18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

गांधी की 150वीं जयंती पर विशेषः पहली बार बनारस में ही बापू ने रखा था असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव

तब बनारस के हिंदू स्कूल में हुई थी कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक। उसके बाद आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में 50 छात्रों काशी हिंदू विश्वविद्यालय से तोड़ा था नाता।

3 min read
Google source verification
महात्मा गांधी

महात्मा गांंधी

वाराणसी. काशी जिसे देश की धार्मिक राजधानी का दर्जा हासिल है उसका स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है। यह काशी ही है जहां पहली बार महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा था। वह मौका था कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का। गांधी जी ने यहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय के घर रह कर किया था असहयोग आंदोलन का शंखनाद। टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में काशी के विशिष्ठ जनों को किया था संबोधित। तब मालवीय जी इस आंदोलन के समर्थक नहीं थे।

महात्मा गांधी 30 मई 1920 को अपने चौथे दौरे पर बनारस आए थे, हिंदू स्कूल में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भाग लेने। बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष लाल लाजपत राय ने की थी। उस बैठक में लोकमान्य तिलक भी मौजूद थे। जालियांवाला बाग कांड से समूचा देश आहत था। इस बैठक में सबसे पहले पंडित मोती लाल नेहरू ने जालियांवाला बाग कांड की जांच रिपोर्ट रखी। उस पर चर्चा के बाद लोगों का ध्यान केंद्रित हो गया। गांधी जी ने पहली बार असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम कांग्रेसजनों के सामने विचारार्थ रखा। बाद में इसे एजेंडे में शामिल कर लिया गया। प्रस्ताव पर चर्चा हुई तो कई नेता इससे असहमत दिखे। हालांकि वह प्रस्ताव सम्यक विचार विमर्श के बाद बहुमत से पारित हो गया। उसके साथ ही एक विशेष कांग्रेस अधिवेशन बुला कर असहयोग के बनारस संकल्प की पुष्टि कराने का निश्चय किया गया। यानी यह कहें कि असहयोग आंदोलन की नींव बनारस में पड़ी तो गलत नहीं होगा। इस तरह गांधी जी ने उस काशी यात्रा से काशी को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के युगांतकारी अध्याय की संरचना का साक्षी बना दिया। इस ऐतिहासिक बैठक के बाद 31 मई को उन्होंने काशी से प्रयाग के लिए प्रस्थान किया।

30 मई 1920 की उस ऐतिहासिक काशी यात्रा जिसमें कांग्रेस कार्यसमिति ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव बहुमत से पारित किया था के बाद गांधी जी पांचवीं बार 24 नवंबर 1920 को पुनः काशी आए। गांधी का यह दौरा, कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन के बाद काशी में असहयोग की दार्शनिकता के प्रचार के लिए था। वह तीन दिनों तक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के निवास पर रुके। वह प्रवास गांधी जी के समन्वयी सोच व दृष्टि का परिचायक रहा। गांधी जी असहयोग आंदोलन में विदेशी सरकार की सहायता से चलने वाली शिक्षण संस्थाओ के बहिष्कार का आह्वान कर रहे थे और इस बहिष्कार में काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी आता था। मालवीय जी बहिष्कार के विरुद्ध थे। उनकी मान्यता थी कि विद्यार्थी पहले पढ़ लें, फिर देश सेवा के क्षेत्र में उतरें। ऐसे तल्ख मतभेद के बावजूद गांधी जी, मालवीय जी के घर पर ही ठहरे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह बहिष्कार के लिए छात्रों को बरगलाने नहीं आए बल्कि उनकी आत्मा को इस संदर्भ में उचित निर्णय के लिए जगाने आए हैं। मजेदार तो यह कि तब गांधी जी से मिलने जो भी जाता उसे बड़े धर्मसंकट से गुजरना होता था। एक तरफ जहां गांधी असहयोग की बात कर रहे थे तो दूसरी तरफ मालवीय जी इसके पक्ष में नहीं थे। दोनों लोगों का कमरा अगल-बगला था।

तीन दिन के काशी प्रवास के दौरान गांधी जी ने बीएचयू के टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में काशी के विशिष्ट लोगों को असहयोग का दर्शन व रीति-नीति समझाया। उन्होंने लोगों को झकझोरते हुए कहा, शांत बैठने और नारे लगाने से काम नहीं चलेगा, कुछ ठोस करना होगा। सभी को आगे आना होगा। सरकार को जनता की महान ताकत से परिचित कराना होगा। पुराने लोग बताते हैं कि उनका वह उद्घोष अपूर्व जनसंघर्ष का शंखनाद और जनयुद्ध की अहिंसक सत्याग्रही भावना का उद्घाष था। सीधा प्रभाव भी पड़ा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय से आचार्य कृपलानी के साथ 50 छात्र निकले। इनमें से अधिकांश ने काशी विद्यापीठ में दाखिला लिया। संस्कृत कॉलेज के छात्रों ने काशी विद्यापीठ के कुमार विद्यालय में विद्यार्थी चंद्रेशेखर आजाद के नेतृत्व में असहयोगी संस्कृत छात्र समिति बना ली और असहयोग का अग्रणी श्रीगणेश गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज की परीक्षा बहिष्कार से किया। इसका उल्लेख महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं गांधी जीवन दर्शन नामक पुस्तिका में भी मिलता है।