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Doctors Day Special- एक डॉक्टर ऐसा जिसे सुधि है 20 करोड़ गरीब जनता की, आठ साल से लड़ रहा है जंग

डॉक्टर्स डे को पीएम नरेंद्र मोदी को लिखा पत्र, कहा सुनें इस गरीब जनता की और दे दें उनके बेहतर इलाज का साधन।

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डॉ ओमशंकर

डॉ ओमशंकर

वाराणसी. आठ साल पहले डॉक्टर्स डे से समूचे उत्तर भारत की गरीब जनता के बेहतर इलाज के लिए मुहिम छेड़ने वाले इस डॉक्टर की लड़ाई अभी जारी है। केंद्र से लेकर राज्य तक में सत्ता बदल गई। लेकिन इस डॉक्टर का संघर्ष अभी जारी है। यह संघर्ष से उत्तर भारत के 20 करोड़ गरीब जनता के लिए। इसके लिए उन्होंने अपना कैरियर तक दांव पर लगा दिया है। एक बार निलंबित भी हो चुके हैं पर हार नहीं मानी। यह डॉक्टर और कुछ नहीं बस गरीबों को सस्ता और बेहतर इलाज मुहैया कराने के लिए लड़ रहा है। कई बार वह अपने मकसद में सफल होते भी दिखते हैं लेकिन तभी कुछ ऐसा हो जाता है कि लक्ष्य हासिल होते होते दूर हो जाता है। हम बात कर रहे हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ ओम शंकर की। डॉ शंकर ने अब फिर से प्रधानमंत्री और बनारस के सांसद नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर काशी में 2000 बिस्तरों वाला सम्पूर्ण एम्स देने की मांग की है।

धनवंतरि की नगरी में लोग इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर
डॉ शंकर ने अपने पत्र में लिखा है, हमारे सांसद होने के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री भी हैं। काशी चिकित्सा जगत की जननी है और भारतीय संस्कृति की धरोहर भी। भगवान धनवंतरि से लेकर देवदास,चरक और सुश्रुत जैसे वैद्य इसी धरती से जुड़े रहे। कभी पूरी दुनिया को स्वस्थ रखने वाली काशी तथा आसपास की जनता आपके प्रधानमंत्री रहने के बावजूद अपने विशिष्ट इलाज के लिए पूरे देश में भटकने को मजबूर हैं।

जनता को है पीएम पर भरोसा
स्वास्थ सेवाओं के बेहाली की वजह से इस आसपास के हज़ारों लोग सालों से यहां एम्स बनाये जाने को लेकर आंदोलनरत हैं। लेकिन आपके द्वारा पूर्वांचल में घोषित एम्स को गोरखपुर भेज दिए जाने से विधानसभा चुनाव से पहले वो काफी आहत हुए थे। फिर भी उन्हें अटूट विश्वास था कि आप उनकी मांग संसदीय चुनाव से पहले मानकर न सिर्फ उनकी भावनाओं का आदर करेंगे बल्कि अपने आपको भी इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाएंगे। लेकिन एक बार फिर से उस जनता की भावनाओं के साथ बीएचयू के कुछ अधिकारियों द्वारा 'अपनी खास किस्म की बगिया' कायम रखने के लिए, एक असंवैधानिक सहमति पत्र पर दस्तखत कर खिलवाड़ करने की कोशिश की है, जिससे आमजन इतने आहत हैं कि वो अपने एम्स आंदोलन को और तेज करने को मजबूर हो गए हैं।

