
कांग्रेस लोगो
वाराणसी. कांग्रेस ने पिछले कई महीने से या यूं कहें कि गुजरात चुनाव के दौर से बदली-बदली नजर आ रही है। पार्टी के नए सदर के सिपहसालारों ने उन्हें कुछ ऐसी सलाह दी है जिससे वह अपनी मां और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के कदमों का अक्षरशः पालन करते नहीं दिख रहे हैं। वह अपने नाना, दादी और पिता के राह पर चलते हुए संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। वह संगठन जिसमें सर्वसमाज का समागम हो, हर निष्ठावान कार्यकर्ता का सम्मान हो। पुराने कांग्रेसियों को भी याद किया जाए, उनका भी वाजिब सम्मान किया जाए। और भी कई बाते हैं कांग्रेस के इस नए अध्यक्ष और उनकी किचेन कैबिनेट के मन में। पार्टी के नए अघ्यक्ष की नीतियों का अनुसरण करते हुए बनारस के कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों ने भी उसी राह पर चलने की ठानी है। इसका अनुसारण करते हुए उन्होंने घोषणा की है कि वे इस बार आंग्ल नव वर्ष नहीं मनाएंगे। हालांकि पार्टी के भीतर ही इसे लेकर दो मत हो सकते हैं। कुछ पुरनिये और कुछ नवजवान इससे इत्तिफाक रखें यह जरूरी भी नहीं हैं। पर इसकी घोषणा हो चुकी है। इसके जरिए प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी पर भी निशाना साधा गया है।
बता दें कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की कार्य शैली कुछ ऐसी रही जिसमें हर वर्ग, हर संप्रदाय का समागम दिखता रहा। इंदिरा जी जब आदिवासियों के बीच जातीं तो उनके परिधान में उनके साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शरीक होंतीं। उनके लोक गीतों, लोक नृत्यों का भरपूर लुत्फ उठातीं रहीं। उनके नव वर्ष में शरीक होती रहीं। इसी तरह उन्हें बांग्ला, तमिल, तेलगू मलयालम लोगों के साथ भी उनके उत्सवों में शरीक होते देखा जाता रहा। वो मंदिरों में भी जातीं। लगभग वैसा ही कुछ राजीव गांधी के साथ रहा। राहुल गांधी के नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू भी हर धर्म को मानते व उनसे जुड़ी लोक परंपराओं को आगे बढ़ाने से नहीं चूकते रहे। ऐसे में देर से ही सही राहुल गांधी ने भी गुजरात चुनाव से अपने पूर्वजों से प्रेरणा लेते हुए सर्व धर्म संभाव की नीति को अख्तियार किया है। इसे भले ही सियासी दांव कहा जाए पर उसका असर भी दिखा गुजरात चुनाव में। दरअसल कांग्रेस देश के हिंदू मानस के नब्ज को पकड़ने की भी कोशिश में भी जुटी है। यही वजह है कि राहुल गांधी के माथे पर अब तिलक दिखता है। कलाइयों में नारा व काला गंडा नजर आता है। हालांकि वह उसी आदर से अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थलों पर भी जाते हैं। ये उस पुरानी कांग्रेसी कड़ी का हिस्सा है जो आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक कायम रहा। अब इसे एक बार फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास हो रहा है।
राहुल गांधी ने शपथ लेते ही जिस अंदाज में 'प्यारे कार्यकर्ता' का संबोधन किया। उसके पीछे वर्षों से उपेक्षित आम कांग्रेसियों को जोड़ने का प्रयास था। पार्टी की कमान संभालने के बाद से वह लगातार आम कार्यकर्ताओं की बात कर रहे हैं। कर्मठ कार्यकर्ताओं की बात कर रहे हैं। ऐसे में बनारस कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी जिसमें महानगर कांग्रेस कमेटी के प्रभारी दुर्गा प्रसाद, वरिष्ठ कांग्रेसी अनिल श्रीवास्तव 'अन्नू' , राजेश मिश्र उर्फ गुड्डू महाराज, वरिष्ठ महिला कांग्रेसी नेता पूनम कुंडू ने भी तय किया है कि वो अंग्रेजी नव वर्ष नहीं मनाएंगे। इसके पीछे दो तर्क है। अन्नू व गुड्डू महाराज ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि एक तो वह अपना हिंदू नव वर्ष चैत्र नवरात्र प्रतिपदा को मनाएंगे। यही हमारा नव वर्ष है। दूसरे दुर्गा प्रसाद, पूनम कुंडू आदि का कहना है कि अभी अभी बनारस कांग्रेस के लोकप्रिय पूर्व विधायक कैलाश टंडन का निधन हुआ है, अभी उनकी सत्रहवीं भी नहीं बीती है लिहाजा हम लोग नव वर्ष का जश्न कैसे मना सकते हैं भला। यह पार्टी की रीत-नीति, परंपरा और संस्कृति के विरुद्ध होगा। ऐसे में इन कांग्रेसियों ने घोषणा कर दी है कि वो अंग्रेजी नव वर्ष नहीं मनाएंगे। इसकी सूचना उन्होंने पीसीसी और एआईसीसी को भी दे दी है।
प्रदेश सचिव दुर्गा प्रसाद गुप्ता के आवास पर हुई आपात बैठक में यह निर्णय लिया गया। वक्ताओं ने पूर्व विधायक कैलाश टंडऩ के व्यक्तित्व व कृतित्व की चर्चा करते हुए कहा कि जहां एक ओर कार्यकर्ताओं ने अपना मार्गदर्शक व नेता खोया है तो वहीं दूसरी ओर गरीबों ने अपना सच्चा समाज सेवक। उनके निधन से आम कार्यकर्ताओं व समाज की अपूरणीय क्षति हुई है एैसे में टंडन जी की सत्रवहीं तक किसी भी प्रकार के जश्न कार्यक्रम में हम शामिल नहीं होंगे व शोक संतप्त परिवार के शोक में सम्मिलित रहेंगे।
बैठक मेें ये थे शामिल
बैठक में अनिल श्रीवास्तव 'अन्नु' डॉ जितेन्द्र सेठ ,प्रमोद श्रीवास्तव ,मंगलेश सिंह ,राजेश मिश्रा 'गुड्डु', पूनम कुंडू, रियाज अहमद बबलू आदि उपस्थित थे।
Published on:
31 Dec 2017 12:54 pm
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