
मायावती
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. गाजीपुर के सांसद रहे विश्वनाथ गहमरी के 1962 में संसद में पूर्वांचल के अति पिछड़ेपन को लेकर दिए भाषण के बाद से 2018 के बीच 56 सालों के दौरान ऐसा नहीं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की बदहाली की आवाज न उठी हो। लेकिन शीर्ष स्तर से बरती गई अवहेलना ने इसे बदहाल ही रख छोड़ा है। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष रहे शिवपाल यादव और पूर्व सीएम व वर्तमान में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को छोड़ प्रायः हर दल ने पृथक पूर्वांचल राज्य का समर्थन ही किया है समय समय पर।
मायावती ने विधानसभा में पारित कराया था प्रदेश को चार भाग में बांटने का प्रस्ताव
लेकिन नवंबर 2011 में यूपी की तत्कालीन सीएम मायावती ने विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार राज्यों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र के पास भेजा था। लेकिन बसपा सरकार कुछ ही महीनों में चली गई और सूबे की सत्ता पर काबिज समाजवादी सरकार के शासनकाल में मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने वाले विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए चुनाव प्रचार के दौरान इसे इस सूबे का शिनाख्त मिटाने की कोशिश तक करार दिया था।
लोकमंच का प्रयास
मायावती के बाद अमर सिंह और उनके भाई ने जब लोकमंच का गठन किया तो उन्होंने भी प्रदेश के बंटवारे की जमकर वकालत की। जगह-जगह रैलियां निकाली गईं, जनसभाएं हुईं लेकिन बात बनी नहीं। फिर वर्तमान प्रदेश सरकार के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने भी समय समय पर पूर्वांचल के पिछड़ेपन का उल्लेख करते हुए पृथक पूर्वांचल राज्य की मांग उठाई। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।
खुद को रोशन करने के साथ प्रदेश की आत्म निर्भरता
बता दें कि देश के दूसरा सबसे बड़ा जिला सोनभद्र सबसे ज्यादा राजस्व देता है, मगर वहां के हालात सबसे बदतर हैं। पूर्वांचल की हालत देख लीजिए। वह जिला जो समूचे उत्तर भारत को बिजली देता है पर खुद अंधेरे में रहता है। लेकिन पृथक राज्य का हिस्सा होने की सूरत में यह जिला ही नहीं बल्कि पूरा प्रदेश बिजली के मामले में आत्म निर्भर होता। सोनभद्र जैसा जिला खनिज पदार्थों से लबरेज है तो मिर्जापुर और कुशीनगर को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित किया जा सकता है। अगर बात करें बनारस से मऊ तक फैले बुनकरी उद्योग, यानी बनारसी साड़ी और सिल्क उद्योग, भदोही-मिर्जापुर का कालीन उद्योग पूरी तरह से तबाह हो चुका है। इस पारंपरिक हुनर को कायम रखते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार दिया जा सकता था। अगर कहें कि ये उद्योग पूर्वांचल को आर्थिक स्थिति को काफी हद तक मजबूत कर सकते थे। लेकिन इस दिशा में जो भी प्रयास किए गए वह नाकाफी रहे। हालांकि इसकी वजह उत्तर प्रदेश के आकार-प्रकार को भी काफी हद तक दिया जाता रहा है। तर्क यह दिया जाता रहा कि अगर पूर्वांचल अलग राज्य होता तो इस पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकता था जैसे उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ ने विकास किया वैसे पूर्वांचल का भी विकास हो सकता था। सिक्किम की तरह इन इलाकों का भी नक्शा बदल सकता था।
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Published on:
22 Sept 2018 03:21 pm
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