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ज्ञानवापी प्रकरणः दोनो पक्षों की बहस पूरी, फैसला सुरक्षित, 12 सितंबर जिला जज बता सकते है केस सुनने योग्य है या नहीं

ज्ञानवापी प्रकरण के तहत मां शृंगार गौरी और परिसर स्थित अन्य देव विग्रहो के पूजन की अनुमति वाले केस की सुनवाई पूरी। बुधवार को जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में पहले प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने अधूरी बहस पूरी की। फिर हिंदू पक्ष की ओर से प्रतिउत्तर पेश किया गया। करीब तीन घंटे से ज्यादा चली बहस के बाद जिला जज अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब 12 सितंबर को अगली तारीख पर जिला जज सुना सकते हैं फैसला।

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वाराणसी जिला एवं सत्र न्यायालय मुख्य द्वार

वाराणसी जिला एवं सत्र न्यायालय मुख्य द्वार

वाराणसी. ज्ञानवापी प्रकरण में परिसर स्थित मां शृंगार गौरी व अन्य देव विग्रहों के नियमित पूजन वाले केस की पोषणीयता पर बुधवार को दो चरण में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत की सुनवाई लगातार तीसरे दिन हुई। आज करीब साढ़े तीन घंटे सुनवाई हुई। आज पहले प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी अधूरी बहस पूरी की। फिर हिंदू पक्ष ने प्रतिउत्तर दिया। अब दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी है। जिला जज की अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 12 सितंबर नियत की है। माना जा रहा है कि अब 12 सितंबर को अदालत अपना फैसला सुनाएगी कि मां शृंगार गौरी का केस सुनवाई योग्य है या नहीं है।

अंजुमन का दावा केस सुनवाई योग्य नहीं

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की बहस का सार यही रहा कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। लिहाजा ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मसले की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड को है। देश की आजादी के दिन ज्ञानवापी मस्जिद का जो धार्मिक स्वरूप था, वह आज भी कायम है। उसका धार्मिक स्वरूप अब बदला नहीं जा सकता है। ऐसे में शृंगार गौरी केस मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।

मुलायम सरकार ने 1993 में मां शृंगार गौरी के दर्शन पर लगाई रोकः हिंदू पक्ष

जवाबी बहस के प्रति उत्तर में वादिनी महिलाओं की ओर से कहा गया कि आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश कर प्रतिवादी पक्ष उसे ज्ञानवापी मस्जिद बता रहा है। प्रतिवादी पक्ष ज्ञानवापी को वक्फ की संपत्ति बताकर धोखाधड़ी कर रहा है। देश की आजादी के दिन से 1993 तक मां शृंगार गौरी की पूजा होती रही है। मां शृंगार गौरी की पूजा पर तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव की सरकार ने अचानक और अनायास ही प्रतिबंध लगाया था। ऐसे में शृंगार गौरी का मुकदमा सुनवाई योग्य है।