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सरकार की नीतियां हिंसा को प्रोत्साहित कर रहीं; थानवी

विचारो की अभिव्यक्ति से उपजा हिंसात्मक रुख समाज के लिए घातक। घृणा व असहिष्णुता के दौर में पत्रकारों की चुनौती बढ़ी।

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ओम थानवी

ओम थानवी

वाराणसी. समाज में जिस तरह से घृणा, असहिष्णुता और हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं, उसके बीच विचारधाराओं के खिलाफ कुछ लिखना ही नहीं बल्कि समाज तक बिना लागलपेट अपनी बात पहंचाना पत्रकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गयी है। यह विचार देश के जाने माने पत्रकार ओम थानवी ने आज काशी पत्रकार संघ में एक अनौपचारिक चर्चा के दौरान व्यक्त किए। थानवी ने आरोप लगाया कि सरकार की कुछ नीतियां ऐसी हैं जो हिंसा को प्रोत्साहित करती हैं। वोट के लिए हिंसा का वातावरण बनाना समाज संगत नहीं है। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह से सरकार द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुख्य मीडिया पर आर्थिक और विज्ञापन के जरिए अपना वर्चस्व कायम रखने का प्रयास हो रहा है। वह पत्रकारों के लिए सम्भावित संकट है। उन्हांने कहा कि फिर भी पत्रकारों को मायूस होने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके हाथ में सशक्त सोशल मीडिया है। हालांकि सोशल मीडिया को मुख्य मीडिया नहीं कहा जा सकता फिर भी सोशल मीडिया का दायरा बड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार थानवी ने पत्रिका के प्रधान समूह संपादक गुलाब कोठारी के रविवार के अग्रलेख की चर्चा भी की और कहा कि आज के दौर में समाचार पत्र निकालना भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। उन्होंने राजस्थान सरकार द्वारा लाए जा रहे कानून की आलोचना की और कहा कि सरकारें सरकारी विज्ञापन का दबाव बना कर समाचार पत्रों को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन पत्रिका समूह के प्रधान समूह संपादक की लेखनी ने साबित कर दिया है कि अभी कुछ समूह ऐसे हैं जो सरकारी विज्ञापनों के दबाव में नहीं आने वाले। उनका सामाजिक सरोकारों से वास्ता है। वे किसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार हैं। आजाद आवाज उठाने में हिचकते नहीं हैंं।

उन्होंने कई उदाहरण ऐसे भी दिए, जिसमे अल्प समुदाय के बहाने घृणा और हिंसा का वातावरण बनाने की कोशिशें की गई। गाजीपुर में हुयी पत्रकार राजेश मिश्रा और इसके पूर्व हिंसा में मारे गये पत्रकारों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसके पीछे विचारो की अभिव्यक्ति से उपजा हिंसात्मक रुख है। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अलग से कानून बनाने से ज्यादा जरूरी यह है कि वर्तमान में जो कानून है उनको इच्छा शक्ति से लागू किया जाय जिससे लोगों के बीच यह सार्थक संदेश जाय कि समाज में हिंसा का कोई भी स्थान नहीं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि साम्प्रदायिक विद्वेष और रूग्ण मानसिकता से उपजी हत्याओं पर सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए।

ताजमहल के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि उसे कब्र बताने के पीछे मन की गांठें हैं। ताज कला का अद्भुत विश्वविख्यात स्वरूप है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से हिंसा और घृणा की भावनाओं को हतोत्साहित करने की कोशिशें होनी चाहिए। इस अवसर पर संघ के अध्यक्ष श्री सुभाषचन्द्र सिंह, महामंत्री डा॰ अत्रि भारद्वाज, वाराणसी प्रेस क्लब के मंत्री आर॰ संजय, प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना, बीबी यादव, एके लारी, लक्ष्मीकांत द्विवेदी, रमेश कुमार सिंह, अजय राय, सुनील शुक्ला, पुरूषोत्तम चतुर्वेदी, शशि श्रीवास्तव, मनीष चौरसिया, शैलेश चौरसिया, अरविन्द कुमार, नीलाम्बुज तिवारी आदि उपस्थित रहे।