कुछ स्वार्थी तत्व 20 करोड़ जनता के साथ पीएम का भी अहित सोच रहे
बीएचयू के कुछ स्वार्थी अधिकारी तथा उनके समर्थक मठाधीश, राजनेता किसी भी कीमत पर यहां एम्स नहीं बनने देना चाहते हैं। उन्हें भय है कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी उमंग फ़ार्मेसी, सीटी स्कैन, एमआरआई जैसी दुधारू गायें उनके हाथों से निकल जाएंगी। यानी 10-20 लोगों का निजी स्वार्थ इस आसपास के 20 करोड़ आम जनता के स्वास्थ के अधिकार के साथ-साथ आपका अहित कराने पर भी आमदा हैं, जिसके लिए सीबीआई जांच करवाने की जरूरत है। इसलिए इस "स्वार्थी गैंग" के सदस्यों ने एक साजिश के तहत एक झूठी अफवाह फैलाई कि "बीएचयू में एम्स बनने से महामना की बगिया टूट जाएगी"। इस झूठ को आपतक पहुंचने के लिए इन लोगों ने आपके दिल्ली स्थित पीएमओ के एक उच्च अधिकारी का सहारा लिया जिनकी गलत सूचना और दिए धोखे की हीं वजह से शायद आप काशी में घोषित एम्स को गोरखपुर भेजे जाने पर सहमत हुए। पिछले विधानसभा चुनाव में स्वास्थ बहुत बड़ा मुद्दा बना था (और इस बार के आम चुनाव में उससे भी बड़ा मुद्दा बनेगा) जिसकी वजह से आपकी पार्टी ने सरकार बनने पर उत्तरप्रदेश में 6 नए एम्स और 24 नए सुपरस्पेशलिटी सेन्टर बनाने के चुनावी वादे किेए, जो आज एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वास्तविक धरातल पर शून्य हीं दिख रहा है।

मठाधीशों को उखाड़ फेकें
जल्द हीं 2019 का आम चुनाव आनेवाला है जिसकी वजह से केंद्रीय कैबिनेट ने हाल हीं में 20 नए एम्स बनाये जाने को मंजूरी दी है जिसके बाद काशी को एक नया सम्पूर्ण एम्स मिलना तय दिख रहा था जो नए एमओयू से ध्वस्त होता दिख रहा है। काशी की जनता अपने आपको ठगा महसूस कर रही है। लेकिन इस संबंध में आपके सकारात्मक रुख को देखते हुए वो आज भी यह मानती है कि आप काशी को एक नया 2000 बिस्तरों वाला सम्पूर्ण एम्स जरूर देंगे। लेकिन आपकी चाहत और काशी के आसपास की 20 करोड़ जनता के स्वास्थ के अधिकार के बीच में आज बीएचयू के कुछ स्वार्थी उच्च पदस्त अधिकारी, बीएचयू व महामना को अपनी निजी थाती समझने वाले मठाधीश तथा उनके समर्थक, कुछ आपकी हीं पार्टी के स्थानीय नेतागण खड़े हो गए हैं जिनको उखाड़ फेंकने की आपको शख्त जरूरत है।

एम्स की वकालत करने वाले बन गए विभीषण
आपको यह समझना होगा कि इस कुत्सित कार्य में आज आईएमएस, बीएचयू के कुछ ऐसे भी अधिकारी अपनी अवैध कुर्सियां बचाने के लिए विभीषण बन गए हैं जो कलतक आईएमएस को एम्स बनाने की वकालत करते नहीं थकते थे। यहां तक कि बीएचयू में हुए एम्स आंदोलनों तक में शामिल रहे हैं। बीएचयू के कुछ उच्च अधिकारीगण जब भी यहां एम्स बनने की बात आती है महामना की बगिया टूट जाएगी का राग अलापवे लगते हैं, क्योंकि बीएचयू का केंद्रीय कार्यालय आज अस्पताल में इलाज को आनेवाले मरीजों से एकत्रित धनराशि में से 20 फीसदी राशि तो सीधे-सीधे आईएमएस से गुंडा टैक्स, रंगदारी के तौर पर वसूलता है तथा सर सुंदर लाल अस्पताल में भ्रष्टाचार के अन्य स्रोतों द्वारा जनित पैसे भी कहीं न कहीं बीएचयू में बननेवाले एम्स का उनके द्वारा विरोध किये जाने की एक सबसे महत्वपूर्ण वजह है।

