगी।

ये भी पढ़ें-निकाय चुवावः BJP के लिए मेयर सीट पर कब्जा कायम रखना आसान नहीं, SP दे सकती है कड़ी टक्कर

दूसरी बार ईवीएम का इस्तेमाल

नगर निकाय चुनाव में 2012 के बाद दूसरी बार पूरी तरह से ईवीएम का इस्तेमाल होगा। ईवीएम को पोलिंग बूथ्स पर पहुंचाने के लिए उन्हें तैयार कर लिया गया।

10.84 लाख वोटर चुनेंगे शहर की सरकार
नगर निगम चुनाव में इस बार 10 लाख, 84 हजार, 821 मतदाता मेयर व पार्षद प्रत्याशी का चयन करेंगे। इसमें महिला मतदाताओं की तादाद 493487, पुरुष मतदाताओं की संख्या 591334 है। इससे पहले 2012 में 10,85,295 वोटर्स थे। यानी इस बार पिछली बार की तुलना में 474 मतदाताओं की कमी हुई है। बता दें कि 2007 के नगर निगम के चुनाव में कुल 10,59,825 वोटर्स थे।

नगर निकाय चुनाव में नोटा का अधिकार
नगर निकाय चुनाव में भी अब मतदाताओं को प्रत्याशियों को खारिज करने का हक दिया जा रहा है। राज्य निर्वाचन आयोग ने निकाय चुनाव में पहली बार नोटा (इनमें से कोई नहीं) का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया है। इसके तहत नगर निगम चुनाव में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम व रामनगर पालिका व गंगापुर नगर पंचायत में मतपत्र पर नोटा का विकल्प दिया जाएगा। इस सम्बंध में लखनऊ से शासनादेश जिला निर्वाचन कार्यालय में पहुंच गया है। बता दें कि 2012 के नगर निगम चुनाव में भी ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) का इस्तेमाल किया गया था लेकिन तब ईवीएम में नोटा का विकल्प नहीं दिया गया था। लोकसभा व विधानसभा चुनावों की तरह पहली बार निकाय चुनाव में भी नोटा का विकल्प दिया जा रहा है।

1820 ईवीएम पर होगा निगम का चुनाव
केवल नगर निगम चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा। वाराणसी नगर निगम में कुल 1820 ईवीएम लगाए जाएंगे। निगम के अंतर्गत कुल 910 बूथ बनाए गए हैं। प्रत्येक बूथ पर दो-दो ईवीएम रहेगी।

1994 में बना नगर निगम
बता दें कि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम- 1959 के तहत 24 जनवरी 1959 को नगर पालिका का गठन हुआ। तब इस आम बोलचाल की भाषा में म्यूनिस्पिलिटी कहा जाता था। एक क्षेत्र से दो-दो सभासद चुने जाते थे। फिर 1994 में नगर निगम अधिनियम-2 के अंतर्गत नगर निगम बदला। साथ ही मेयर का चुनने का अधिकार सीधे तौर पर आम जनता को दिया गया। इससे पहले नगर निगम के सभासद ही निगम सदन में मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव करते थे।