14 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

गंगा नदी में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण, प्लास्टिक का सर्वाधिक सांद्रण वाराणसी में

प्लास्टिक का सर्वाधिक सांद्रण वाराणसी में पाया गया है और इसमें ‘सिंगल-यूज़ प्लास्टिक’ (Single use plastic) तथा द्वितीयक प्लास्टिक उत्पाद शामिल पाए गए हैं।

2 min read
Google source verification
River

River

लखनऊ. हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि गंगा नदी के विभिन्न हिस्से ‘माइक्रोप्लास्टिक’ (Microplastic) से प्रदूषित हैं। इस प्रकार के प्लास्टिक का सर्वाधिक सांद्रण वाराणसी में पाया गया है और इसमें ‘सिंगल-यूज़ प्लास्टिक’ (Single use plastic) तथा द्वितीयक प्लास्टिक उत्पाद शामिल पाए गए हैं। ‘माइक्रोप्लास्टिक्स’ (Microplastics) को पानी में अघुलनशील, सिंथेटिक ठोस कणों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनका आकार 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर (मिमी) तक होता है।

माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के कारण-

नदी के किनारे अवस्थित कई शहरों के अनुपचारित सीवेज का नदी की धारा में प्रवाह किया जाना।
कई घनी आबादी वाले शहरों के निकट, औद्योगिक अपशिष्ट और गैर-अपघटनीय प्लास्टिक में लिपटे धार्मिक प्रसाद का नदी में विसर्जन करने से नदी में प्रदूषकों का ढेर एकत्रित हो जाता है। नदी में छोड़े गए या फेंके गए प्लास्टिक उत्पाद और अपशिष्ट पदार्थ बिखंडित होकर अंततः माइक्रोपार्टिकल्स के रूप में विभिक्त हो जाते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण विशेष रूप से हानिकारक क्यों है?

प्लास्टिक को विघटित होने में सैकड़ों से हजारों वर्ष का समय लग सकता है, और यह प्लास्टिक के प्रकार और इसे ‘डंप’ करने वाली जगह पर भी निर्भर करता है। जूप्लैंकटंस जैसी कुछ समुद्री प्रजातियां, सूक्ष्म कणों को भोजन के रूप में ग्रहण करने पर वरीयता देतीं है, इससे इनके लिए खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करना आसान हो जाता है। ‘माइक्रोप्लास्टिक’ जैसे सूक्ष्म कणों को खाने से ये समुद्री जीव, शीघ्र ही ‘विष्ठा की गोलियों’ में परिवर्तित हो जाते है।

पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न समाचार रिपोर्टों से पता चला है कि व्हेल, समुद्री पक्षी और कछुए जैसे समुद्री जानवर अनजाने में प्लास्टिक को निगल जाते हैं और इससे अक्सर इनकी दम घुटने से मौत हो जाती है।

मनुष्यों पर प्रभाव-

जब समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण, खाद्य श्रृंखला में पहुँच जाता है, तो यह मनुष्यों के लिए भी हानिकारक हो जाता है। उदाहरण के लिए, बहुधा नल के पानी, बीयर और यहां तक कि नमक में भी माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाते हैं। मनुष्य द्वारा ग्रहण किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा का अनुमान लगाने वाले कुछ अध्ययनों में से, जून 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एक सामान्य व्यक्ति हर साल माइक्रोप्लास्टिक के कम से कम 50,000 कण अपने भोजन के साथ खा जाता है।

मनुष्यों द्वारा प्लास्टिक का अंतर्ग्रहण हानिकारक होता है, क्योंकि प्लास्टिक के उत्पादन हेतु प्रयुक्त कई रसायन कैंसर-जनक हो सकते हैं। फिर भी, चूंकि माइक्रोप्लास्टिक्स अध्ययन का एक उभरता हुआ क्षेत्र है, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके सटीक जोखिम स्पष्ट रूप से अभी ज्ञात नहीं हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने के लिए भारत के प्रयास-

20 से अधिक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ‘प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने की लड़ाई’ में शामिल हो गए हैं, और इनके द्वारा कैरी बैग, कप, प्लेट, कटलरी, स्ट्रॉ और थर्मोकोल उत्पादों जैसे सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई है। भारत के “बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन” अभियान की वैश्विक रूप से सराहना की गयी है। इस अभियान के तहत भारत ने वर्ष 2022 तक ‘सिंगल-यूज प्लास्टिक’ को खत्म करने का संकल्प लिया है।