सरकार का धन जनता के काम आए
किसी भी विश्वविद्यालय का उसके अंदर स्थित कॉलेजों के साथ जुड़ाव का अर्थ सिर्फ इतना होता है कि वो उन कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों की परीक्षा लेकर उनको सही समय पर डिग्रियां प्रदान करता हैं। लेकिन बीएचयू में बननेवाले एम्स के लिए हमलोग न सिर्फ यह चाहते हैं कि वह "संपूर्ण एम्स" बने बल्कि इसका बीएचयू के साथ भी जुड़ाव बना रहे। लेकिन यह जुड़ाव कितना हो जिससे नए बनने वाले एम्स की कार्यप्रणाली पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। इस संबंध में महामना, बीएचचयू को अपनी निजी थाती समझने वाले मठाधीशों और कुछ स्वार्थी उच्च पदस्थ अधिकारियों की राय में जुड़ाव का अर्थ है करोड़ों रुपये सरकार से तो 20 करोड़ जनता के नाम पर संस्थान को आए पर यह आम जनता तक पहुंचने के बदले उनके पेट में समा जाए। इसके विपरीत हमलोगों के जुड़ाव का अर्थ है कि जिस तरह किसी अन्य विश्वविद्यालयों का जुड़ाव वहां के कॉलेजों के साथ होता है (सम्पूर्ण प्रशासनिक तथा वित्तिय स्वतंत्रता के साथ) उससे कहीं ज्यादा जुड़ाव बीएचयू में बनने वाले नए एम्स के साथ होना चाहिए। पर जो पैसा सरकार गरीबों की स्वास्थ सुविधाएं बढ़ाने के लिए यहां दें उसका लाभ सिर्फ आम जनता को मिले, जैसा कि आप अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे जनता को पहुंचाने तथा बिचौलियों को खत्म करने के लिए करोड़ों जन-धन बैंक खाते खुलवाकर करने की कोशिश की है।


ऐसा हो प्रारूप
यानी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय न सिर्फ इस कैंपस में बननेवाले एम्स में पढ़नेवाले छात्रों की समय-समय पर सिर्फ परीक्षा लेकर उनको अपनी डिग्री दें, (जो बाध्यता आज आईआईटी के ऊपर नहीं है ऐसे में लोग उसे BHU का हिस्सा नहीं मानते हैं) बल्कि नए एम्स के "गवर्निंग कॉउन्सिल" में BHU के कुलपति को स्थायी तौर पर "एक्स ऑफिसियो चैयरमेन" का दर्जा मिले, बीएचयू की सबसे उच्च प्रशासनिक संस्था,एग्जीक्यूटिव काउंसिल के दो सदस्य भी नॉमिनी के तौर उस गवर्निंग कॉउंसिल में शामिल किए जाए। महामना और बीएचयू के साथ और मजबूत जुड़ाव बनाने के लिए इस नए बनने वाले एम्स का नाम आईएमएस बीएचयू न हो कर "महामना इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज" हों, ताकि महामना हमेशा के लिए नए एम्स के साथ जुड़ जाए। लेकिन "नए एम्स के डायरेक्टर" के चयन में "बीएचयू के कुलपति" का कोई भी हाथ न हो जैसा किसी अन्य एम्स के डायरेक्टर के चयन में होता है (जैसा की अन्य किसी भी विश्वविद्यालय में प्रिंसिपल के चुनाव में किसी भी कुलपति का कोई हाथ नहीं होता है और जो आज यहां अयोग्य उम्मीदवार के चयन और उससे जनित अस्पताल में फैले भ्रष्टाचार की भी मुख्य वजह है)। चुनाव का आधार सिर्फ और सिर्फ मेरिट तथा ईमानदारी हो, न कि पांव पूजन, जिससे अस्पताल में फैले गहरे भ्रष्टाचार को जड़ से खात्म किया जा सके। प्रशासनिक तथा वित्तीय संरचना और सुविधायें बिल्कुल वैसी हीं होनी चाहिए जैसा कि एम्स दिल्ली का है।

बीएचयू नहीं तो अदलपुरा में बनवाएं नया एम्स
इस पूरे एमओयू में एम्स अथवा एम्स जैसी कोई भी चीज दूर-दूर तक कहीं भी नजर नहीं आती हैं और न हीं इसमें कोई वित्तीय तथा प्रशासनिक स्वतंत्रता आईएमएस को देने जैसी कोई बात लिखी है। यही नहीं इसको भविष्य में मिलनेवाले वित्तीय राशि का भी कहीं कोई उल्लेख तक नहीं है। ऐसे में विनम्र निवेदन है कि बीएचयू के स्वार्थी अधिकारीगण अगर अपनी भ्रष्टाचारी कुंठा को कायम रखने के लिए बीएचयू में 2000 बिस्तरों वाला सम्पूर्ण एम्स नहीं बनने देना चाहते हैं तो उसी धनराशि से आप इस 2000 बिस्तरों वाले एम्स को " बीएचयू से बाहर अदलपुरा के सब्जी अनुसंधान केंद्र" में बनवाएं जो आपको अगले आम चुनावों में काफी लाभ पहुंचाएगा और कोई भी झुनझुना थमाने की कोशिश आपको पूरे देश में काफी नुकसान पहुंचाएगा।