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योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री बन 52 साल पुराना इतिहास दोहराया “दयालु” ने

कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है, तो इस कहावत को चरितार्थ किया है डॉ दयाशंकर मिश्र दयालु ने। आज से 52 साल पहले बनारस के टीनएन सिंह जब यूपी के मुख्यमंत्री बने तो वो भी किसी सदन के सदस्य नहीं थे। अब टीएन सिंह के बाद दयाशंकर दयालू योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री बने हैं और वो भी किसी सदन के सदस्य नहीं है।

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डॉ दयाशंकर मिश्र दयालु, योगी आदित्यनाथ सरकार के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार

डॉ दयाशंकर मिश्र दयालु, योगी आदित्यनाथ सरकार के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार

वाराणसी. कहा जाता है कि इतिहास अपने को दोहराता है और इस कहावत को चरितार्थ किया है डॉ दयाशंकर मिश्र दयालू ने। शुक्रवार को जब दयालु ने योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार पद की शपथ ली तो वो भी किसी सदन के सदस्य नहीं रहे। इसके साथ ही दयालु ने 52 साल पूर्व के टीएन सिंह के रिकार्ड की बराबरी कर ली।

बता दें कि दयालु वाराणसी ही नहीं अपितु पूर्वांचल के ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने बिना किसी सदन का सदस्य हुए ही मंत्री पद की शपथ ली है। इससे पहले 1970 में जब वाराणसी के टीएन सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया था तो वह भी किी सदन के सदस्य नहीं थे। ये दीगर है कि टीएन सिंह उससे पहले 1957 के संसदीय चुनाव में चंदौली सीट से विख्यात समाजवादी डॉ राममनोहर लोहिया को शिकस्त दी थी।

दरअसल 1970 में सीपी गुप्ता ने मुख्यमंत्री पद से जब त्यागपत्र दिया तब चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। हालांकि चौधरी चरण सिंह को पंडित कमलापति त्रिपाठी का समर्थन हासिल हुआ था। लेकिन कुछ ही महीनों बाद कांग्रेस ने चौधरी साहब से समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। फिर अक्टूबर 1970 में टीएन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। उस वक्त सिंह न एमएलए थे न एमएलसी। लिहाजा उन्हें छह महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य बनना था।

टीएन सिंह के लिए गोरखपुर की मणिराम सीट से टीएन सिंह उपचुनाव लडे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दरअसल मणिराम सीट से तब गोरक्षनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा के विधायक थे, लेकिन वो सांसद बन गए तो यह सीट रिक्त हो गई थी। ऐसे में इस सीट से टीएन सिंह को मैदान में उतारा गया। महंत अवैद्यनाथ ने टीएन सिंह का समर्थन भी किया था। बावजूद इसके टीएन सिंह को रामकृष्ण द्विवेदी के मुकाबले पराजय का सामना करना पड़ा था। वैसे वो इतिहास भी जबरदस्त है जिसमें एक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव हार गए थे।...