लाल बहादुर शास्त्री का पैतृक आवास वाराणसी के रामनगर क्षेत्र में है, जबकि उनका जन्म काशी से सात मील दूर मुगलसराय के कूढ़कला नामक स्थान पर वर्ष 1904 में हुआ था । 11 जनवरी 1966 को भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध खत्म होने के बाद शास्त्री जी पाक सैन्य शासक जनरल अयूब खान के साथ सोवियत संघ के ताशकंद शहर में शांति समझौता करने गए थे. इसी रात देश से बाहर शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गयी थी। मगर शास्त्रीजी के परिवार वाले दिल का दौरा होने से मौत की खबर को मानने को तैयार नहीं है। परिवार वालों के अनुसार जब शास्त्रीजी के शरीर को भारत लाया गया और उन्हें सौंपा गया, तब उनकी छाती, पीठ और पेट पर नीले रंग का निशाना था, जिससे लगता है कि उन्हें जहर दिया गया है।
घटना के वक्त जो जानकारी सामने आई थी, उसके अनुसार ताशकंद शहर में शास्त्रीजी ने जो खाना खाया था वह किसी अनजान शख्स ने बनाया था। इस मामले में जो हैरान करने वाली बात है कि शास्त्रीजी की मौत के बाद शव का पोस्टमॉर्टम तक नहीं कराया गया था। जिस दिन शास्त्रीजी की मृत्यु हुई उस रात उनके चिकित्सक डॉ. चुघ और सेवक रामनाथ उनके साथ थे। वे ही हकीकत के गवाह थे। मगर बाद में डॉ. चुघ की सड़क हादसे में संदिग्ध मौत हो गई और रामनाथ का सिर अज्ञात कार ने ऐसा कुचला कि उनकी स्मृति चली गई। शास्त्रीजी की मौत को लेकर 2009 में केंद्र सरकार ने एक आरटीआई के जवाब में कहा था कि अगर शास्त्री जी की मौत से जुड़ी घटनाओं को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था।